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तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों ने नेपाल की राष्ट्रपति द्वारा बुलाई गई सर्वदलीय बैठक का बहिष्कार किया

By भाषा | Updated: March 16, 2021 21:13 IST

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काठमांडू, 16 मार्च नेपाल की राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने देश में जारी राजनीतिक संकट के बीच समकालीन मुद्दों पर चर्चा के लिए मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई। वहीं, देश के तीन पूर्व प्रधानमंत्रियों ने इस बैठक का बहिष्कार किया।

माइ रिपब्लिक अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक, राष्ट्रपति भंडारी द्वारा शीतल निवास में बुलाई गई बैठक में पूर्व प्रधानमंत्री बाबूराम भट्टराई, माधव कुमार नेपाल और झाला नाथ खनाल शामिल नहीं हुए। तीनों नेताओं ने पूर्ववर्ती नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (नेकपा) के विवाद में भंडारी की भूमिका को लेकर सवाल खड़े किए थे।

खनाल और माधव सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के बागी धड़े से संबंध रखते हैं जबकि भट्टराई जनता समाजवादी पार्टी की संघीय परिषद के प्रमुख हैं।

पूर्व प्रधानमंत्रियों ने सार्वजनिक तौर पर आरोप लगाया कि राष्ट्रपति भंडारी संविधान संरक्षक की भूमिका निभाने में नाकाम रहीं और यहां तक कि वह प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के असंवैधानिक कदमों का समर्थन करती रहीं। ओली ने दिसंबर में संसद भंग कर दी थी।

मंगलवार की सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ओली, नेकपा (माओवादी केन्द्र) के अध्यक्ष पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’, नेपाली कांग्रेस के प्रमुख शेर बहादुर देउबा, जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष महंत ठाकुर और मंत्रिपरिषद के पूर्व अध्यक्ष खिल राज रेजमी शामिल हुए।

इस बीच, नेकपा (माओवादी केन्द्र) के सांसद देवेंद्र पौडेल ने कहा कि पार्टी की संसदीय दल की बैठक में प्रचंड को नेता के तौर पर चुना गया है।

इसके अलावा, अन्य नेताओं को संसद के सदनों में पार्टी की ओर से पदभार दिया।

इससे पहले, ‘काठमांडू पोस्ट’ की खबर के अनुसार, राष्ट्रपति कर्यालाय के वरिष्ठ संचार विशेषज्ञ टीका ढकाल ने बताया कि राष्ट्रपति भंडारी ने संसद में प्रतिनिधित्व करने वाले सभी दलों के नेताओं और पूर्व प्रधानमंत्रियों को समकालीन राजनीति पर चर्चा के लिए बुलाया है।

वहीं, ‘हिमालयन टाइम्स’ की खबर के अनुसार नेकपा-माओवादी केन्द्र के सदस्य शिव कुमार मंडल ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री प्रचंड सदैव ही देश की सभी कम्युनिस्ट शक्तियों के बीच एकजुटता के पक्ष में रहे हैं और सुझाव दिया कि यदि पार्टी के नाम से ‘माओवादी केन्द्र’ हटाने से इन शक्तियों को एकजुट होने में मदद मिल सकती है तो पार्टी उसके लिए तैयार है।

पार्टी के नाम में बदलाव का प्रस्ताव ऐसे समय में आया है जब नेकपा-माओवादी केन्द्र थोड़ी मुश्किलों में है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली के नेकपा-एमाले का नेकपा-माओवादी केन्द्र में विलय को खारिज कर दिया है।

इससे एक ऐसी स्थिति उत्पन्न हो गयी जहां प्रधानमंत्री ओली पार्टी में अपनी स्थिति मजबूत होने के रूप में देखते हैं। उन्हें केंद्रीय समिति और संसदीय दल में स्पष्ट बहुमत प्राप्त है।

गौरतलब है कि 2017 के आम चुनाव में नेकपा-एमाले और नेकपा-माओवादी केन्द्र के गठबंधन की जीत के बाद दोनों ही दलों ने मई, 2018 में नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के रूप में आपस में विलय कर लिया था।

दिसंबर में 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को भंग करने के ओली के कदम के बाद सत्तारूढ़ एनसीपी में विभाजन हो गया था। अपने ऐतिहासिक फैसले में शीर्ष अदालत ने संसद के निचले सदन को बहाल कर दिया था।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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