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बिहार में फिर सियासी उथल पुथल की अटकलें! नीतीश कुमार से उपेंद्र कुशवाहा के मुलाकात के क्या हैं मायने

By विनीत कुमार | Published: December 6, 2020 01:34 PM2020-12-06T13:34:22+5:302020-12-06T13:39:27+5:30

उपेंद्र कुशवाहा के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुलाकात की खबरों के बाद कई तरह की अटकलें शुरू हो गई हैं। सूत्रों के अनुसार कुशवाहा की पार्टी RLSP का जेडीयू में विलय हो सकता है।

Highlightsनीतीश कुमार से सीएम आवास पर उपेंद्र कुशवाहा ने 2 दिसंबर की रात को की थी मुलाकातउपेंद्र कुशवाहा की पत्नी के सक्रिय राजनीति में कदम रखने की अटकलें, कुशवाहा के भी MLC बनाए जाने की चर्चा

बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के अभी एक महीने भी पूरे नहीं हुए हैं कि राज्य की सियासत की रेसेपी में कुछ और नया पकने-पकाने की खबरें आनी लगी हैं। आगे क्या होने वाला है, ये तो अभी कोई नहीं जानता कि लेकिन राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेन्द्र कुशवाहा की मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की आई खबरों ने सभी का ध्यान खींचा है। 

मिली जानकारी के अनुसार बीते 2 दिसंबर को उपेन्द्र कुशवाहा ने पटना में एक अणे मार्ग स्थित सीएम हाउस में नीतीश कुमार से मुलाकात की थी। 

इस मुलाकात की अब आई खबर के बाद से ही ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि जल्द RLSP का जदयू में विलय हो सकता है। सूत्रों के अनुसार जदयू इस विलय की बात को उपेंद्र कुशवाहा के सामने रख चुकी है। हालांकि संभव है कि कुशवाहा आगे बढ़ने से पहले सोचने-विचारने के लिए कुछ और समय लें।

सूत्र ये भी बता रहे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता सिन्हा सक्रिय राजनीति में कदम रख सकती हैं। वहीं, कुशवाहा के भी MLC बनाए जाने की चर्चाएं चल रही हैं। ये बात भी सामने आ रही है कि कुशवाहा पूर्व में लोकसभा और राज्य सभा के सांसद रह चुके हैं, मोदी सरकार के साथ केंद्र में मत्री रह चुके हैं ऐसे में शायद एमएलसी बनने की बात को लेकर वे बहुत सहज नहीं हों।

वहीं, इस पूरी चर्चा के बीच जदयू के प्रदेश अध्यक्ष सांसद बशिष्ठ नारायण सिंह ने कहा है कि नीतीश और कुशवाहा दोनों नेता एक ही धारा से हैं। अगर दोनों एक साथ आ जाते हैं तो क्या हर्ज है। बता दें कि नीतीश और कुशवाहा का मजबूत वोट बेस करीब-करीब एक जैसा ही है यानी ओबीसी कोयरी-कुर्मी वोट बेस।

नीतीश-कुशवाहा के साथ आने से क्या होगा

हाल में हुए विधानसभा चुनाव में उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी कोई भी सीट हासिल नहीं कर सकी थी। वे असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM और मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में उतरे थे। ओवैसी तो बाजी मारने में कामयाब रहे लेकिन कुशवाहा के हाथ चुनाव में कुछ नहीं लगा। ऐसे में ये तो साफ है कि उनके पास ज्यादा विकल्प हैं नहीं।

ऐसा भी नहीं है कि उपेंद्र कुशवाहा के नीतीश के साथ आने से बिहार विधानसभा में कोई बड़ा फेरबदल फिलहाल हो जाएगा। हालांकि, राजनीति हमेशा से संभावनाओं का खेल रहा है और नीतीश पिछले कई मौकों पर अपने फैसलों से चौंकाते रहे हैं।

जो एक बात तय है वो ये कि एनडीए से अलग होने और बिहार विधानसभा चुनाव में पार्टी के खराब प्रदर्शन के बाद उपेंद्र कुशवाहा के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती अपनी राजनीतिक विरासत बचाने की है।

वैसे यहां ये भी बता दें कि हाल में 17वीं बिहार विधानसभा के पहले सत्र के अंतिम दिन 27 नवंबर को नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की नीतीश कुमार पर टिप्पणी को लेकर उपेन्द्र कुशवाहा ने भी नाराजगी जताई थी। कुशवाहा ने तेजस्वी यादव के आचरण को अशोभनीय बताते हुए उनकी बातों को अमर्यादित बताया था। 

साथ ही कुशवाहा ने ये भी कहा था कि ऐसी घटनाओं में वे सीएम नीतीश कुमार के साथ हमेशा खड़े रहेंगे। सूत्रों के अनुसार कुशवाहा के इसी बयान के बाद उनके नीतीश से इस सियासी संवाद की शुरुआत हुई।

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