Vaisakhi 2020: जब गुरु गोविंद सिंह ने मांगा अपने पांच शिष्यों का सिर, कमरे से निकले लगी रक्त की धारा-पढ़िए बैसाखी से जुड़ी रोचक कथा

By मेघना वर्मा | Published: April 13, 2020 09:33 AM2020-04-13T09:33:43+5:302020-04-13T10:05:15+5:30

फसल पकने का ये पर्व असम में भी मनाया जाता है जहां इसे बिहू कहते हैं। वहीं बंगाल में भी इस पर्व को बैसाख कहते हैं। केरल में ये पर्व विशु कहलाता है। 

Vaisakhi 2020: history of Visakhi or baisakhi parv, guru govind singh old story for vaisakhi | Vaisakhi 2020: जब गुरु गोविंद सिंह ने मांगा अपने पांच शिष्यों का सिर, कमरे से निकले लगी रक्त की धारा-पढ़िए बैसाखी से जुड़ी रोचक कथा

Vaisakhi 2020: जब गुरु गोविंद सिंह ने मांगा अपने पांच शिष्यों का सिर, कमरे से निकले लगी रक्त की धारा-पढ़िए बैसाखी से जुड़ी रोचक कथा

Highlightsहिन्दू धर्म के अनुसार बैसाखी के ही दिन मां गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था।बैसाखी पर्व को कृषि का प्रमुख पर्व भी कहा जाता है।

देशभर में आज बैशाखी का पावर पर्व मनाया जाएगा। लॉकडाउन के कारण लोग अपने घरों में रहने को मजबूर है मगर फिर भी अपने परिवार वालों के साथ मिलकर वो इस पर्व को सेलिब्रेट करेंगे। माना जाता है कि आज ही के दिन गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। बैसाखी का पर्व पंजाब कुछ प्रमुख पर्वों में से एक है।

बैसाखी के दिन सिक्खों के 10वें गुरु गोबिंद सिंह ने साल 1699 में बैसाखी के दिन ही आनंदपुर साहिब में खालसा पंत की नींव रखी थी। इसी से जुड़ी एक रोचक कथा सामने आती है। आइए आपको बताते हैं-

लोक कथाओं के अनुसार साल 1699 में सिक्खों के अंतिम गुरु गोविंद सिंह जी ने एक दिन अपनी सभी सिक्खों को आंमत्रित किया और उनकी परीक्षा लेनी चाही। उन्होंने अपनी तलवार बाहर निकाली और बोले मुझे एक सिर चाहिए। सभी यह बात सुनकर स्तब्ध रह गए। तभी एक शिष्य ने हामी भरी। गुरु गोविंद सिंह उसे अपने साथ एक कमरे में ले गए और थोड़ी दे बाद कमरे से रक्त का धारा निकलने लगी। 

ये देख बाहर बैठे सभी शिष्य स्तब्ध रह गए। उन्हें अपने गुरु का यह व्यवहार समझ नहीं आ रहा था। इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी फिर बाहर आए और फिर उन्होंने एक सिर मांगा। पहले सारे शिष्य चुप थे, फिर एक ने हामी भर दी। इसके बाद फिर वही सब हुआ। एक-एक के क्रम में गुरु गोविंद सिंह अपने पांच शिष्यों की परीक्षा ली। 

इसके बाद गुरु गोविंद सिंह जी कमरे में गए और पांचों शिष्यों को जीवित वापिस लाए। सारे शिष्य आश्चर्य करने लगे और बहते हुए रक्त का राज जानना चाहा तो गोविंद सिह ने बताया कि अंदर उन्होंने पशुओं की बलि दी है। वो सिर्फ अपने शिष्यों की परिक्षा लेना चाहते थे। जिसमें सभी पास हुए।

इसके बाद गुरु गोविंद सिंह ने अपने पांचों शिष्यों को अमृत का पान कराया और कहा कि वे अब सिंह कहलाएंगे। यही खालसा कहलाएं। जिन्हें निर्देश दिया गया कि उन्हें बाल और दाढ़ी बड़ी रखना है, बालों को संवारने के लिए साथ में कंघा, कृपाण, कच्छा और हाथों में कड़ा पहनना है। इसी खालता पंथ की स्थापना को हर साल बैसाखी के रूप में मनाया जाता है। 

है प्रमुख कृषि पर्व

बैसाखी पर्व को कृषि का प्रमुख पर्व भी कहा जाता है। इस दिन फसल पक कर तैयार होती है। चारों ओर खुशी का माहौल होता है। फसल पकने का ये पर्व असम में भी मनाया जाता है जहां इसे बिहू कहते हैं। वहीं बंगाल में भी इस पर्व को बैसाख कहते हैं। केरल में ये पर्व विशु कहलाता है। 

मां गंगा का हुआ था धरती पर अवतरण

हिन्दू धर्म के अनुसार बैसाखी के ही दिन मां गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था। इसी वजह से इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने की अपनी परंपरा रही है। इस दिन गंगा आरती गाना भी शुभ माना जाता है। मगर इस बार लॉकडाउन के चलते ऐसा नहीं हो सकेगा।

English summary :
Baisakhi Festival History and Significance: 10th Guru of the Sikhs, Gobind Singh laid the foundation stone of Khalsa Panth at Anandpur Sahib on the day of Baisakhi in 1699. An interesting story related to this comes out. Let us tell you-


Web Title: Vaisakhi 2020: history of Visakhi or baisakhi parv, guru govind singh old story for vaisakhi

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