मौरो डी'अमातो, विजिटिंग प्रोफेसर, यूनिट ऑफ क्लिनिकल एपीडिमियोलॉजी, चिकित्सा विभाग, सोलना, करोलिंस्का संस्थान; और फर्डिनेंडो बोनफिग्लियो, अनुसंधान सहयोगी, क्लिनिकल एपीडिमियोलॉजी, चिकित्सा विभाग, सोलना, करोलिंस्का संस्थान
स्टॉकहोम, 12 दिसंबर (द कन्वरसेशन) आप दिन में कितनी बार मल त्यागने शौचालय जाते हैं? एक बार, शायद दो बार या तीन बार ? या आप एक हफ्ते में चंद बार ही मल त्यागते हैं? हमारे नए अध्ययन में हमने पाया है कि आपको कितनी बार मल त्याग होता है , यह कम से कम कुछ हद तक, आपके आनुवांशिक बनावट का एक कार्य है।
आप शायद इस बात को लेकर हैरत कर सकते हैं कि हमने यह विषय अध्ययन के लिए क्यों चुना। कई लोग मल त्यागने जाने को लेकर मुश्किल से इस बात पर ध्यान देते हैं, क्योंकि यह खुद महसूस होता है । वहीं अन्य के लिए सामान्य जठरांत्र (गैस्ट्रोइन्टेस्टनल) स्थितियां जैसे ‘इरिटेबल बॉउल सिंड्रोम’ (आईबीएस) परेशानी पैदा करता है।
आईबीएस से दुनियाभर में 10 फीसदी लोग प्रभावित हैं और यह पेट दर्द, पेट में सूजन, आंत्र का अनियमित व्यवहार, कब्ज़ और दस्त से पहचाना जाता है। इससे जिंदगी को खतरा नहीं होता है, लेकिन यह पीड़ित व्यक्ति की जिंदगी को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
हमें नहीं पता है कि आईबीएस होने के क्या सटीक कारण हैं। इस वजह से इसके इलाज के विकल्प सीमित हैं। ज्यादातर मामलों में कारण के बजाय लक्षण का ही उपचार किया जाता है। हमारे पास यह पता लगाने का तरीका भी नहीं है जिससे हम बता सकें कि किसे आईबीएस का ज्यादा खतरा है।
हमारे आम अनुसंधान का लक्ष्य लोगों के एक बड़े समूह के जीनोमिक सूचना और स्वास्थ्य संबंधी आकंड़ों को देखकर आईबीएस के लिए अनुवांशिकी खतरे के कारक की पहचान करना है। विचार यह है कि हमारी पड़ताल से इसके बेहतर इलाज के विकल्प की दिशा में मार्ग प्रशस्त हो सके।
हमारा ताज़ा अध्ययन जर्नल ‘सेल जीनोमिक्स’ में छपा है। इसमें हमने देखा है कि लोग कितनी बार मल त्यागते हैं - या उनकी ‘मल आवृत्ति’ क्या है और वंशाणु से क्या संबद्ध है। हमारी पड़ताल आईबीएस से जुड़े आनुवंशिक जोखिम कारकों के बारे में सुराग देती है।
आईबीएस जैसी जटिल बीमारियों के लिए अनुवांशिकी संबंधों की जांच करना कई कारणों से चुनौतीपूर्ण है। चीजों को सरल बनाने का एक तरीका यह है कि बीमारी को अलग-अलग जैविक घटकों या बीमारी के दौरान परेशान शारीरिक प्रक्रियाओं से संबंधित लक्षणों में बदल दिया जाए।
इन्हें ‘मध्यवर्ती फेनोटाइप’ या "एंडोफेनोटाइप" कहा जाता है। अगर आप दिल की बीमारी को देखें तो रक्तचाप ‘मध्यवर्ती फोनोटाइप’ का एक उदाहरण है।
हमने अपने अनुसंधान में इस दृष्टिकोण को अपनाया और आईबीएस के ‘मध्यवर्ती फोनोटाइप’ के हॉलमार्क के तौर पर आंतों की गतिशीलता का अध्ययन करने का विकल्प चुना।
इस दौरान आईबीएस से पीड़ित कई लोगों की आंतों में अगतिशीलता थी। यह तब होता है जब पाचन तंत्र से खाना व पेय पदार्थ के पाचन को लेकर आंते ठीक से काम नहीं करती हैं। इससे कब्ज़ या दस्त के लक्षण हो सकते हैं।
मनुष्यों में आंत की गतिशीलता के सीधे माप के लिए क्लिनिकल प्रक्रियाओं की जरूरत रहती है जो बड़े पैमाने पर अध्ययन के लिए उपयुक्त नहीं हैं, जबकि मल आवृत्ति का आंत की गतिशीलता के साथ संबंद्ध दिखाया गया है।
हमने (ब्रिटेन के बायोबैंक और यूरोप तथा अमेरिका के चार छोटे समूहों के) 1,67,875 लोगों के आंकड़ों का विश्लेषण किया जिन्होंने इस बात की जानकारी दी कि वे कितनी बार मल त्यागते हैं।
इसी के साथ हमने लाखों डीएनए ‘मार्करों’ का विश्लेषण किया जो हमारे डीएनए के मूलभूत अंग होते हैं जो आनुवंशिक रूप से हम सब की पहचान अलग अलग करते हैं। हमने पाया कि मल आवृत्ति का कम से कम कुछ हद तक आनुवंशिक संबंध है।
हमें मल आवृत्ति और आईबीएस के बीच आनुवंशिक संरचना के प्रमाण भी मिले। अन्य शब्दों में, जब आईबीएस के विकसित होने के जोखिम की बात आती है तो मल आवृत्ति को नियंत्रित करने के लिए अहम आनुवांशिक कारक भी महत्वपूर्ण प्रतीत होते हैं।
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