स्टेटस सिंबल को छोड़ परंपरा को दी तरजीह, शादी करने पालकी में दूल्हा और बैलगाड़ी में पहुंची बारात, ये था कारण
By अभिषेक पारीक | Published: June 21, 2021 02:09 PM2021-06-21T14:09:48+5:302021-06-21T14:22:01+5:30
उत्तर प्रदेश के देवरिया की एक शादी में स्टेटस सिंबल को दरकिनार कर जिन परंपराओं को हम छोड़ चुके हैं, उन्हें अपनाया गया। इस बारात में दूल्हा पालकी से अपने ससुराल पहुंचा और बारातियों के लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था की गई थी।
आधुनिक शादियों में जमकर पैसा खर्च किया जाता है। साथ ही जब तक लग्जरी गाड़ियों की कतार न लगी हो तब तक बारात ही क्या? हालांकि उत्तर प्रदेश के देवरिया की एक शादी में स्टेटस सिंबल को दरकिनार कर जिन परंपराओं को हम छोड़ चुके हैं, उन्हें अपनाया गया। इस बारात में दूल्हा पालकी से अपने ससुराल पहुंचा और बारातियों के लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था की गई थी। यह बारात जहां से भी गुजरी देखने वालों की आंखें उधर ही जम गईं।
बारात कुशहरी गांव से बरडीहा गांव गई। कई जगह पर बारात को रोककर उसका स्वागत किया गया। रामपुर कारखाना विकासखंड के कुशहरी गांव निवासी छोटेलाल पाल धनगर की शादी जिले के मदनपुर थाना क्षेत्र के बलहीडा गांव के रामानंद पाल धनगर की पुत्री सरिता से तय हुई थी।
रविवार के दिन दोपहर 12 बजे पीले रंग के पर्दों से सजी 12 बैलगाड़ियां छोटेलाल के घर पहुंची। उनके गांव से बलहीडा की दूरी करीब 32 किमी है। यह सफर पूरा कर जब बैलगाड़ियां दुल्हन के गांव पहुंची तो इन्हें देखने के लिए मानो पूरा गांव उमड़ आया। बारातियों को लेकर बैलगाड़ियां और दूल्हे को लेकर पालकी गांव पहुंची थी। जिसे देखकर गांव वालों की भीड़ जुट गई।
नृत्य करते लोक कलाकार भी आकर्षण का केंद्र
इस मौके पर फरवाही नृत्य करते लोककलाकार भी आकर्षण का केंद्र रहे। युवाओं के लिए यह बारात किसी अजूबे से कम नहीं थी। बहुत से लोगों ने अपने जीवन में इतनी सजी धजी बैलगाड़ियां और पालकी कभी नहीं देखी थी और उन्होंने शायद ही कल्पना की हो कि कोई दूल्हा इस दौर में पालकी में भी आ सकता है।
फिल्म इंडस्ट्री से मिली प्रेरणा
दूल्हा छोटेलाल मुंबई फिल्म इंडस्ट्री में आर्ट डिपार्टमेंट में काम करता है। फिल्मों में अक्सर पुराने जमाने के दृश्य दिखाए जाते हैं, जिनके लिए बैलगाड़ियां और पालकी की जरूरत होती है। इसलिए जब बारात ले जाने की बात आई तो छोटेलाल को प्रेरणा फिल्म इंडस्ट्री से ही मिली। पुराने जमाने की तरह बारात निकालने की योजना पर परिवार और रिश्तेदार पहले तो तैयार ही नहीं हुए। बाद में उन्हें छोटेलाल की जिद माननी पड़ी। हालांकि बैलगाड़ियों की व्यवस्था के लिए परिवार के साथ ही गांव के लोगों को भी मशक्कत करनी पड़ी।