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ब्लॉग: मालदीव में भारत के लिए बढ़ सकती है कूटनीतिक चुनौतियां

By लोकमत समाचार सम्पादकीय | Updated: October 12, 2023 10:39 IST

मालदीव में राष्ट्रपति चुनाव डॉक्टर मोहम्मद मुइज्जू ने जीत लिया है। इसके साथ ही उन्हें चीन समर्थक विपक्षी बता रही हैं जिसके बाद कहा जा रहा है कि भारत से कूटनीतिक रिश्ते भी खराब सकते हैं।

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ठळक मुद्देमालदीव के राष्ट्रपति के पद पर डॉक्टर मोहम्मद मुइज्जू आसीन हो गए हैं। ब्राहिम मोहम्मद सोलिह द्वारा पूरे चुनावी समर में उन्हें चीनी समर्थक होने की बात कही गई। डॉक्टर मोहम्मद मुइज्जू ने कहा कि वो कार्यकाल के पहले दिन से ही भारतीय सैनिकों को भारत भेजेंगे

हिंद महासागर के द्वीपीय देश मालदीव की सत्ता अब चीन समर्थक डॉक्टर मोहम्मद मुइज्जू के हाथों में होगी। पिछले दिनों हुए राष्ट्रपति चुनाव में चीन समर्थक डॉक्टर मुइज्जू विजयी हुए हैं। इससे पहले मालदीव की सत्ता पर भारत समर्थक इब्राहिम मोहम्मद सोलिह काबिज थे।

मुइज्जू की जीत को भारत के लिए बड़ा कूटनीतिक झटका कहा जा रहा है। चुनाव कैंपेन में भारत के खिलाफ लगातार जहर उगलने वाले मुइज्जू ने चुनाव परिणामों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि मालदीव से भारतीय सैनिकों को बाहर निकाला जाएगा। 

उनका कहना है कि वे अपने कार्यकाल के पहले ही दिन से भारतीय सैनिकों को वापस भारत भेजने की प्रक्रिया शुरू कर देंगे। मुइज्जू 17 नवंबर को पद ग्रहण करेंगे। हालांकि, पीएम नरेंद्र मोदी ने उन्हें जीत की बधाई दी है और कहा है कि भारत मालदीव के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मजबूत बनाएगा।

'इंडिया-आउट' अभियान के सहारे चुनावी कैंपेन चलाने वाले डॉक्टर मुइज्जू ने अपनी चुनावी रैलियों में राष्ट्रपति इब्राहिम मोहम्मद सोलिह को भारत समर्थक बताते हुए उन पर हमला किया था। मुइज्जू का कहना था कि उनकी सरकार मालदीव की संप्रभुता से समझौता कर किसी देश से करीबी नहीं बढ़ाएगी।

दूसरी ओर डॉक्टर मुइज्जू पर मोहम्मद सोलिह चीन समर्थक होने का आरोप लगा रहे थे। कुल मिलाकर कहा जाए तो इस बार मालदीव का राष्ट्रपति चुनाव भारत और चीन के इर्द-गिर्द घूम रहा था। परिणाम चीन समर्थक मुइज्जू के पक्ष में रहा है।

अब सवाल यह उठ रहा है कि मुइज्जू राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए भारत और चीन के बीच संतुलन बनाकर आगे बढ़ेंगे या अपने मतदाताओं के फैसले का सम्मान करते हुए चीन के पाले में खड़े होंगे? 

दरअसल, पिछले एक-डेढ़ दशक से मालदीव हिंद महासागर की प्रमुख शक्तियों भारत और चीन के बीच भू-राजनीतिक खींचतान का केंद्र रही हैं। साल 2013 में चीन समर्थक अब्दुल्ला यामीन के राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-मालदीव संबंधों में लगातार गिरावट आई।

भारत के पारंपरिक शत्रु पाकिस्तान के साथ ऊर्जा के क्षेत्र में किया गया समझौता हो या सैन्य हेलिकॉप्टर को वापस लौटाने का फरमान हो, यामीन का हर एक फैसला भारत को असहज करने वाला था। 

भारत ने मालदीव को यह हेलिकॉप्टर राहत और बचाव कार्य के लिए दिए थे। यामीन ने न सिर्फ चीन की कंपनियों को पूरी छूट दे दी थी बल्कि मालदीव में कार्य कर रही भारतीय कंपनियों को वर्क परमिट जारी करना बंद कर दिया था, जिसकी वजह से वहां उन परियोजनाओं का काम प्रभावित हुआ जिसमें भारत की भागीदारी थी। यामीन के बारे में तो यहां तक कहा जाता था कि वे अपने देश में भारत की किसी तरह की भागीदारी पसंद नहीं करते हैं।

टॅग्स :मालदीवचीनभारतनरेंद्र मोदी
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