नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद को भंग किया, मध्यावधि चुनाव कराये जाने की घोषणा

By भाषा | Updated: December 20, 2020 20:35 IST2020-12-20T20:35:21+5:302020-12-20T20:35:21+5:30

Nepal's President dissolved Parliament, announces midterm elections | नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद को भंग किया, मध्यावधि चुनाव कराये जाने की घोषणा

नेपाल की राष्ट्रपति ने संसद को भंग किया, मध्यावधि चुनाव कराये जाने की घोषणा

(शिरीष बी प्रधान)

काठमांडू, 20 दिसंबर नेपाल के प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को आश्चर्यचकित करते हुए रविवार को संसद भंग करने की सिफारिश कर दी और इसे राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिल गई। राष्ट्रपति ने देश में अप्रैल-मई में मध्यावधि आम चुनाव कराये जाने की घोषणा की है।

ओली और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘‘प्रचंड’’ के बीच सत्ता के लिए लंबे समय से चल रहे संघर्ष के बीच यह विवादास्पद कदम सामने आया है।

राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर रविवार को संसद को भंग कर दिया और अप्रैल-मई में मध्यावधि आम चुनाव कराये जाने की घोषणा की।

विपक्ष पार्टी और सत्तारूढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में असंतुष्टों ने इस फैसले को ‘‘असंवैधानिक और निरंकुश’’ बताया है।

इससे पूर्व एनसीपी की स्थायी समिति के एक वरिष्ठ सदस्य ने 'पीटीआई-भाषा' को बताया था कि ओली की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की आपात बैठक में राष्ट्रपति से संसद की प्रतिनिधि सभा को भंग करने की सिफारिश करने का फैसला किया गया है।

राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक नोटिस के अनुसार राष्ट्रपति भंडारी ने 30 अप्रैल को पहले चरण और 10 मई को दूसरे चरण का मध्यावधि चुनाव कराये जाने की घोषणा की।

वर्ष 2017 में निर्वाचित प्रतिनिधि सभा या संसद के निचले सदन में 275 सदस्य हैं। ऊपरी सदन नेशनल एसेंबली है।

यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब सत्तारूढ़ दल नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एनसीपी) में आंतरिक कलह चरम पर पहुंच गई थी। पार्टी के दो धड़ों के बीच महीनों से टकराव जारी है। एक धड़े का नेतृत्व 68 वर्षीय ओली तो वहीं दूसरे धड़े की अगुवाई पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष एवं पूर्व प्रधानमंत्री ''प्रचंड'' कर रहे हैं।

संसद को भंग करने संबंधी ओली के कदम को लेकर असंतोष जाहिर करते हुए उनके मंत्रिमंडल के सात मंत्रियों ने विरोध में इस्तीफा दे दिया।

इस्तीफा देने वाले मंत्रियों में विज्ञान और शिक्षा मंत्री गिरिराज मणि पोखरेल, ऊर्जा और जल संसाधन मंत्री बर्धमान पुन, कृषि मंत्री घनश्याम भूषाल, श्रम और रोजगार मंत्री रमेश्वर राय यादव, पर्यटन मंत्री योगेश भट्टाराई, वन एवं पर्यावरण मंत्री शक्ति बसनेत और पेयजल एवं स्वच्छता मंत्री बीना मागर शामिल हैं।

ये सभी सातों मंत्री प्रचंड गुट से हैं। इन मंत्रियों ने यहां संवाददाता सम्मेलन के दौरान एक संयुक्त बयान में अपने इस्तीफे दिये जाने की घोषणा की।

संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने कहा कि ओली की संसद को भंग करने की सिफारिश संविधान के प्रावधानों और भावना के खिलाफ है और पार्टी इस कदम का विरोध करेगी।

पार्टी के प्रवक्ता बिस्वा प्रकाश शर्मा द्वारा जारी एक बयान में एनसी ने कहा, ‘‘कोविड-19 महामारी के बीच पार्टी के भीतर संघर्ष के कारण देश को अस्थिरता की ओर धकेलना निंदनीय है।’’

एनसी ने फैसले को अंसवैधानिक बताया और राष्ट्रपति भंडारी से इसे खारिज कर संविधान के संरक्षक के रूप में अपनी भूमिका का निर्वहन करने की अपील की।

सत्तारूढ़ एनसीपी के प्रवक्ता नारायणजी श्रेष्ठ ने ओली के कदम को ‘‘अलोकतांत्रिक, संविधान विरोधी और निरंकुश’’ बताया।

एनसीपी की स्थायी समिति की बैठक में ओली के कदम को ‘‘असंवैधानिक, अलोकतांत्रिक और उनकी व्यक्तिगत इच्छा पर आधारित” बताया गया और प्रधानमंत्री के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई किये जाने की सिफारिश की। स्थायी समिति के सदस्य गणेश शाह ने ‘पीटीआई-भाषा’ को यह जानकारी दी।

उन्होंने बताया कि कार्रवाई की सिफारिश बुधवार को होने वाली केंद्रीय समिति की बैठक में भेजी जाएगी।

स्थायी समिति के कुल 44 सदस्यों में से 27 बैठक में मौजूद थे। ओली और उनके समर्थक बैठक में शामिल नहीं हुए।

प्रचंड के प्रेस सलाहकार बिष्णु सपकोटा ने कहा, ‘‘ पार्टी नेताओं ने प्रधानमंत्री ओली के फैसले की वजह से होने वाली समस्याओं के बारे में विचार-विमर्श किया।’’

मीडिया रिपोर्टों के अनुसार प्रचंड रविवार की सुबह ओली के आवास पर गये थे लेकिन वह प्रधानमंत्री के साथ बैठक किये बगैर ही लौट आये थे।

एनसीपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री माधव कुमार नेपाल ने इस कदम को असंवैधानिक बताया।

इस बीच संवैधानिक विशेषज्ञों ने संसद को भंग करने के कदम को असंवैधानिक करार दिया है।

विशेषज्ञों ने कहा कि नेपाल के संविधान के प्रावधान के अनुसार, बहुमत की सरकार के प्रधानमंत्री द्वारा संसद को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है। उन्होंने कहा कि ओली के इस कदम को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।

संवैधानिक विशेषज्ञ दिनेश त्रिपाठी ने कहा कि जब तक सरकार बनाये जाने की संभावना है तब तक संसद को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है।

एक अन्य संवैधानिक विशेषज्ञ भीमार्जुन आचार्य ने कहा कि ओली की सदन को भंग करने की सिफारिश एक संवैधानिक तख्तापलट है।

उन्होंने कहा, ‘‘यदि सरकार बनाये जाने की संभावना है तो नेपाली संविधान प्रधानमंत्री को संसद को भंग कर मध्यावधि चुनाव कराये जाने की अनुमति नहीं देता है।’’

इस बीच मुख्य विपक्षी पार्टी नेपाली कांग्रेस (एनसी) ने रविवार को पार्टी की एक आपात बैठक बुलाई।

इससे एक दिन पहले एनसी और राष्ट्रीय जनता पार्टी ने राष्ट्रपति से संसद का विशेष सत्र बुलाने का अनुरोध किया था।

गत 13 नवम्बर को एनसीपी की सचिवालय बैठक में पेश अपने 19 पृष्ठ के राजनीतिक दस्तावेज में प्रचंड ने सरकार और पार्टी दोनों को समुचित ढंग से चलाने में ‘‘विफल’’ रहने के लिए ओली की निंदा की थी और उन पर भ्रष्टाचार का भी आरोप लगाया था।

प्रचंड के आरोपों के जवाब में प्रधानमंत्री ओली ने अपना 38 पृष्ठ का एक अलग राजनीतिक दस्तावेज सौंपा था।

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