नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाली नादिया का 3 महीने रोज होता था रेप, रुला देने वाली है इनकी कहानी
By भारती द्विवेदी | Published: October 6, 2018 09:08 AM2018-10-06T09:08:59+5:302018-10-06T09:29:50+5:30
Nobel Peace Prize 2018: जहां बच्चों को लड़ाई सीखाने के लिए प्रशिक्षण शिविर में ले गए। वहीं युवा महिलाओं को वो अपने साथ ले गए बाकी की महिलाओं को उन्होंने मार दिया।
नई दिल्ली, 6 अक्टूबर: साल 2018 के नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा हो चुकी है। ये पुरस्कार डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो के डेनिस मुकवेगे और इराक के रहने वाली नादिया मुराद को साझा रूप से दिया जाएगा। डेनिस महिला रोग विशेषज्ञ हैं तो वहीं 25 साल की नादिया यजीदी महिला अधिकार कार्यकर्ता हैं। नादिया को ये पुरस्कार उनके उस संघर्ष के लिए दिया गया है, जिससे हिम्मत करके वो ना सिर्फ लड़ी बल्कि दुनिया भर के लड़कियों के लिए मिसाल बन गई है।
आईएस के चुंगल से निकलने के बाद नादिया महिलाओं में यौन हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं। नादिया पाकिस्तान की मलाला युसुफजई के बाद दूसरी सबसे युवा महिला हैं, जिन्होंने शांति का नोबेल पुरस्कार जीता है। आईएस के चुंगल से निकलने के बाद नादिया ने महिलाओं में यौन हिंसा के खिलाफ जागरूकता फैलाने का काम कर रही हैं।
क्या है नादिया की कहानी
बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नादिया अपनी मां, भाई और बहनों के साथ उत्तरी इराक के शिंजा के पास कोचू गांव में रहती थीं। कोचू गांव की सीमा सीरिया से लगती थी। 1700 अबादी वाले उस गांव में लोग खेती पर निर्भर थे। सबकुछ सही चल रहा था। तीन अगस्त 2014 को इस्लामिक स्टेट ने यजीदी लोगों को अपना टारगेट बना हमला किया। उनसे बचने के लिए कुछ लोगों ने भागकर अपनी जान बचाई लेकिन नादिया के गांव वाले भाग नहीं पाए।
आईएस के लड़ाकों ने 3-15 अगस्त तक पूरे गांव को बंधक बनाए रखा। इस दौरान इन लोगों को बाहर की जानकारी मिलते रहती थी कि अब तक तीन हजार से ज्यादा लोग मार दिए गए हैं। और करीब पांच हजार महिला और बच्चों को उनलोगों ने बंधक बना रखा है। बंधक बनाए जाने से पहले चरमपंथियों ने गांववालों के सारे हथियार ले लिए थे। लड़ाकों ने सभी को धर्म बदलने की धमकी दी थी, वो भी दो दिन के अंदर।
15 अगस्त को आईएस के एक हजार लड़ाके गांव में घुसे और बंधक बनाए गए सभी लोगों के लेकर गांव के स्कूल में गए। लड़ाकों ने पहली मंजिल पर मर्दों को रखा और दूसरी मंजिल पर महिला और बच्चों को। कमरे में ले जाने के बाद लड़ाकों का नेता जोर से चिल्लाकर पूछा जो भी इस्लाम धर्म कबूल करना चाहते हैं वो कमरे से बाहर जा सकते हैं।
लेकिन नादिया ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि वहां जो भी चल रहा था उसे देखते हुए हम समझ गए थे कि जो कमरा छोड़कर जाएंगे वो भी मारे जाएंगे। क्योंकि वो नहीं मानते कि यज़ीदी से इस्लाम कबूलने वाले असली मुसलमान हैं। इस्लाम कबूलते के साथ उन्हें मार दिया जाना था। लड़ाके एक-एक करके मर्दों को कमरे से बाहर लेकर जा रहे थे और सबकी हत्या कर रहे थे।
गांव के मर्दों को मारने के बाद लड़ाके महिलाएं और बच्चों को दूसरे गांव ले गए। वहां ले जाकर उन्होंने साथ लाए लोगों को तीन ग्रुप में बांटा। पहले ग्रुप में युवा महिला थीं, दूसरे में बच्चे और तीसरे में वो सारी महिलाएं जिनसे वो शादी नहीं करना चाहते थे या वो उनके किसी काम की नहीं थीं।
जब 3 महीने तक सेक्स स्लेव बनकर रखी गईं
जहां बच्चों को लड़ाई सीखाने के लिए प्रशिक्षण शिविर में ले गए। वहीं युवा महिलाओं को वो अपने साथ ले गए बाकी की महिलाओं को उन्होंने मार दिया। उसमें नादिया की मां भी शामिल थीं। लड़ाके सभी लड़िकयों के अपने साथ मोसुल के इस्लामिक कोर्ट ले गए। वहां उन्होंने हर महिला की फोटो खींची। फिर हर एक महिला की तस्वीर के साथ एक नंबर लगाया गया। ये नंबर उन लड़ाकों का था, जो उस महिला के लिए जिम्मेदार होता था। फिर हर अलग-अलग जगह से आईएस के लड़ाके इस्लामिक कोर्ट आते और अपनी पंसद की लड़की को चुनते थे। लड़की को पसंद करने वाला लड़ाका उस लड़ाके से मोलभाव करता जो उस लड़की को लेकर आया था। लड़की को लाने वाले लड़ाका के ऊपर ये निर्भर करता था कि वो लड़की को बेच दें, किराए पर दे या अपने किसी साथी को तोहफे के तौर पर।
नादिया उस रात का जिक्र करते हुए बताती हैं, जब उन्होंने पहली बार लड़ाके के पास भेजा गया था। वो बहुत मोटा लड़ाका था जो मुझे चाहता था, मैं उसे बिल्कुल नहीं चाहती थी। जब हम सेंटर पर गए तो मैं जमीन पर थी, मैंने उस व्यक्ति के पैर देखे और मैं उसके सामने गिड़गिड़ाने लगी कि मैं उसके साथ नहीं जाना चाहती। मैं गिड़गिड़ाती रही, लेकिन मेरी एक नहीं सुनी गई। हर रोज नादिया के साथ बलात्कार होता रहा। लेकिन एक हफ्ते बाद नादिया ने भागाने की कोशिश और पकड़ी गई। लड़ाके नादिया को पकड़ने के बाद इस्लामिक कोर्ट ले आए और सजा के तौर पर उनके छह सुरक्षा गार्डों ने उसका बलात्कार किया। तीन महीने तक नादिया के साथ यौन उत्पीड़न होता रहा।
और एक दिन आजाद होने का रास्ता मिल ही गया
उन तीन महीने में नादिया अलग-अलग मर्दे के पास सेक्स स्लेव बनकर रहीं। उसी दौरान एक बार वो एक मर्द के साथ थीं। वो उनके लिए कुछ कपड़े खरीदना चाहता था। कपड़े दिलाने के बाद वो नादिया को बेचने वाला था। जब वो बाजार गया नादिया घर पर अकेली थीं। इस बात का फायदा उठा नादिया वहां से भागी। मोसुल की गलियों में काफी देर भागने के बाद एक मुस्लिम परिवार ने नादिया की कहानी सुनने के बाद अपने घर में पनाह दी। फिर उस फैमिली ने ही नादिया को कुर्दिस्तान की सीमा तक पहुँचाने में मदद की।
नादिया जैसे-तैसे शरणार्थी शिविर पहुंच गईं। जब वो शरणार्थी शिविर में थीं, उसी समय जर्मन सरकार ने वहाँ के हजार लोगों की मदद करने का फैसला किया। नादिया भी उनमें से एक थीं। इलाज कराने के दौरान एक संगठन ने नादिया की कहानी को जाना और सलाह दी कि वो संयुक्त राष्ट्र में जाकर अपनी आपबीती बताए। फिर नादिया ने भी अपनी आपबीती दुनिया के सामने रखने का मन बनाया ताकि लोग जान सके कि वहां की महिलाओं के साथ क्या हो रहा है।
'द लास्ट गर्ल' में लिखा अपनी जिंदगी के दर्दनाक सच
नादिया ने हमेशा से शिक्षक बनाना चाहती थीं या अपना एक सैलून खोलना चाहती थीं। लेकिन वो सपना पूर नहीं हो सका। तीन महीने तक लड़ाकों की सेक्स स्लेव बनकर रहने के बाद जब वो आजाद हुई तो उन्होंने 'द लास्ट गर्ल' नाम से अपनी ऑटोबॉयोग्राफी लिखी है।