Lok Sabha Elections 2024: एनडीए में शामिल होंगे पीस पार्टी के मुखिया मो. अयूब!, 'पसमांदा वोट बैंक' पर मजबूत दावेदारी, जानें क्या है यूपी में समीकरण
By राजेंद्र कुमार | Published: November 24, 2023 12:58 PM2023-11-24T12:58:34+5:302023-11-24T12:59:27+5:30
Lok Sabha Elections 2024: साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी के चार विधायक चुनाव जीते. इस विधायकों ने विधानसभा में मुस्लिम समाज के मसलों को उठाया.
Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश में राजनीति उलटफेर देखने को मिलेगा। 2024 लोकसभा चुनाव से पहले कई दल इधर से उधर होंगे। डॉक्टर मोहम्मद अयूब, पीस पार्टी के मुखिया हैं। मो. अयूब में वर्ष 2008 में पीस पार्टी का गठन किया था. देखते ही देखते पीस पार्टी यूपी के मुस्लिम समाज की एक चहेती पार्टी बन गई.
साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी के चार विधायक चुनाव जीते. इस विधायकों ने विधानसभा में मुस्लिम समाज के मसलों को उठाया. वर्तमान में भी पीस पार्टी पसमांदा मुस्लिम समाज के मसलों को उठाते हुए राजनीति कर रही है, लेकिन अब पीस पार्टी के मुखिया मो. अयूब बीते पंद्रह वर्षों की एकला चलो की राजनीति में बदलाव करना चाहते हैं.
मो. अयूब को अब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ हाथ मिलाने में परहेज नहीं है. उनका लगता है कि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा बनकर भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने में कोई बुराई नहीं है. इस सोच के अब वह एनडीए में शामिल होने के प्रयास में जुट गए है. नेताओं का दावा है कि जल्दी ही मो. अयूब भी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) की तर्ज पर एनडीए में शामिल होंगे.
पीस पार्टी का इतिहास और सफर:
पीस पार्टी के मुखिया मो. अयूब एनडीए से गठबंधन को लेकर अभी खुलकर कुछ भी बोलना नहीं चाहते. वह कहते हैं बीते 15 साल के दौरान हुए तीन लोकसभा और तीन विधानसभा चुनावों में पीस पार्टी भाजपा के खिलाफ चुनाव लड़ चुकी हैं. हमने फरवरी 2008 में पीस पार्टी बनाई थी. वर्ष 2009 में हुए लोकसभा चुनाव में हमने 21 सीटों पर चुनाव लड़ा था.
इसके बाद 2012 में पहला विधानसभा चुनाव लड़ा. तब पार्टी 208 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और चार सीटें जीती थी. डॉ. अयूब भी खलीलाबाद सीट से विधायक चुने गए थे. हालांकि इसके बाद किसी भी चुनाव में पार्टी नहीं जीती लेकिन सभी चुनावों में हिस्सा लिया.
करीब डेढ़ दशक के इस सियासी सफर के बाद उन्हें अब लग रहा है कि सपा, बसपा और कांग्रेस ने मुस्लिम समाज को सिर्फ एक वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया है. इन तीनों दलों ने यूपी में चुनाव के दौरान मुस्लिम समाज का वोट तो लिया लेकिन जब सत्ता में आए तो इस समाज को किनारे कर दिया.
इन तीनों ही दलों ने मुस्लिम समाज को पार्टी और सरकार में बड़ी भागेदारी नहीं दी. मो. अयूब के अनुसार, इन दलों द्वारा मुस्लिम समाज की जो उपेक्षा की गई उसके चलते ही पीस पार्टी को यूपी में पहचान मिली. यूपी के पूर्वांचल में पसमांदा मुस्लिमों के बड़े नुमाइंदे के तौर पीस पार्टी स्थापित हुई. साल 2012 में हुए विधानसभा चुनाव में पीस पार्टी चार सीटों पर चुनाव जीती.
इस जीत से पीस पार्टी ने यूपी में मुस्लिम समाज पर अपनी पकड़ का एहसास कराया था, लेकिन गठबंधन के दौर में भी किसी बड़े दल का साथ न मिलने की वजह से पीस पार्टी अलग-थलग पड़ी रही. इस दरमियान मो अयूब को जेल भी जाना पड़ा और पार्टी को तमाम तरह की मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पार्टी कमजोर हुई तो मो. अयूब ने नए साथी की तलाश शुरू की.
मो. अयूब के इस कथन का अर्थ हैः
अपने इस मिशन के तहत ही बीते दिनों पीस पार्टी के मुखिया मो. अयूब ने यह कहा कि यूपी में पसमांदा मुस्लिम समाज जागरूक हो गया है. वह अब सिर्फ वोट बैंक बन कर नहीं रहना चाहता है. अब तक यह समाज सिर्फ धर्मनिरपेक्षता के नाम पर भाजपा को हराने के लिए वोट करता था, लेकिन अब उसे यह समझ में आने लगा है कि इस विचारधारा से मुस्लिम समाज को नुकसान पहुंच रहा है.
इसलिए मुस्लिम समाज ने तय किया है कि अब जो दल हमें हिस्सेदारी देगा, उसके साथ रहेंगे. हमारी अब किसी दल से दुश्मनी नहीं है, जो हमें भागीदारी देगा, हम भी उसका साथ देंगे. चाहे वह एनडीए ही क्यों न हो. और यदि मौका मिलेगा तो वह एनडीए से गठबंधन करने से गुरेज नहीं करेंगे.
डॉ. अयूब के इस कथन को अब भाजपा की तरफ भी दोस्ती का हाथ बढ़ाने के प्रयास बताया जा रहा है. अब देखना यह है कि मो. अयूब के इस कथन के बाद भाजपा उन्हे कैसे अपने साथ लेने की पहल करती है. चर्चा है कि सूबे में जिस उप मुख्यमंत्री की पहल पर ओपी राजभर एनडीए में शामिल हुए उन्ही उप मुख्यमंत्री को अब मो.अयूब को भी एनडीए में लाने का दायित्व सौंपा गया है.