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अंतरिक्ष से हो सकेगी आने वाली सुनामी की पहचान! प्रशांत महासागर में वैज्ञानिक कर रहे दिलचस्प परीक्षण, जानिए इसके बारे में

By विनीत कुमार | Updated: June 1, 2023 15:04 IST

समुद्र में आने वाली सुनामी के खतरे से निपटने के लिए वैज्ञानिक इस प्रयास में जुटे हैं कि इसका पता जल्द से जल्द लगाया जा सके। इसी मकसद से प्रशांत महासागर के 'रिंग ऑफ फायर' क्षेत्र में वैज्ञानिक परीक्षण कर रहे हैं।

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न्यूयॉर्क: अमेरिका में जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के वैज्ञानिक एक नई निगरानी प्रणाली का परीक्षण कर रहे हैं जो धरती के ऊपर से सुनामी का पता लगा सकती है। वैज्ञानिक इसे गार्जियन (Gurdian) कह रहे हैं। डब्ड GNSS अपर एटमॉस्फेरिक रियल-टाइम डिजास्टर इंफॉर्मेशन एंड अलर्ट नेटवर्क यानी गार्जियन एक प्रायोगिक निगरानी प्रणाली है, जो कुछ इंच तक वास्तविक समय की स्थिति और सटीकता प्रदान करने के लिए पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले जीपीएस और अन्य वेफाइंडिंग उपग्रहों के डेटा का इस्तेमाल करती है।

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार टीम फिलहाल प्रशांत महासागर के भूगर्भीय रूप से सक्रिय 'रिंग ऑफ फायर' क्षेत्र में इसका परीक्षण कर रही है। दरअसल, 1900 और 2015 के बीच 750 से अधिक पुष्ट सुनामी में से लगभग 78 प्रतिशत इसी क्षेत्र में आई थीं।

सुनामी क्या होती है?

सुनामी बड़ी समुद्री लहरें हैं जो आमतौर पर पानी के नीचे भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट या भूस्खलन आदि के कारण होती हैं। जब समुद्र के नीचे भूकंप आता है, तो यह शक्तिशाली तरंगों की एक श्रृंखला उत्पन्न करता है जो स्रोत से बाहर की ओर जाती हैं।

ये लहरें तेज गति से पूरे महासागर में यात्रा कर सकती हैं, जो अक्सर 800 किलोमीटर प्रति घंटे से अधिक की भी होती हैं। इसका भयानक असर कई बार तटों पर भी देखा जाता है। ऐसे में पूर्व चेतावनी प्रणाली को बेहतर और इसे बढ़ाने के लिए इसे विकसित किया जा रहा है। इससे पृथ्वी पर कहीं भी सुनामी उत्पन्न होने पर इसका जल्द पता लगाया जा सकेगा।

सुनामी का कैसे पता लगाएगी गार्जियन प्रणाली

यह प्रणाली विस्थापित हवा पर नजर रखती है और सुनामी आने पर आयनमंडल में फैल जाने वाली आवेशित कण पर नजर रखती है। दरअसल सुनामी के दौरान, समुद्र की सतह का एक बड़ा हिस्सा एकसमान रूप से ऊपर उठ सकता है और फिर अचानक गिर सकता है, ऐसे इसके ऊपर हवा की बड़ी मात्रा विस्थापित होती है।

विस्थापित हवा कम आवृत्ति वाली ध्वनि और गुरुत्व तरंगों के रूप में सभी दिशाओं में फैल जाती है। नासा के अनुसार आवेशित कणों के साथ दबाव और तरंगों का टकराव पास के नौवहन उपग्रहों से संकेतों को बाधित सकता है। ऐसे में इन मामूली बदलावों को खतरे की घंटी के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक जेपीएल वैज्ञानिक लियो मार्टियर ने कहा, 'इसे एक त्रुटि के रूप में ठीक करने के बजाय, हम इसे प्राकृतिक खतरों को खोजने के लिए डेटा के रूप में उपयोग करते हैं।'

इस प्रणाली पर काम करने वाली टीम ने कहा कि 10 मिनट के भीतर यह आयनमंडल तक पहुंचने वाली सुनामी की आहट का एक प्रकार का स्नैपशॉट बना सकता है।

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