इस गणतंत्र दिवस जरूर जाएं इन जगहों पर, देशभक्ति की भावना से ओत-प्रोत हो जाएंगे
By धीरज पाल | Published: January 22, 2018 04:58 PM2018-01-22T16:58:58+5:302018-01-22T18:34:21+5:30
नई दिल्ली के इंडिया गेट से लेकर अमृतसर के वाघा बॉर्डर और इलाहाबाद के बीचों-बीच स्थित चंद्रशेखर पार्क तक आपको बहुत करीब से भारत के प्रति अपने प्यार का अनुभव हो सकता है।
69 वें गणतंत्र दिवस के मौके पर अगर आप भी देशप्रेम की भावना से भर जाना चाहते हैं तो हम आपको कुछ ऐसी जगहों के बारे में बताने जा रहे हैं जहां की हवाओं में ही आप देशभक्ति को महसूस कर सकते हैं। नई दिल्ली के इंडिया गेट से लेकर अमृतसर के वाघा बॉर्डर और इलाहाबाद के बीचों-बीच स्थित चंद्रशेखर पार्क तक आपको बहुत करीब से भारत के प्रति अपने प्यार का अनुभव हो सकता है। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी इन जगहों पर इस गणतंत्र दिवस जाना आपके लिए यादगार बन सकता है।
इंडिया गेट, नई दिल्ली
भारत की सबसे महत्वपूर्ण ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है इंडिया गेट... जिसकी डिजाइनिंग सर लैंडसियर लूट्यन्स ने की थी। इसका निर्माण सन 1931 में हुआ था। 42 मीटर की ऊंचाई का इंडिया गेट प्रथम विश्व और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध की याद दिलाता है। शुरुआत में इस स्मारक का नाम 'ऑल इंडिया वॉर मेमोरियल' रखा गया था। 1919 में प्रथम विश्व युद्ध और तीसरे एंग्लो-अफगान युद्ध में ब्रिटिश इंडियन आर्मी के लगभग 90,000 सैनिकों ने शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्य को बचाने में अपनी जान गंवा दी थी। इन्हीं सैनिकों के सम्मान के लिए इंडिया गेट का निर्माण किया गया था।
इंडिया गेट की दिवारों पर उन सैनिकों के नाम भी उकेरे गए हैं। गेट के नीचे निरंतर जलती अमर जवान ज्योति और राइफल पर रखी टोपी... 1971 में पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध की याद दिलाती है। हर 26 जनवरी के दिन भारत के राष्ट्रपति और अन्य कई मुख्य गणमान्य जन इंडिया गेट के नीचे स्थित अमर ज्योति जवान पर उन शहीदों को श्रद्धाजंलि देने आते हैं।
वाघा बॉर्डर, अमृतसर
जवानों की बहादुरी, देशभक्ति और तिरंगे की शान का खूबसूरत नजारा वाघा बॉर्डर पर ही देखने को मिलता है। वाघा बॉर्डर एक सैनिक चौकी है, जो अमृतसर और लाहौर के बीच स्थित है। यह भारत-पाकिस्तान की इकलौती सड़क सीमा रेखा है। इस सीमा चौकी के प्रवेश द्वार को स्वर्ण जयंती गेट कहा जाता है। एक तरफ भारत और दूसरी तरफ पाकिस्तान, दोनों मुल्कों के जवानों की आक्रामक मुद्रा को देख सकते हैं। यहां की हर शाम 30 मिनट परेड के साथ बिगुल और ड्रम बजने के साथ ढलती है। हर साल 26 जनवरी और 15 अगस्त को यहां का नजारा देखने लायक होता है।
जलियांवाला बाग
पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग भारत के सबसे पुराने जख्म की याद दिलाता है। 13 अप्रैल 1919 की बैसाखी के दिन कुछ लोग यहां भारत को स्वतंत्रता दिलाने के संबंध में बातचीत करने के लिए जुटे थे, तभी जनरल डायर ने वहां पहुंच कर अंधा-धुन गोलियां बरसाने का आदेश दे दिया। इस ओपन फायर में हजारों लोगों की मौत हो गई। कितनी ही महिलाएं गोलियों की मार से बचने के लिए अपने बच्चों संग कुएं में कूद गईं। उन सभी मासूम शहीदों की याद दिलाता है जलियांवाला बाग।
चंद्रशेखर आजाद पार्क, इलाहाबाद
इलाहाबाद शहर के बीचों-बीच स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क, स्वतंत्रता सैनानी 'चंद्रशेखर आजाद' को समर्पित है। देश के सबसे बड़े क्रांतिकारियों में से एक चंद्रशेखर आजाद को जान से मारने के लिए ब्रिटिश सरकार ढूंढ रही थी। तब इस पार्क को अल्फ्रेड पार्क के नाम से जाना जाता था। फरवरी 1931 में जब चंद्रशेखर आजाद अपने मित्र सुखदेव राज से इस पार्क में आगामी योजना बनाने के लिए मिले, तभी अचानक उन्हें अंग्रेजी पुलिस ने उन्हें घेर लिया। जैसे-तैसे उन्होंने सुखदेव राज को भगाया, इसके बाद उन्होंने खुद को गोली मार ली क्योंकि वे अंग्रेजों की गोलियों से नहीं मरना चाहते हैं। इस पार्क में स्थित इलाबाद संग्रहालय में उनकी पिस्तौल रखी गई है।
राजघाट, दिल्ली
30 जनवरी 1948 में महात्मा गांधी की हत्या के बाद सारा देश शोक में डूब गया और 31 जवनरी 1948 को इसी घाट पर उनका दाह-संस्कार किया गया था। दरअसल, राजघाट का नाम यमुना नदी के तट पर स्थित पुरानी दिल्ली (शाहजहानाबाद) के एक घाट के नाम पर रखा गया है। का। राष्ट्रपिता को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए यहां एक स्मारक बना हुआ है। राजघाट परिसर के पास महात्मा गांधी के साथ कई अन्य महत्वपूर्ण राजनीतिज्ञों के स्मारक स्थित हैं। इन स्मारकों के अलग अलग नाम है जिसमें पंडित जवाहर लाल नहेरू का शांतिवन, लाल बहादुर शास्त्री का विजयघाट, इंदिरा गांधी का शक्ति स्थल, ज्ञानी जैल सिंह का एकता स्थल और राजीव गांधी की वीर भूमि शामिल हैं।
ऑगस्ट क्रांति मैदान, मुंबई
भारतीय स्वतंत्रता आन्दोलन के अंतिम चरण में 9 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने मुंबई (बम्बई) के एक मैदान में एक सार्वजनिक सम्मेलन में जनता को ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ का मूलमंत्र दिया। जिस मैदान में बापू ने इस अभियान की नींव रखी थी, वह वर्तमान में अगस्त क्रांति मैदान के नाम से जाना जाता है। तब से हर साल इस मैदान में 'भारत छोड़ो आंदोलन' की वर्षगांठ को मनाने के लिए विशेष आयोजन किया जाता है।
सेकुलर जेल
अंग्रेजी सरकार द्वारा भारत के स्वतंत्रता सैनानियों पर किए गए अत्याचारों की गवाही देता है 'सेकुलर जेल'। इसकी नींव 1897 में रखी गई थी। यह जेल अंडमान निकोबार द्वीप की राजधानी पोर्ट ब्लेयर में है। इस जमाने में इस जेल को काला पानी के नाम से जाना जाता था, जिसमें अंग्रेजों ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सैनानियों को कैद कर रखा था। इस जेल के अंदर 694 कोठरियां हैं। इन कोठरियों को बनाने का उद्देश्य बंदियों के आपसी मेल जोल को रोकना था।