नेपाल संकट : याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

By भाषा | Published: June 6, 2021 10:32 PM2021-06-06T22:32:57+5:302021-06-06T22:32:57+5:30

Nepal crisis: constitution of new constitution bench to hear petitions | नेपाल संकट : याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

नेपाल संकट : याचिकाओं पर सुनवाई के लिए नयी संविधान पीठ का गठन

(शिरीष बी प्रधान)

काठमांडू, छह जून नेपाल में प्रतिनिधि सभा को 22 मई को भंग किए जाने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई के लिए रविवार को देश की शीर्ष अदालत की एक संविधान पीठ का गठन किया गया। पीठ की संरचना को लेकर न्यायाधीशों के बीच मतभेद की वजह से अहम सुनवाई में देरी हुई।

पीठ का गठन नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वरिष्ठता क्रम और विशेषज्ञता के आधार पर किया है। प्रधान न्यायाधीश ने कहा था कि सदन को भंग किये जाने से जुड़े मामलों पर सुनवाई शुरू करने के लिये छह जून को संविधान पीठ का गठन किया जाएगा।

न्यायालय के अधिकारियों के मुताबिक नयी संविधान पीठ में न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति मीरा ढुंगना, न्यायमूर्ति ईश्वर प्रसाद खातीवाड़ा और स्वयं प्रधान न्यायाधीश शामिल हैं।

नेपाल की राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने अल्पमत सरकार की अगुवाई कर रहे प्रधानमंत्री के पी शर्मा ओली की सलाह पर 275 सदस्यीय प्रतिनिधि सभा को पांच महीनों में दूसरी बार 22 मई को भंग कर दिया था और 12 तथा 19 नवंबर को मध्यावधि चुनाव कराने की घोषणा की थी।

न्यायमूर्ति विशंभर प्रसाद श्रेष्ठ के बीमार पड़ने के बाद उनके क्रमानुयायी न्यायमूर्ति भट्टाराई और न्यायमूर्ति खातीवाड़ा को संविधान पीठ में शामिल किया गया है। इससे पूर्व संविधान पीठ के गठन को लेकर विवाद के कारण सुनवाई प्रभावित हुई थी।

अदालत के सूत्रों ने कहा कि प्रधान न्यायाधीश राणा ने इससे पहले न्यायमूर्ति दीपक कुमार कार्की, न्यायमूर्ति आनंद मोहन भट्टाराई, न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ को उस पीठ के लिये चुना था जो “असंवैधानिक” तौर पर सदन को भंग किये जाने के खिलाफ दायर करीब 30 याचिकाओं पर सुनवाई करती।

भंग किए गए सदन के करीब 146 सदस्यों ने भी सदन की बहाली के अनुरोध के साथ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है। इनमें नेपाल कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा भी शामिल हैं जिन्होंने संविधान के अनुच्छेद 76 (5) के तहत नयी सरकार के गठन का दावा भी पेश किया था।

राष्ट्रपति भंडारी ने प्रधानमंत्री ओली और विपक्षी गठबंधन दोनों के सरकार बनाने के दावे को खारिज करते हुए कहा था कि “दावे अपर्याप्त” हैं।

विवाद उस वक्त खड़ा हो गया था जब देउबा के वकील ने उन दो न्यायाधीशों को संविधान पीठ में शामिल करने पर सवाल खड़े किए थे जो कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल के एकीकरण एवं पंजीकरण के पुनर्विचार मामले में पूर्व में फैसला दे चुके हैं।

न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी और न्यायमूर्ति बाम कुमार श्रेष्ठ के पीठ न छोड़ने का फैसला लेने के बाद, दो अन्य न्यायाधीशों ने पीठ से खुद को अलग कर लिया। इससे प्रधान न्यायाधीश राणा को पीठ का पुनर्गठन करने पर मजबूर होना पड़ा।

इसबीच, प्रधानमंत्री ओली के वकीलों ने रविवार को प्रधान न्यायाधीश राणा द्वारा सदन को भंग किये जाने के मामले की सुनवाई के लिये संविधान पीठ के पुनर्गठन किये जाने पर असंतोष व्यक्त किया है।

अधिवक्ता राजाराम घीमरी, दीपक मिश्रा, कृष्ण प्रसाद भंडारी और यज्ञमणि न्यूपाणे ने अदालत के समक्ष दावा किया कि मौजूदा रोस्टर (नामावली) के 13 न्यायाधीशों में से 11 मामले की सुनवाई के लिये उपयुक्त नहीं है।

सुनवाई ओली के अधिवक्ताओं के आवेदन दायर करने के बाद बाधित हुई जिसमें तर्क दिया गया है कि न्यायाधीश मामले की सुनवाई नहीं कर सकते क्योंकि कुछ याचिकाकर्ता संसदीय सुनवाई समिति से जुड़े थे जिसने शीर्ष अदालत में उनकी नियुक्ति को लेकर सुनवाई की थी।

ये वही अधिवक्ता हैं जिन्होंने सदन को फिर से बहाल करने और ओली को फिर से पद पर स्थापित करने के लिये रिट याचिका दायर की थी। इसके जवाब में प्रधान न्यायाधीश ने अधिवक्ताओं को चेतावनी दी कि अगर उन्होंने अपना आवेदन वापस नहीं लिया तो उन पर अदालत की अवमानना का आरोप लगाया जा सकता है।

हिमालयन टाइम्स की खबर के मुताबिक ओली के वकीलों ने हालांकि कहा कि वे अपना आवेदन वापस नहीं लेंगे और आरोपों का सामना करेंगे। इस बीच अटॉर्नी जनरल रमेश बादल ने भी पीठ के पुनर्गठन का विरोध करते हुए कहा कि मामले की सुनवाई के लिये गठित मूल पीठ को ही उस पर आगे बढ़ना चाहिए।

अखबार ने टिप्पणी की कि मामले की जांच के लिये गठित संविधान पीठ की संरचना को लेकर एक के बाद एक आ रही बाधाओं से प्रतिनिधि सभा को भंग करने के संबंध में सुनवाई का भविष्य अधर में लटका नजर आ रहा है।

इस बीच, विपक्ष के गठबंधन ने ओली सरकार द्वारा कैबिनेट में फेरबदल किए जाने की शनिवार को निंदा की। ओली ने शुक्रवार को मंत्रिमंडल में फेरबदल किया था। नये कैबिनेट में तीन उप प्रधानमंत्री, 12 कैबिनेट मंत्री और दो राज्य मंत्री हैं।

विपक्षी गठबंधन ने एक बयान में कहा कि ऐसे समय में जब सदन को भंग किये जाने का मामला उच्चतम न्यायालय में विचाराधीन है तब मंत्रिमंडल में फेरबदल कर ओली ने संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों का उपहास किया है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

Web Title: Nepal crisis: constitution of new constitution bench to hear petitions

विश्व से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे