मक्का में काबा के पवित्र काले पत्थर को फिर से छू और चूम सकते हैं श्रद्धालु, कोरोना के कारण लगी थी पाबंदी
By शिवेंद्र राय | Published: August 4, 2022 06:01 PM2022-08-04T18:01:09+5:302022-08-04T18:03:45+5:30
काबा में मौजूद पवित्र काले पत्थर को इस्लाम से पहले से ही दुनिया में मौजूद माना जाता है। कोरोना महामारी की वजह से पिछले 30 महीने से काबा के पवित्र काले पत्थर को छूने पर पाबंदी थी जिसे अब हटा लिया गया है।
नई दिल्ली: मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए अच्छी खबर है। अब श्रद्धालु उमरा के लिए मक्का में काबा के पवित्र काले पत्थर को छू और चूम सकते हैं। कोरोना महामारी की वजह से पिछले 30 महीने से काबा के पवित्र काले पत्थर को छूने पर पाबंदी थी जिसे अब हटा लिया गया है। ये निर्णय उमरा की यात्रा से टीक पहले लिया गया है। बता दें कि उमरा के लिए दुनिया भर में इस्लाम को मानने वाले लाखों अनुयायी मक्का की यात्रा करते हैं। उमरा की यात्रा हज यात्रा से कुछ मायनों में अलग है। हज की यात्रा जहां एक खास महीने में ही की जाती है वहीं उमरा पूरे साल कभी किया जै सकता है।
#PICTURES: In an air full of spirituality, pilgrims end their nearly 30-month-long longing and wait to touch the Holy #Kaaba as well as to engage in earnest prayers under the shade of Islam’s holiest shrine following the removal of preventive barriers. pic.twitter.com/GswDkBQn1Y
— Saudi Gazette (@Saudi_Gazette) August 3, 2022
उमरा और हज में अंतर
इस्लाम को मानने वाले शारीरिक रूप से सक्षम और आर्थिक रूप से मजबूत लोगों के लिए हज एक फर्ज है जबकि उमरा एक स्वैच्छिक है। हज इस्लामी कैलेंडर के आखिरी महीने की 8-13 तारीख के बीच किया जाता है जबकि उमरा के लिए समय की बाध्यता नहीं है। उमरा साल में कभी भी मक्का में जाकर किया जा सकता है। इस्लाम को मानने वाला कोई भी व्यक्ति कभी भी उमरा कर सकता है। उमरा दो घंटे के अंदर तेजी से किया जाने वाला आध्यात्मिक कर्मकांड है जबकि हज कई दिनों तक चलनेवाली लंबी प्रक्रिया का नाम है। हज और उमराह करनेवाले तीर्थयात्रियों को काबा के इर्द गिर्द चक्कर लगाना होता है। उमरा के दौरान श्रद्धालु एक खास लिबास पहनते हैं।
क्या है पवित्र काला पत्थर
मक्का में पवित्र काबा के पूर्वी कोने में एक काला पत्थर लगा है जिसे अरबी में अल-हजर-अल-असवद कहा जाता है। इस पवित्र काले पत्थर को इस्लाम से पहले से ही दुनिया में मौजूद माना जाता है। कहा जाता है कि ये पत्थर एडम और ईव के समय से ही दुनिया में मौजूद है। उमरा के दौरान मुस्लिम धर्मावलंबी इस पवित्र पत्थर को छूकर और चूमकर प्रार्थना करते हैं। ऐसी मान्यता है कि यह पत्थर पहले सफेद रंग का हुआ करता था लेकिन इसे छूने वाले लोगों पापों का भार उठाने की वजह से इसका रंग काला हो गया।