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उम्मीद से ज्यादा तेजी से बंद हो रहे हैं कोयला संयंत्र

By भाषा | Updated: November 23, 2021 14:15 IST

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(जेम्स हा और एलिसन रीव, ग्रैटन इंस्टीट्यूट)

मेलबर्न, 23 नवंबर (द कन्वरसेशन) ग्लासगो में अंतरराष्ट्रीय जलवायु शिखर सम्मेलन का उद्देश्य "कोयला शक्ति को इतिहास में बदल देना" है। कोयला खपत करने वाले कुछ प्रमुख देश 2030 के दशक में जीवाश्म ईंधन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने पर सहमत हुए हैं, लेकिन ऑस्ट्रेलिया उनमें शामिल नहीं है।

2050 तक कोई नया उत्सर्जन नहीं करने और पुराने उत्सर्जनों को हटाने के लक्ष्य तक पहुंचने की अपनी हाल ही में जारी योजना के तहत, संघीय सरकार ने एक ऐसा परिदृश्य तैयार किया जहां बिजली क्षेत्र 2050 में अब भी कोयले पर निर्भर है - लेकिन बहुत सीमित स्तर तक।

कोयले को जिंदा रखने की संघीय सरकार की जिद के बावजूद राज्य इसे चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन एक उलझा हुआ और राज्य-दर-राज्य दृष्टिकोण लगभग निश्चित रूप से उपभोक्ताओं के लिए भारी कीमत चुकाने वाला परिणाम है, अगर राष्ट्रीय स्तर पर एक विश्वसनीय, स्थायी जलवायु और ऊर्जा नीति नहीं बनती है तो।

हाल ही में ग्रैटन इंस्टीट्यूट के विश्लेषण में पाया गया है कि अगर कोयले के उपयोग को अच्छी तरह से प्रबंधित किया जाता है, तो हम कम लागत पर बिजली पा सकते हैं और उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।

कोयला अर्थशास्त्र आज के ढांचे के अनुकूल नहीं

ऑस्ट्रेलिया उपभोग से कहीं अधिक कोयले का निर्यात करता है। लेकिन हमारे पास अब भी 25 गीगावाट कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्र हैं, जिनमें से 23 राष्ट्रीय विद्युत बाजार (एनईएम) के लिए बिजली का उत्पादन करते हैं। कोयले से चलने वाले ये ऊर्जा संयंत्र पुराने हो रहे हैं - इनमें से दो-तिहाई 2040 तक बंद होने वाले हैं।

बाजार की स्थिति इन संयंत्रों के लिए लाभदायक बने रहना कठिन बना रही है, क्योंकि हाल के वर्षों में अक्षय ऊर्जा का उपयोग बढ़ गया है। छतों पर लगे सौर संयंत्रों ने ग्रिड-बिजली की मांग को नाटकीय ढंग से कम कर दिया है।

जिस दिन प्रचुर मात्रा में धूप निकलती है और हवा चलती है उस दिन थोक बिजली की कीमतें नियमित रूप से इतनी घटा दी जाती हैं कि उनके दाम नेगेटिव में चले जाते हैं जिससे उस वक्त बिजली पैदा कर रहे जनरेटरों को एक तरह से अर्थदंड दिया जाता है।

इतना ही नहीं, कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्र बैटरी, जलविद्युत बांध और प्रतिक्रियाशील गैस से चलने वाले जनरेटर की तुलना में कम लचीले होते हैं। इससे कोयला संयंत्रों के लिए बिजली की कीमतें अधिक होने पर उत्पादन बढ़ाना मुश्किल हो जाता है, या कीमतें कम या नेगेटिव होने पर उत्पादन कम हो जाता है।

कोयले से चलने वाले जनरेटर का अर्थशास्त्र बहुत सारे सौर और पवन-चालित बिजली वाली प्रणालियों के अनुकूल नहीं है।

उम्मीद से पहले बंद हो रहे कोयला संयंत्र

खराब अर्थशास्त्र - उच्च रखरखाव लागत और तकनीकी विफलता के बढ़ते जोखिम के साथ - पुराने पड़ रहे कोयला संयंत्रों को चलाते रहने का औचित्य साबित करना मुश्किल है। अब तक तीन संयंत्रों को बंद करने की तारीख करीब आ गई है।

तेजी से बंद किए जाने का मतलब है कि भावी वर्षों में कोयला उत्पादन क्षमता घटेगी। उदाहरण के लिए, यलोर्न और एरिंग संयंत्रों के जल्दी बंद होने से 2030 में अपेक्षित कोयला उत्पादन क्षमता 1.5 गीगावाट कम हो जाएगी। लेकिन बंद करने की मौजूदा कार्यक्रम सूची से 2040 के बाद भी ऑस्ट्रेलिया में कम से कम छह कोयले से चलने वाले संयंत्र काम करते रहेंगे।

जैसा कि जुलाई में सीएसआईआरओ ने कहा था, यह इस सदी में वैश्विक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के पेरिस समझौते के लक्ष्य का अनुसरण करने वाले ऑस्ट्रेलिया के साथ असंगत है।

तो असल में राज्य कर क्या रहे हैं?

कोयला संयंत्रों को बंद किए जाने के पीछे इनके अर्थशास्त्र के साथ-साथ राजनीतिक कारण है।

हमें मजबूत, राष्ट्रीय नीति की जरूरत है

ग्रैटन इंस्टीट्यूट के विश्लेषण से पता चलता है कि बिना कोयले वाली ज्यादातर नवीकरणीय प्रणाली - और गैस की सीमित भूमिका - उत्सर्जन को सस्ते में कम करते हुए एक विश्वसनीय बिजली आपूर्ति बनाए रख सकती है। बेशक, कोयले से एक व्यवस्थित निकास सुनिश्चित करने के लिए चुनौतियां सामने आएंगी।

उदाहरण के लिए, कोयला संयंत्रों के अप्रत्याशित रूप से बंद होने या ठप पड़ने से बिजली आपूर्ति में कमी हो सकती है क्योंकि बिजली बाजार में निवेशकों के पास नई क्षमता के निर्माण के लिए पर्याप्त समय नहीं है।

कोयले से निकासी के समन्वय के लिए एक राष्ट्रीय नीति बिजली व्यवस्था के लिए अनिश्चितताओं को कम करेगी।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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