डोनाल्ड ट्रम्प सरकार ने H1B वीजा के लिए कड़े किए नियम, भारत पर पड़ेगा गहरा असर
By रामदीप मिश्रा | Published: February 23, 2018 08:36 PM2018-02-23T20:36:14+5:302018-02-23T20:36:14+5:30
एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है। यह किसी कर्मचारी को अमेरिका में एक बार में तीन साल काम करने के लिए जारी किया जाता है।
अमेरिका की सरकार ने एच1बी वीजा जारी करने के लिए नियमों को और कड़ा कर दिया है, जिसके चलते भारतीयों को वीजा पाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है। दरअसल, एच1बी वीजा एक तरह की तत्काल सेवा है। 15 दिन के भीतर 1225 डॉलर की फीस देकर अमरीका के लिए वीजा मिल जाता है। अमेरिका में एच-1बी वीजा पाने वालों में 70 प्रतिशत भारतीय हैं।
अब नई नीति के मुताबिक भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कंपनियों को साबित करना होगा कि जिस नौकरी या कार्य के लिए एच1बी वीजा पर कुशल कारीगर को बुलाया जा रहा है वह विशिष्ट प्रकार का है और उसकी बहुत ज्यादा आवश्यकता है। इसके लिए सरकार ने गुरुवार को सात पेज का दस्तावेज जारी किया, जिसमें नए नियमों का जिक्र किया गया है।
नए नियम के तहत एच1बी वीजा अमेरिका के नागरिकता और आव्रजन विभाग को जारी करने की अनुमति होगी और कहा जा रहा है कि इस वीजा की अवधि को तीन साल से कम किया जा सकता है। इसस पहले अमेरिकी सरकार 3 साल के लिए वीजा जारी करती थी। यह नियम लागू हो गया है।
जानिए क्या है एच1बी वीजा?
एच-1बी वीजा एक गैर-प्रवासी वीजा है। यह किसी कर्मचारी को अमेरिका में एक बार में तीन साल काम करने के लिए जारी किया जाता है। अमेरिका में कार्यरत कंपनियों को यह वीजा ऐसे कुशल कर्मचारियों को रखने के लिए दिया जाता है जिनकी अमेरिका में कमी हो। इसे पाने वाले कर्मचारी की सैलरी कम से कम 60 हजार डॉलर यानी करीब 40 लाख रुपए सालाना होना जरूरी है।
एच-1बी वीजा का सबसे ज्यादा इस्तेमाल टीसीएस, विप्रो, इंफोसिस और टेक महिंद्रा जैसी 50 से ज्यादा भारतीय आईटी कंपनियों के अलावा माइक्रोसॉफ्ट और गूगल जैसी बड़ी अमेरिकी कंपनियां भी करती हैं। इस वीजा के तहत हर साल 85,000 पेशेवर को वीजा दिया जाता है। एक अनुमान के अनुसार इसका 75 प्रतिशत भारतीय लाभ उठा लेते हैं। अनुमान के अनुसार, तीन लाख भारतीय एच1बी वीजा पर अमेरिका में काम कर रहे हैं।