मास्क पहनने से बच्चों के सुनने और बोलने की समझ पर पड़ रहा है असर: रिपोर्ट
By मेघना सचदेवा | Published: July 25, 2022 06:23 PM2022-07-25T18:23:59+5:302022-07-25T18:24:31+5:30
मास्क बच्चों के सुनने और बोलने की समझ पर कैसे प्रभाव डाल रहा है एक नई रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। इसके लिए एक स्टडी की गई जिसमें बच्चों और बड़े लोगों को भी शामिल किया गया।
कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए हमारा मास्क पहनना कितना जरूरी है ये हमें लगभग हर रोज हर सार्वजनिक स्थान पर किसी न किसी माध्यम से बताया जाता है। मास्क न पहनने पर जुर्माने का प्रावधान भी है। जबकि कई देशों में लोगों को मास्क से छुटकारा मिल गया है। हालांकि यही मास्क बच्चों के सुनने और बोलने की समझ पर कैसे प्रभाव डाल रहा है, यूके शिक्षा विभाग की नई रिपोर्ट से इसका खुलासा हुआ है। आईए जानते हैं कि इस रिपोर्ट से मास्क का बच्चों के जीवन पर प्रभाव डालने वाली कौन कौन सी बातें सामने आई हैं।
कैसे की गई स्टडी ?
कई सार्वजनिक जगहों पर अब मास्क नहीं पहना जाता। हालांकि कोरोना संक्रमण अभी दुनिया से खत्म नहीं हुआ इसलिए एहतियात के तौर पर लोग मास्क लगाते हैं। खास कर लंबे अरसे के बाद स्कूल जाने वाले बच्चों को अब भी मास्क लगाना अनिवार्य है। स्कूलों में जारी की गई गाइडलाइन के मुताबिक मास्क कोविड संक्रमण फैलने से बचने के लिए है लेकिन ये मास्क कैसे बच्चों के बोलने और समझने के तरीकों को बुरी तरह से प्रभावित कर रहा है। ये जानने की कोशिश के लिए कुछ बच्चों और उम्र में उनसे बड़े लोगों को एक साथ क्लास में बिठाया गया। इनमें सभी बच्चे ढंग से सुन सकते थे और बोलने में भी कोई दिक्कत नहीं थी। अब इन बच्चों और बाकि लोगों को कुछ वीडियो दिखाई गई। वीडियो में स्पीकर मास्क पहन कर बोल रहा था। वीडियो में बोले गए आखिरी शब्दों और लाइनों को बच्चों को दोहराने के लिए कहा गया। जैसे ही बच्चों ने जवाब दिया तो सब कुछ साफ हो गया। क्लास में मौजूद बाकि लोगों से भी ऐसा ही करने के लिए कहा गया।
फिर सबको एक और वीडियो दिखाई गई जिसमें स्पीकर ने मास्क नहींं पहना था। हालांकि इसमें जो स्पीकर की आवाज थी वो उसी वीडियो से निकाली गई थी जिसमें उसने मास्क पहना था। इससे ये पता लग गया कि बच्चों को मास्क पहने हुए स्पीकर की बातें कम समझ आई जबकि बिना मास्क वाले स्पीकर की वीडियो जो भी आवाज आई वो बच्चों ने सही तरीके से सुनी।
रिपोर्ट में मास्क के प्रभाव को लेकर हुआ खुलासा
रिपोर्ट में दी गई जानकारी के मुताबिक बच्चों ने बिना मास्क के स्पीच देने वाले स्पीकर की स्पीच को सही तरीके से सुना जबकि मास्क पहने हुए स्पीकर की स्पीच को सही तरीके से नहीं सुना। क्लास में मौजूद बाकि लोगों के साथ भी यही हुआ। बच्चों के अलावा बाकी लोगों को फिर भी स्पीच सुनने में आसानी हुई लेकिन मास्क वाले स्पीकर की और बिना मास्क वाले स्पीकर की स्पीच को समझने की स्पीड फिर भी कम रही। ये अंतर साफ तौर पर बताता है कि मास्क स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों की सीखने की स्पीड को कम कर रहा है।
स्टडी में ये भी सामने आया कि मास्क लगाने से स्पीकर क्या बोल रहा है वो कई बार समझ नहीं आता या उसकी आवाज में अंतर आ जाता है। कई बार होंठ आपस में चिपक जाते हैं तो शब्द का उच्चारण सही नहीं हो पाता। इससे ये पता लगता है कि बच्चों पर इसका प्रभाव ज्यादा है। कई बार स्पीकर के होठों को देख कर हम समझ जाते हैं कि वो क्या बोल रहा है पर मास्क लगाए हुए स्पीकर के शब्दों को समझना मुश्किल हो सकता है। हालांकि रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि अगर आवाज साफ है तो स्पीकर क्या बोलना चाह रहा है ये आसानी से समझा जा सकता है। वहीं अधिकतर मास्क पहनने के बाद स्पीकर की आवाज बदल ही जाती है जिसकी वजह से वो जो बोल रहा होता है समझ नहीं आता।
बच्चों के सुनने और समझने की शक्ति को प्रभावित कर रहा मास्क
रिपोर्ट में ये भी कहा गया कि मास्क का प्रभाव न के बराबर होगा अगर किसी को पता है कि स्पीकर क्या बोलने वाला है। हालांकि बच्चे ये बड़ों के मुकाबले ज्यादा नहीं समझ पाते कि सामने वाला व्यक्ति क्या बोलने वाला है इसलिए मास्क उनके जीवन पर और उनकी समझने की शक्ति पर ज्यादा असर डाल रहा है।