नई दिल्ली:सुप्रीम कोर्ट ने एक्टिविस्ट अधिवक्ता (वकील) प्रशांत भूषण को न्यायपालिका के प्रति उनके दो अपमानजनक ट्वीट के लिये उन्हें शुक्रवार (14 अगस्त) को अवमानना का दोषी ठहराया है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा ने कहा कि इस अपराध के लिये प्रशांत भूषण को दी जाने वाली सजा के बारे में 20 अगस्त को बहस सुनी जायेगी। कोर्ट के फैसले के बाद सोसल मीडिया पर प्रशांत भूषण ट्रेंड में आ गए हैं। ट्विटर पर कई लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने ट्वीट कर लिखा है, इस फैसले से सुप्रीम कोर्ट ने खुद को नीचा दिखाया है और गणतंत्र को भी नीचा दिखाया है। भारतीय लोकतंत्र के लिए ये एक काला दिन है।
ऑथर सबा नकवी ने भी सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर ट्वीट कर अपनी प्रतिक्रिया दी है। सबा नकवी ने लिखा है, ये असंतोषजनक फैसला है।
अभिजीत मजुमदार ने लिखा, आज, प्रशांत भूषण को काफी खुश होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने उनके मूल्यों को बरकरार रखा है।
बीजेपी के सोशल मीडिया प्रभारी पुनित अग्रवाल ने SC के फैसले पर लिखा, वास्तव में माननीय सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक अच्छा फैसला लिया गया है। प्रशांत भूषण और उनके पसंद को सबक सिखाने की जरूरत है। यह दंड सभी को यह जानने के लिए पर्याप्त गंभीर होना चाहिए कि वे कानून से ऊपर नहीं हैं।
फिल्ममेकर अशोक पंडित ने लिखा है, आज का दिन सफल हो गया।
जानें प्रशांत भूषण और कंटेम्ट ऑफ कोर्ट का पूरा विवाद
न्यायालय की अवमानना कानून 1971 के तहत( कंटेम्ट ऑफ कोर्ट्स ऐक्ट ) दोषी व्यक्ति को छह महीने तक की साधारण कैद या दो हजार रूपए जुर्माना या दोनों की सजा हो सकती है। न्यायमूर्ति अरूण मिश्रा, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने पांच अगस्त को इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुये कहा था कि इस पर फैसला 14 अगस्त को सुनाया जायेगा।
अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने उन दो ट्वीट का बचाव किया था, जिसमें कथित तौर पर अदालत की अवमानना की गई है। उन्होंने कहा था कि वे ट्वीट न्यायाधीशों के खिलाफ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और वे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं करते। न्यायालय ने इस मामले में एक याचिका का संज्ञान लेते हुये प्रशांत भूषण के खिलाफ आपराधिक अवमानना की कार्यवाही के लिये उन्हें 22 जुलाई को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।
पीठ ने भूषण के ट्वीट का जिक्र करते हुये कहा था कि ये बयान पृथमदृष्टया जनता की नजरों में सुप्रींंम कोर्ट के संस्थान और विशेषकर प्रधान न्यायाधीश के पद की गरिमा को कमतर करने में सक्षम हैं।
प्रशांत भूषण ने 142 पन्नों के जवाब में अपने दो ट्वीट पर कायम रहते हुए कहा था कि विचारों की अभिव्यक्ति, ‘हालांकि मुखर, असहमत या कुछ लोगों के प्रति असंगत’ होने की वजह से अदालत की अवमानना नहीं हो सकती। उन्होंने यह भी दलील दी थी कि नागरिकों को जवाबदेही और सुधार की मांग करने से और इसके लिये जनमत तैयार करने से रोकना ‘तर्कसंगत प्रतिबंध’ नहीं है। उन्होने यह भी कहा था कि तर्कसंगत आलोचना का गला घोंटने के लिये संविधान के अनुच्छेद 129 का इस्तेमाल नही किया जा सकता है।