Tulsi Vivah Vrat Katha: यहां पढ़ें तुलसी विवाह की पूरी व्रत कथा

By मेघना वर्मा | Published: November 1, 2019 11:30 AM2019-11-01T11:30:12+5:302019-11-01T11:30:12+5:30

Tulsi Vivah Vrat Katha in Hindi: कार्तिक महीने में तुलसी का विवाह करवाना भी शुभ माना जाता है। बताया जाता है कि जिस घर में तुलसी रहती हैं उस घर से सभी नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाती है।

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Tulsi Vivah Vrat Katha: यहां पढ़ें तुलसी विवाह की पूरी व्रत कथा

Highlightsइस साल तुलसी विवाह 9 नवंबर को पड़ रहा है।कार्तिक महीने में तुलसी का विवाह करवाना भी शुभ माना जाता है।

सनातन धर्म में तुलसी के पौधे की काफी महत्व बताया गया है। कहते हैं जिस घर में तुलसी का वास होता है वहां कभी किसी तरह का क्लेष नहीं होता। वहीं कार्तिक महीने में तुलसी का विवाह करवाना भी शुभ माना जाता है। बताया जाता है कि जिस घर में तुलसी रहती हैं उस घर से सभी नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाती है। सनातन धर्म के अनुसार तुलसी का विवाह शालिग्राम से करवाया जाता है जो भगवान विष्णु के अवतार बताए जाते हैं। इस साल तुलसी विवाह का ये पर्व 9 नवंबर को पड़ रहा है।

कब है तुलसी विवाह

तुलसी विवाह 2019 तिथि- 9 नवंबर 2019 तुलसी विवाह 2019 
द्वादशी तिथि प्रारंभ- दोपहर 12 बजकर 24 मिनट से (8 नवंबर 2019) 
द्वादशी तिथि अंत- दोपहर 2 बजकर 39 मिनट से (9 नवंबर 2019)

तुलसी विवाह की व्रत कथा

प्राचीन काल में एक जलंधर नाम का असुर था। जिसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की भक्त थीं। वहीं वृंदा पतिव्रता भी थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। वहीं असुर जलंधर को इस बात का घमंड भी हो गया। इसके बाद वह स्वर्ग की कन्याओं को परेशान करने लगा। जब सभी देवता इस बात से दुःखी हो गए तो वह भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। 

भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया। उन्होंने छल से वृंदा के पतिव्रत धर्म को नष्ट कर दिया। इसके बाद असुर जलंधर की शक्ति क्षीण हो गई। एक युद्ध में जलंधर मारा गया। जब वृंदा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो वो क्रोधित हुईं और उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। 

देवताओं की प्रार्थना पर वृंदा ने अपना शाप वापित तो ले लिया लेकिन भगवान विष्णु अपने किये पर काफी लज्जित थे। अतः वृंदा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपना एक रूप पत्थर रूप में प्रकट किया जो शालिग्राम कहलाया।

भगवान विष्णु को दिया शाप वापस लेने के बाद वृंदा जलंधर के साथ सती हो गई। वृंदा के राख से तुलसी का पौधा उगा। वृंदा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के शालिग्राम रूप का विवाह तुलसी से कराया। बस इसी पौराणिक घटना को याद रखने के लिए हर साल कार्तिक शुक्ल एकादशी यानी देव प्रबोधनी एकादशी के दिन तुलसी का विवाह शालिग्राम के साथ कराया जाता है।

भगवान विष्णु ने वृंदा से कहा कि तुम अगले जन्म में तुलसी के रूप में प्रकट होगी और लक्ष्मी से भी अधिक मेरी प्रिय रहोगी। तुम्हारा स्थान मेरे शीश पर होगा। मैं तुम्हारे बिना भोजन ग्रहण नहीं करूंगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु के प्रसाद में तुलसी अवश्य रखा जाता है। बिना तुलसी के अर्पित किया गया प्रसाद भगवान विष्णु स्वीकार नहीं करते हैं।

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