पीओके में पाकिस्तान का नया पैंतरा, आतंकियों की मदद के लिए टेलीकॉम टावर बढ़ाए, चीन से भी मिल रही है मदद
By शिवेन्द्र कुमार राय | Published: February 20, 2024 10:58 AM2024-02-20T10:58:01+5:302024-02-20T10:59:46+5:30
सैन्य सूत्रों के अनुसार आतंकवादी समूह अत्यधिक एन्क्रिप्टेड वाईएसएमएस सेवाओं का उपयोग करते हैं। यह एक ऐसी तकनीक है जो गुप्त संचार के लिए स्मार्टफोन और रेडियो सेट को जोड़ती है।
नई दिल्ली: पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) में नियंत्रण रेखा के पास दूरसंचार टावरों की संख्या में वृद्धि देखी गई है। पाकिस्तान की ये नई चाल आतंकवादियों और उनके सहयोगियों को घुसपैठ की गतिविधियों में मदद देने के लिए है। यह जानकारी घुसपैठ के प्रयासों और हाल के आतंकवादी हमलों, विशेषकर जम्मू क्षेत्र में पीर पंजाल रेंज के दक्षिण में हुए अध्ययन से मिली है।
सैन्य सूत्रों के अनुसार आतंकवादी समूह अत्यधिक एन्क्रिप्टेड वाईएसएमएस सेवाओं का उपयोग करते हैं। यह एक ऐसी तकनीक है जो गुप्त संचार के लिए स्मार्टफोन और रेडियो सेट को जोड़ती है। यह तकनीक पीओके में किसी तंकवादी समूह के हैंडलर को एलओसी के पार इस्तेमाल किए गए दूरसंचार नेटवर्क के माध्यम से जम्मू क्षेत्र में घुसपैठ करने वाले समूह और पाकिस्तान में बैठे उसके हैंडलर से जुड़ने की अनुमति देती है। आतंकी इस पद्धति का उपयोग सेना या बीएसएफ की पकड़ में आने से बचने के लिए करते हैं।
पाकिस्तान ने ये कदम आतंकियों की मदद के लिए उठाया है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि पीओके में दूरसंचार टावरों को बढ़ाने की परियोजना पूरी तरह से विशेष संचार संगठन (एससीओ) को हस्तांतरित कर दी गई है। इस परियोजना का नेतृत्व पाकिस्तानी सेना अधिकारी मेजर जनरल उमर अहमद शाह कर रहे हैं, जिनके बारे में माना जाता है कि उन्होंने पहले पाकिस्तान की जासूसी एजेंसी आईएसआई के साथ काम किया था।
चीन से भी मिली है मदद
अधिकारियों का कहना है कि नए टेलीकॉम टावर कोड-डिवीजन मल्टीपल एक्सेस (सीडीएमए) तकनीक पर काम करते हैं और एन्क्रिप्शन मुख्य रूप से वाईएसएमएस संचालन को पूरा करने के लिए एक चीनी फर्म द्वारा किया गया है। नियंत्रण रेखा पर सीडीएमए प्रौद्योगिकी की तैनाती का उद्देश्य निगरानी प्रयासों को जटिल बनाना है। सुरक्षा एजेंसियों ने एन्क्रिप्शन को तोड़कर 2019 और 2020 में इस तरह की प्रौद्योगिकी के उपयोग के इस्तेमाल के प्रयास को विफल कर दिया था।
भारत के लिए चिंता की बात ये है कि गिलगित और बाल्टिस्तान सहित पीओके में मौजूद पाकिस्तानी टॉवर ऊंचे इलाके के कारण कश्मीर घाटी में ज्यादा प्रभावी नहीं हो पाते लेकिन जम्मू के मैदानी इलाकों इनके सिग्नल पहुंच जाते हैं। यहाँ तक कि कोट बलवाल जेल क्षेत्र जैसे संवेदनशील क्षेत्रों तक भी ये सिग्नल पहुंच जाते हैं। भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इस पूरे मामले पर नजर रखे हुए हैं।