अफगानिस्तान में 20 साल तक चले आतंकवाद विरोधी युद्ध में कितना खर्च हुआ?
By सतीश कुमार सिंह | Updated: August 16, 2021 19:17 IST2021-08-16T19:16:08+5:302021-08-16T19:17:41+5:30
Afghanistan Crisis: अमेरिकी सेना के जाने के साथ यह संकटग्रस्त अफगान सरकार से देश की सत्ता पर कब्जा करने के लिए तैयार है।

युद्ध के समय अमेरिकी सैनिकों की संख्या एक लाख 10 हजार थी। आज यह 2000 तक पहुंच ही रह गई है। (फाइल फोटो)
Afghanistan Crisis: अफगानिस्तान के राष्ट्रपति भवन पर तालिबान लड़ाकों का कब्जा कर लिया। अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों (20 साल) में सुरक्षा बलों को तैयार करने के लिए अमेरिका और नाटो द्वारा अरबों डॉलर खर्च किए जाने के बावजूद तालिबान ने आश्चर्यजनक रूप से एक सप्ताह में लगभग पूरे अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया।
कुछ ही दिन पहले, एक अमेरिकी सैन्य आकलन ने अनुमान लगाया था कि राजधानी के तालिबान के दबाव में आने में एक महीना लगेगा। काबुल का तालिबान के नियंत्रण में जाना अमेरिका के सबसे लंबे युद्ध के अंतिम अध्याय का प्रतीक है, जो 11 सितंबर, 2001 को अलकायदा प्रमुख ओसामा बिन लादेन के षड्यंत्र वाले आतंकवादी हमलों के बाद शुरू हुआ था।
अमेरिका ने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर खर्च किए
अमेरिका ने अफगानिस्तान में अरबों डॉलर खर्च किए और नतीजा शून्य। लाखों सैनिक भेजे। पुनर्निर्माण पर भी अरबों डॉलर खर्च किए। पिछले 20 वर्षों में, तालिबान को बाहर करने के लिए अमेरिका ने अफगानिस्तान में खरबों डॉलर झोंक दिए हैं, एक प्रयास जो स्पष्ट रूप से असफल रहा
युद्ध के समय अमेरिकी सैनिकों की संख्या एक लाख 10 हजार थी। आज यह 2000 तक पहुंच ही रह गई है। अमेरिकी कांग्रेस की रिसर्च के अनुसार 2020 की तिमाही में 7800 सैनिक थे। अफगान युद्ध पर अमेरिका का सालाना खर्च सौ अरब डॉलर पार कर गया था।
2001 से 2019 के बीच कुल 822 खर्च किए
2018 में सालाना खर्च 45 अरब डॉलर था। अमेरिकी रक्षा मंत्रालय ने कहा कि अक्टूबर 2001 से लेकर सितंबर 2019 के बीच 778 अरब खर्च हुए। इस दौरान अफगानिस्तान में विकास पर 44 अरब डॉलर खर्च हुए। एक और आंकड़े के अनुसार अमेरिका ने 2001 से 2019 के बीच कुल 822 खर्च किए। ब्राउन यूनिवर्सिटी ने कहा कि 978 अरब डॉलर खर्च हुए।
देश की सामरिक भौगोलिक स्थिति और क्षेत्र की राजनीति (तालिबान के समर्थन सहित) पर एक नज़र हमें बताती है कि यह परिणाम अपरिहार्य था। अफगानिस्तान रणनीतिक रूप से मध्य और दक्षिण एशिया के बीच स्थित है - तेल और प्राकृतिक गैस से समृद्ध क्षेत्र। यह विभिन्न जातीय समूहों के इसे पैतृक मातृभूमि बनाने के प्रयासों से भी जूझता रहा है।
पाकिस्तान से लगातार हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा
पश्तून आबादी (और कुछ हद तक बलूच आबादी) इसमें विशेष रूप से शामिल हैं। इन और अन्य कारणों से, अफगानिस्तान को लंबे समय से सोवियत संघ/रूस, ब्रिटेन, अमेरिका, ईरान, सऊदी अरब, भारत और निश्चित रूप से पाकिस्तान से लगातार हस्तक्षेप का सामना करना पड़ा है। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच तनावपूर्ण संबंध जगजाहिर हैं।
1947 में जब पाकिस्तान ने अपनी स्वतंत्रता प्राप्त की, तो संयुक्त राष्ट्र में इसके गठन के खिलाफ मतदान करने वाला अफगानिस्तान एकमात्र देश था। कुछ तनाव अफ़गानिस्तान के डूरंड रेखा को मानने से इनकार करने से उत्पन्न हुआ - 1893 में जल्दबाजी में खींची गई 1600 मील की सीमा जिसने हजारों पश्तून जनजातियों को बांट दिया।
दोनों देशों में पश्तून एक अलग राष्ट्र, जो उत्तरी पाकिस्तान से गुजरेगा, बनाने की मांग न कर बैठें इस डर से पाकिस्तान लंबे समय से अफगानिस्तान को इस्लामी देश बनाने की मांग करता रहा है। वह अफगानिस्तान के लिए पश्तून के मुकाबले एक इस्लामी पहचान का समर्थन करके भारत के खिलाफ रणनीतिक पकड़ मजबूत करना चाहता है।
अमेरिका काबुल हवाईअड्डे पर 6,000 सैनिकों की तैनाती करेगा
अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे और राष्ट्रपति अशरफ गनी के शासन के घुटने टेकने के बीच अमेरिका ने कहा है कि अपने नागरिकों, अपने मित्रों और सहयोगियों की अफगानिस्तान से सुरक्षित वापसी के लिए वह काबुल हवाईअड्डे पर 6,000 सैनिकों को तैनात करेगा। विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने महत्वपूर्ण सहयोगी देशों के अपने समकक्षों से बात की। हालांकि इनमें भारत शामिल नहीं था।
तालिबान की बढ़ती पकड़ के बीच अमेरिका पर आतंकी खतरों को लेकर बढ़ी चिंता
अमेरिका के एक शीर्ष जनरल ने कहा कि तालिबान द्वारा संचालित अफगानिस्तान से अमेरिका को बढ़े हुए आतंकी खतरों का सामना करना पड़ सकता है। यह चेतावनी ऐसे वक्त आई है जब अमेरिका के समर्थन वाली अफगान सेना के इतनी तेजी से पांव उखड़ने को लेकर इन खतरों का अनुमान लगाने वाली खुफिया एजेंसियों पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
अमेरिकी खुफिया अनुमान में एक हफ्ते से भी कम समय पहले कहा गया था विद्रोही काबुल को 30 दिनों में घेर सकते हैं, लेकिन दुनिया ने रविवार को चौंकाने वाली तस्वीरें देखीं कि तालिबान लड़ाके अफगान राष्ट्रपति के कार्यालय में खड़े हैं जबकि अफगान नागरिकों और विदेशियों की भीड़ देश के बाहर जाने की कोशिश में हवाईअड्डों पर पहुंच रहे हैं।
अमेरिका के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं
ज्वाइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ के अध्यक्ष जनरल मार्क मिले ने रविवार को सिनेटरों को बताया कि अमेरिकी अधिकारियों के अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों के पुनर्गठन की गति के बारे में अपने पिछले आकलन को बदलने की उम्मीद है।
इस पूरे मामले की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति ने यह जानकारी ‘एसोसिएटेड प्रेस’ दी। पेंटागन के शीर्ष नेताओं ने जून में कहा था कि अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की वापसी के दो साल के अंदर वहां अल-कायदा जैसे आतंकी समूह फिर से संगठित हो सकते हैं और अमेरिका के लिये खतरा पैदा कर सकते हैं।
तालिबान द्वारा अलकायदा के सरगनाओं को शरण देने के कारण दो दशक पहले अमेरिका ने तालिबान पर हमला किया था। विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान और अलकायदा का गठबंधन बना हुआ है और दूसरे हिंसक समूहों को भी नए शासन के तहत सुरक्षित पनाहगाह मिल सकती है।




