हिन्दू धर्म में प्रत्येक माह दो बार एकादशी आती है। एक बार कृष्ण पक्ष की एकादशी और दूसरी बार शुक्ल पक्ष की एकादशी मनाई जाती है। एकादशी दरअसल एक तिथि है जिसे हिन्दू धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। आज यानी 30 अप्रैल 2019, दिन मंगलवार को वरूथिनी एकादशी है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। मान्यता है कि इस एकादशी पर व्रत एवं विष्णु पूजन करने वाले साधक को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। उसके सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
वरूथिनी एकादशी 2019: तिथि, महत्व, पूजा का शुभ मुहूर्त (Varuthini Ekadashi time, date, puja muhurat)
हिन्दू धर्म में वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को 'वरूथिनी एकादशी' के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्त कराकर मोक्ष के द्वार खोलने वाली मानी जाती है। इस वर्ष 30 अप्रैल को वरूथिनी एकादशी मनाई जा रही है। मान्यता है कि इसदिन व्रत करने वाले साधक को कठोर नियमों का पालन करना चाहिए। तभी श्रीहरि प्रसन्न होकर मन्नत पूरी करते हैं।
पंचांग के अनुसार 29 अप्रैल की रात 11 बजकर 4 मिनट पर ही कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि का शुभारम्भ हो गया था। किन्तु अगले दिन यानी 30 अप्रैल की सुबह सूर्योदय के बाद से ही एकादशी की उदया तिथि मानी जा रही है। इस प्रकार 30 अप्रैल को ही व्रत, पूजा और अन्य शास्त्रीय कर्म-कांड किए जाएंगे। एकादशी तिथि का समापन 1 मई, दिन बुधवार की आधी रात 12 बजकर 18 मिनट पर होगा।
वरूथिनी एकादशी व्रत नियम (Varuthini Ekadashi vrat niyam)
वरूथिनी एकादशी को हजारों वर्षों की तपस्या जितना फल दिलाने वाली तिथि माना जाता है इसलिए इस तिथि का व्रत कर रहे साधकों को विशेष तप नियमों का पालन करना चाहिए। वरूथिनी एकादशी व्रत में नमक का सेवना बिलकुल ना करें। तामसिक भोजन से दूर रहें। केवल फलाहार का सेवना करें। दोपहर के समय ना सोएं। पूजा-पाठ पर अधिक ध्यान दें। एकादशी पर किसी से मांगकर भोजन ना करें।
वरूथिनी एकादशी व्रत कथा (Varuthini Ekadashi vrat katha in hindi)
एक समय की बात है, नर्मदा नदी के किनारे मानधाता नाम का एक राजा रहता था, वह भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। वह रोजाना जंगल जाता और विष्णु तपस्या में लीन हो जाता था। एकदिन राजा जब तप में मग्न था जो वहां एक भालू आया। उसने राजा पर हमला बोल दिया। लेकिन विष्णु भक्ति में लीन राजा टस से मस ना हुआ।
हमले के दौरान भालू ने राजा का पैर खा लिया। फिर भी राजा की तपस्या भंग ना हुई। क्रोध में आकार भालू ने राजा को जंगल में घसीटना शुरू कर दिया। राजा ने मदद की पुकार के लिए विष्णु को याद किया। भगवान अपने बहकत की मदद करने के लिए प्रकट हुए और सुदर्शन चक्र से भालू का गला काट दिया। राजा के प्राण बचाने के बाद श्रीह्री ने राजा को बताया कि यह तुम्हारे पिछले जन्म का पाप था। यदि इससे मुक्ति चाहते हो तो मथुरा जाओ और वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशे एतिथि पर व्रत करो।
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राजा ने ऐसा ही किया। उसने मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत किया और अपने पापों से मुक्ति पाई। इस कथा को आधार मानकर आज भी वरूथिनी एकादशी पर व्रत एवं पूजन किया जाता है। यह एकादशी पिछले और वर्तमान जन्म के पापों के कष्ट से मुक्त कराती है। साथ ही सुख, संपत्ति और सुखद भविष्य भी दिलाने वाली मानी जाती है।