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अफगानिस्तान : वैश्विक हेरोइन कारोबार पर संघर्ष के मायने

By भाषा | Updated: August 16, 2021 13:25 IST

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(जोनाथन गुडहैंड, लंदन विश्वविद्यालय)

लंदन, 16 अगस्त (द कन्वरसेशन), अफगानिस्तान में लंबे समय से जारी लड़ाई छह अगस्त को संभावित ऐतिहासिक मोड़ पर उस समय पहुंच गई जब तालिबानी लड़ाकों ने ईरानी सीमा के नजदीक 63 हजार आबादी वाले सीमावर्ती अफगान कस्बे जरांज को अपने कब्जे में ले लिया। भौगोलिक और राजनीतिक रूप से हाशिये पर रहे जरांज पहली सूबाई राजधानी थी जो तेजी से बढ़ते तालिबान के कब्जे में आई।

इससे पहले के हफ्तों में तालिबान की बढ़त शहरों से दूर के इलाकों में थी और उसका देश के 421 जिलों में से करीब आधे जिलों पर कब्जा हो चुका था। हालांकि, इस सफलता और अफगान शस्त्र बलों के टूटते मनोबल ने तालिबान को आबादी वाले अहम केंद्रों की ओर मुड़ने को प्रेरित किया। जरांज पर कब्जे के बाद उन्होंने नजदीकी फाराह और उत्तर अफगानिस्तान के सात सूबों की राजधानियों पर भी कब्जा कर लिया।

तालिबान को इतनी तेजी से मिली बढ़त ने कई को आश्चर्यचकित किया लेकिन वर्ष 2020 में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के बाद ही शक्ति संतुलन स्थानांतरित हो गया था, जिसमें अमेरिका ने अफगानिस्तान से अपने सैनिकों की वापसी की प्रतिबद्धता जताई थी।

इसमें तालिबान के लिए पाकिस्तान के समर्थन एवं मदद के साथ-साथ अफगानिस्तान सरकार द्वारा अमेरिका-तालिबान समझौते के तहत पांच हजार तालिबान लड़ाकों को कैद से रिहा करने की कार्रवाई ने भी अहम भूमिका निभाई। अंतरराष्ट्रीय और क्षेत्रीय शक्तियों द्वारा समर्थित शांतिवार्ता मौजूदा हिंसा को रोकने या किसी विश्वसनीय शांति समझौते तक पहुंचने में असफल रही।

हालांकि, सभी की नजरें कमजोर होती शांति प्रक्रिया और सैन्य पहलु पर केंद्रित है और कम इस बात पर चर्चा हो रही है कि इन घटनाओं का अफीम और हेरोइन सहित आर्थिक पहलुओं पर क्या असर होगा।

इतिहास दोहराया गया

यह हमें जरांज की ओर दोबारा ले जाता है। यह संयोग नहीं है कि तालिबान ने सीमावर्ती कस्बों पर ध्यान केंद्रित की, क्योंकि इनमें बड़ी आर्थिक संभावना है जिसका लाभ सैन्य और राजनीतिक बढ़त पर भी होता है। तालिबान का इस समय अफगानिस्तान को आने वाले दस अंतरराष्ट्रीय मार्गों पर कब्जा है। इनमें जरांज के अलावा पाकिस्तान के प्रवेश द्वार स्पिन बोल्दाक, ईरान को जोड़ते मुख्य रास्ते इस्लाम किला, ताजिकिस्तान को उत्तरी अफगानिस्तान से जोड़ने वाले रास्ते पर स्थित कुंदुज प्रमुख है।

हाल के इतिहास में इन कारोबारी शहरों के महत्व रेखांकित हुआ है।वर्ष 1980 के दशक में रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) की वापसी के बाद रूसी और अमेरिका सहायता कम हुई तब यहां लड़ रहे गुटों के लिए इन रास्ते से होने वाले कारेाबार पर नियंत्रण अहम हो गया। इनमें मादक पदार्थ से चलने वाली अर्थव्यवस्था भी शामिल है जो 1990 के शुरुआती दशक में बढ़ी।

इसकी अहम भूमिका एक बार फिर सामने आई है। वर्ष 1990 के दशक में जरांज का निर्माण पश्चिम की तरह हुआ था जो अवैध कारोबार का केंद्र था और इसका सीमा के दोनों ओर बलूच जनजातियों का संबंध था जो ईंधन, मादक पदार्थ और मानव तस्करी में विशेषज्ञ थे। इसी तरह की गतिविधि आज भी चल रही है। फराह और हेलमंद प्रांत में उगाई जाने वाली अफीम और उससे प्राप्त हेरोइन की तस्करी सीमा के इस पार से उस पार की जाती है और इसके साथ ही मानव तस्करी भी फल फूल रही है।

इसके साथ ही जरांज वैध कारोबार के केंद्र के रूप में भी उभरा है जहां से ईंधन, निर्माण सामग्री, उपभोक्ता सामान और खाद्य वस्तुओं का व्यापार होता है।यह काबुल को ईरान के बंदरगाह शहर चाबहार को जोड़ने वाले गलियारे पर पड़ता है। वैध-अवैध व्यापार की वजह से होने वाले निवेश की वजह से आसपास के इलाके में आबादी भी बढ़ी और यह कर का अहम स्रोत भी हो गया।

पूरे देश में अफगानिस्तान सरकार के घरेलू राजस्व में आयात शुल्क की हिस्सेदारी करीब 50 प्रतिशत है। इस्लाम किला से ही हर महीने दो करोड़ डॉलर का राजस्व प्राप्त होता है। ऐसे में इसपर तालिबान के कब्जे से उसकी आय बढ़ी जबकि अफगान सरकार के राजस्व में कमी आई, वह भी उस समय जब अंतरराष्ट्रीय दानकर्ता हाथ खींच रहे हैं।

तालिबान ने अर्थव्यवस्था के अहम बिंदुओ- अफीम उत्पादन केंद्रों के साथ बाजार और पाकिस्तान, ईरान और ताजिकिस्तान- को जाने वाले रास्ते पर कब्जा कर लिया है, इससे उन्हें व्यवस्थित कर लगाने को मिलेगा।

हेरोइन और अफीम

संयुक्त राष्ट्र के मादक पदार्थ और अपराध कार्यालय द्वारा जारी नवीनतम सर्वेक्षण रिपोर्ट के मुताबिक 2020 में अफीम उत्पादन क्षेत्र में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसका संबंध राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष, सूखा, मौसमी बाढ़, अंतरराष्ट्रीय मदद में कमी और रोजगार के अवसरों में कमी से है। इसकी वजह से अफीम आधारित अर्थव्यवस्था के जारी रहने की आशंका है। अफगानिस्तान के दूरदराज के इलाके या कस्बे में अफीम की अर्थव्यवस्था अफगानों के लिए जीवनरेखा की तरह काम करती है जो पहले ही मानवीय संकट से गुजर रहे हैं।

चाहे कोई भी परिस्थिति हो- तालिबान की जीत, गृह युद्ध या समझौता- अफगानिस्तान के अवैध मादक पदार्थ अर्थव्यवस्था में बदलाव की हाल-फिलहाल बदलाव की संभावना कम ही है।

Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।

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