Vishwakarma Puja 2019: हिंदू धर्म में हर त्योहार या व्रतों की तिथियों का निर्धारण आमतौर पर पंचांग के अनुसार ही किया जाता है। वहीं, विश्वकर्मा पूजा का त्योहार हर साल 17 सितंबर को ही मनाया जाता है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर ऐसा क्यों है कि हर साल 17 सितंबर को ही विश्वकर्मा पूजा क्यों मनाते हैं? आखिर क्या है इसकी वजह, इस बारे में जानने से पहले आइए जानते हैं कि भगवान विश्वकर्मा कौन हैं, क्या है उनकी कथा और क्या है महत्व
Vishwakarma Puja: विश्वकर्मा पूजा से जुड़ी कथा
भगवान विश्वकर्मा को देवताओं का शिल्पकार कहा जाता है। मान्यता है कि उन्होंने ही देवताओं के महल, स्वर्ग वगैरह का निर्माण किया। साथ ही उन्होंने ही इंद्रपुरी, यमपुरी, महाभारत काल की द्वारिका, हस्तिनापुर नगरी सहित त्रेतायुग में रावण की लंका का निर्माण किया था। साथ ही उन्होंने देवताओं के अस्त्र-शस्त्र का भी निर्माण किया। इसमें भगवान विष्णु का सुदर्शन चक्र, भगवान शंकर का त्रिशूल, यमराज का कालदंड आदि शामिल हैं।
हिंदू मान्यताओं में एक तरह से भगवान विश्वकर्मा को पहला इंजीनियर भी कहा जाता है। भगवान विश्वकर्मा के जन्म से जुड़ी भी मान्यता बहुत रोचक है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु की नाभि से निकले एक कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। ब्रह्मा जी के पुत्र 'धर्म' हुए। धर्म के सातवें संतान वास्तु हैं। मान्यता है कि विश्वकर्मा जी का जन्म वास्तु देव की 'अंगिरसी' नाम की पत्नी से हुआ।
Vishwakarma Puja: विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को ही क्यो मनाते हैं?
दरअसल, विश्वकर्मा जी के जन्म को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि भगवान विश्वकर्मा का जन्म अश्विन मास की कृष्णपक्ष की प्रतिपदा तिथि को हुआ। वहीं, कुछ धर्मपंडितों का मानना है कि उनका जन्म भाद्रपद मास की अंतिम तिथि को हुआ।
इन दोनों से अलग सबसे प्रचलित मान्यता के अनुसार विश्वकर्मा पूजन का मुहूर्त सूर्य के परागमन के आधार पर तय किया जाना चाहिए। यह दिन आमतौर पर हर साल 17 सितंबर को ही पड़ता है। इसलिए विश्वकर्मा पूजा 17 सितंबर को मनाया जाता है। वैसे एक मान्यता ये भी है कि माघ माह की त्रयोदशी के दिन विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था।