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‘ग्रेट बैरियर रीफ’ को खतरे की सूची में न डालने से संकट केवल टला है, ख्त्म नहीं हुआ है

By भाषा | Updated: July 25, 2021 17:09 IST

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(जॉन सी डे, स्कॉट एफ हेरॉन और टेरी ह्यूज, जेम्स कुक विश्वविद्यालय)

केयर्न्स, 25 जुलाई (द कन्वरसेशन) विश्व धरोहर समिति ने शुक्रवार को ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ के ‘खतरे में नहीं होने’ की घोषणा की है। यह निर्णय लेते समय ‘इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर’ (आईयूसीएन) तथा यूनेस्को विश्व धरोहर केंद्र के सुझाव की अनदेखी की गई। यह सुझाव, ऑस्ट्रेलियाई वैज्ञानिक विशेषज्ञों ने प्रवाल की चट्टानों की खराब होती हालत के विश्लेषण के आधार पर तैयार किया था।

कई प्रकार से इस समिति का यह निर्णय अपेक्षित था। ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इसके लिए समिति के सदस्यों की लॉबिंग की थी जैसा कि वह पहले भी करती आ रही थी। समिति के 21 सदस्यों में से अधिकतर में इस बात को लेकर सहमति थी कि इस समय खतरे की सूची न बनाई जाए।

इसके विपरीत ऑस्ट्रेलिया से अनुरोध किया गया था कि वह ‘रीफ’ के लिए यूनेस्को/आईयूसीएन निगरानी अभियान में शामिल हो और फरवरी 2022 तक रिपोर्ट पेश करे। इस निर्णय से संकट केवल टल गया है, समाप्त नहीं हुआ। इससे उस अकाट्य साक्ष्य में परिवर्तन नहीं होता कि ‘ग्रेट बैरियर रीफ’ पर खतरनाक प्रभाव पड़ रहे हैं।

‘कोरल ब्लीचिंग’ और समुद्री गर्मलहर का इस पर लगातार प्रभाव पड़ रहा है। रीफ को ‘खतरे की सूची’ में शामिल करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य मौजूद हैं और इसमें अगले एक साल तक सुधार नहीं होने वाला।

राजनीतिक विकर्षण

पिछले महीने विश्व धरोहर समिति ने रीफ को खतरे की सूची में डालने के लिए अपना मसौदा निर्णय जारी किया जिसमें उन कारणों का उल्लेख किया गया जिसकी वजह से रीफ को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली थी और अब इसमें कमी आ रही है। इसमें जल प्रदूषण और कोरल ब्लीचिंग शामिल है। मसौदा निर्णय में इस पर चिंता व्यक्त की गई थी कि ऑस्ट्रेलिया ने ‘रीफ 2050’ योजना के मुख्य लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए पर्याप्त काम नहीं किया।

इसके जवाब में सरकार ने कहा था कि यह एकतरफा निर्णय है और यूनेस्को सचिवालय ने यह सुझाव देते समय नियत प्रक्रिया का पालन नहीं किया। यह भी कहा गया था कि मसौदा सुझाव देते समय चीन ने हस्तक्षेप किया था। मसौदा निर्णय आने के बाद इसे बदलने के लिए अभियान चलाया गया। पर्यावरण मंत्री सुसन ले ने कई देशों के राजदूतों से मुलाकात की।

सरकार ने 13 देशों और यूरोपीय संघ के राजदूतों को आमंत्रित किया और कहा कि पिछले दो साल में प्रवाल की चट्टानों में वृद्धि हुई है। ऐसा पहली बार नहीं हुआ था जब ऑस्ट्रेलिया ने विश्व धरोहर समिति के सदस्यों को अपने पक्ष में करने के लिए ‘लॉबिंग’ की। वर्ष 1999 में काकाडु राष्ट्रीय उद्यान को खतरे की सूची में डालने के दौरान भी ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने इसका विरोध किया था।

जलवायु परिवर्तन पर अधिक ध्यान केंद्रित करना

वर्तमान बैठक के दौरान, विश्व धरोहर समिति ने यूनेस्को की मसौदा कार्रवाई नीति को मंजूरी दी थी जो विश्व धरोहर स्थलों के संरक्षण और सुरक्षा के लिए दिशा निर्देश देगी। इस नीति को संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस साल स्वीकृति दी जाएगी। लेकिन रीफ को सूची में शामिल न किया जाए इसके लिए सरकार ने तर्क दिया था कि यह नीति केवल एक मसौदा है।

प्रवाल की चट्टान (रीफ), धरती पर सबसे बड़े संरक्षित समुद्री क्षेत्रों में से एक है। चूंकि ऑस्ट्रेलिया प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन के मामले में विश्व में अग्रणी देशों में से एक है और अन्य देशों के मुकाबले जलवायु परिवर्तन पर कार्रवाई करने की अधिक क्षमता रखता है, इसलिए ऑस्ट्रेलिया द्वारा की गई कार्रवाई पर सबकी नजर रहना लाजमी है। कल रात लिए गए निर्णय में जलवायु परिवर्तन मुख्य मुद्दा था।

सदस्य इस पर सहमत थे कि जलवायु परिवर्तन न केवल ग्रेट बैरियर रीफ के लिए बल्कि अन्य विश्व धरोहरों के लिए भी सबसे बड़ा खतरा है। स्पष्ट है कि समिति ने निर्णायक फैसले लेने की बजाय अपने सिर से बला को टालने का काम किया है।

खतरे की सूची में आना सजा नहीं है

यह याद रखना जरूरी है कि बैठक के दौरान यूनेस्को और समिति ने स्पष्ट कर दिया कि खतरे की सूची में डाला जाना कोई प्रतिबंध या सजा नहीं है। बल्कि इसके जरिये विश्व धरोहर पर मंडरा रहे संकट और भावी पीढ़ियों के लिए उसके संरक्षण के प्रति अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित कराया जाता है। संरक्षण के यह प्रयास, स्थानीय, राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर किये जाने चाहिए।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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