चीन ने पाया कोरोना वायरस पर काबू, 22 मई से आयोजित करेगा संसद का वार्षिक सत्र
By भाषा | Published: April 29, 2020 10:55 AM2020-04-29T10:55:37+5:302020-04-29T10:57:57+5:30
चीन ने कोरोना वायरस पर काफी हद तक काबू पा लिया है. चीन में इस बीमारी का केंद्र रहे वुहान ने हाल ही में 16 अस्थायी अस्पतालों को बंद कर दिया और रविवार को आखिरी
चीन 22 मई से संसद का वार्षिक सत्र आयोजित करेगा। पहले संसद सत्र पांच मई से शुरू होना था लेकिन कोरोना वायरस वैश्विक महामारी के कारण यह स्थगित हो गया था। सरकारी समाचार एजेंसी शिन्हुआ ने बुधवार को बताया कि नेशनल पीपुल्स कांग्रेस (एनपीसी) की स्थायी समिति के नियमित सत्र में यह फैसला लिया गया। उसने बताया कि मार्च की शुरुआत में होने वाले 13वीं एनपीसी के तीसरे सत्र को कोरोना वायरस के कारण स्थगित कर दिया गया था। अब यह बीजिंग में 22 मई से शुरू होगा।
चीन में बुधवार तक संक्रमित लोगों की संख्या 82,858 पर पहुंच गई जिनमें 648 वे मरीज भी शामिल हैं जिनका अब भी इलाज चल रहा है और 77,555 लोगों को अस्पतालों से छुट्टी दे दी गई। चीन में दूसरे देशों से आए रोगियों की संख्या 1,639 पर पहुंच गई है जिनमें से 552 का इलाज चल रहा है और 21 लोगों की हालत गंभीर बनी हुई है। चीन में संक्रमितों की संख्या में कमी होने के साथ ही बीजिंग में अधिकारी कोविड-19 के लिए खास तौर पर बनाए एक अस्पताल से सभी मरीजों को छुट्टी देने के बाद इसे बंद कर देंगे।
कोविड-19 प्रकोप के बीच ब्रिक्स देशों को सही कदम उठाने चाहिये: चीन
चीन ने कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर अमेरिका तथा अन्य देशों की ओर से बढ़ते दबाव के बीच मंगलवार को ब्रिक्स देशों से कोविड-19 महामारी से निपटने के लिये एकजुट रहने और सही कदम उठाने के लिये कहा। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने ब्रिक्स देशों के विदेश मंत्रियों के साथ वीडियो कांफ्रेंसिंग के दौरान कहा कि दुनिया के कई हिस्सों में कोविड-19 के तेजी से प्रसार ने पूरे विश्व में लोगों की जान और स्वास्थ्य को गंभीर खतरे में डाल दिया है। इससे दुनियाभर में लोगों की आवाजाही बाधित हुई है।
साथ ही इसने ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) के सामने भी गंभीर चुनौती पेश की है। वांग ने कहा, ''क्या हमें विज्ञान और तर्क को हावी होने देना चाहिए या राजनीतिक विभाजन पैदा करना चाहिए, सीमाओं पर सहयोग को कम करना चाहिए या खुद को अलग-थलग कर लेना चाहिये, बहुपक्षीय समन्वय को बढ़ावा देना चाहिए या एकतरफावाद का पालन करना चाहिए? हम सभी को इन सवालों के ऐसे जवाब देने चाहिये जो इतिहास की कसौटी पर खरे उतरें।''