नवरात्रि स्थापना के साथ आज है मातामह श्राद्ध, जान लें ये जरूरी बातें

By गुणातीत ओझा | Published: October 17, 2020 01:58 PM2020-10-17T13:58:06+5:302020-10-17T13:58:06+5:30

शक्ति, भक्ति, आस्था और उपासना का प्रतीक नवरात्रि का त्योहार आज से आरंभ हो रहा है। नवरात्रि स्थापना के साथ अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध किया जायेगा। नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है।

Today is Maatamah Shraaddh with Navratri know these important things | नवरात्रि स्थापना के साथ आज है मातामह श्राद्ध, जान लें ये जरूरी बातें

नवरात्रि के साथ आज है मातामह श्राद्ध।

Highlightsघर - घर हुई घट स्थापना, जलेगी अखंड ज्योति और होगा  दुर्गा पाठअधिमास के चलते आज होगा मातामह श्राद्ध, दिवंगत का पुत्र नहीं होने पर नाती कर सकता है तर्पण

शक्ति, भक्ति, आस्था और उपासना का प्रतीक नवरात्रि का त्योहार आज से आरंभ हो रहा है। नवरात्रि स्थापना के साथ अधिकांश घरों में मातामह श्राद्ध किया जायेगा। नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा की उपासना का उत्सव है। नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के नौ अलग-अलग रूप की पूजा-आराधना की जाती है। माता के भक्त पूरे 9 दिनों तक माता की पूजा अर्चना कर मां को प्रसन्न करेगें। नवरात्रि में नौ देवियां अलग-अलग नौ शक्तियों का प्रतीक मानी जाती है। पहले दिन मां शैलपुत्री, दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी, तीसरे दिन मां चंद्रघंटा, चौथे दिन मां कूष्मांडा, पांचवे दिन मां स्कंदमाता, छठे दिन मां कात्यानी, सातवें दिन मां कालरात्रि, आठवें दिन मां गौरी और नवे दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है।

पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तक मनायी जाती है। शरद ऋतु में आगमन के कारण ही इसे शारदीय नवरात्रि कहा जाता है। सर्व पितृ और मातामह (नाना) मातामही (नानी) का श्राद्ध आश्विन शुक्ल प्रतिप्रदा ( नवरात्री) के दिन करते है । इस बार बीच में अधिक मास (पुरुषोत्तम मास) आने से मातामह श्राद्ध 17 अक्टूबर को हो सकेगा। 

संतान ना हाेने की स्थिति में मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है। अक्सर मातामह श्राद्ध पितृ पक्ष की समाप्ति के अगले दिन होता है लेकिन इस बार अधिमास के चलते एक महीने बाद 17 अक्टूबर को होगा। नवमी या अमावस्या के दिन सर्व पितृ श्राद्ध पर तिथि पता नहीं होने पर भी श्राद्ध कर्म हो सकता है। जिनके नाम और गोत्र का पता नहीं हो उनका देवताओं के नाम पर भी तर्पण कर सकते है। परंपरा है कि लोग अपनी संतान नहीं होने पर दत्तक गोद लेते थे ताकि मृत्यु के बाद वाे पिंडदान कर सके। मान्यतानुसार दत्तक पुत्र दो पीढ़ी तक श्राद्ध कर सकता है।

मातामह श्राद्ध में दूसरी पीढ़ी करती है तर्पण-पिंडदान 
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि  दिवगंत परिजन के घर में लड़का ना हो, तो लड़की की संतान यानी नाती भी पिंडदान कर सकता है। मान्यतानुसार लड़की के घर का खाना नहीं खा सकते, इसलिए मातामह श्राद्ध के दिन नाती तर्पण कर सकता है।

क्या होता है मातामह श्राद्ध 
मातामह श्राद्ध, एक ऐसा श्राद्ध है जो एक पुत्री द्वारा अपने पिता व एक नाती द्वारा अपने नाना को तर्पण के रूप में किया जाता है। इस श्राद्ध को सुख शांति का प्रतीक माना जाता है । यह श्राद्ध करने के लिए कुछ आवश्यक शर्तें है अगर वो पूरी न हो तो यह श्राद्ध नहीं किया जाता है। शर्त यह है कि मातामह श्राद्ध उसी महिला के पिता के द्वारा किया जाता है जिसका पति व पुत्र जिंदा हो। अगर ऐसा नहीं है और दोनों में से किसी एक का निधन हो चुका है या है ही नहीं तो मातामह श्राद्ध का तर्पण नहीं किया जाता। 

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त 
नवरात्रि का पर्व आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से आरंभ होगा, जो 17 अक्टूबर को पड़ रही है। इस दिन सूर्य कन्या राशि में, चंद्रमा तुला राशि में विराजमान रहेंगे। नवरात्रि के प्रथम दिन घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रात: 6 बजकर 23 मिनट से प्रात: 10 बजकर 12 मिनट तक है। घटस्थापना के लिए अभिजित मुहूर्त प्रात:काल 11:44 से 12:29 तक रहेगा।

कलश स्थापना 
ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार नवरात्रि में कलश स्थापना का विशेष महत्व है। कलश स्थापना को घट स्थापना भी कहा जाता है। नवरात्रि की शुरुआत घट स्थापना के साथ ही होती है। घट स्थापना शक्ति की देवी का आह्वान है। मान्यता है कि गलत समय में घट स्थापना करने से देवी मां क्रोधित हो सकती हैं। रात के समय और अमावस्या के दिन घट स्थापित करने की मनाही है। घट स्थापना का सबसे शुभ समय प्रतिपदा का एक तिहाई भाग बीत जाने के बाद होता है। अगर किसी कारण वश आप उस समय कलश स्थापित न कर पाएं तो अभिजीत मुहूर्त में भी स्थापित कर सकते हैं।  प्रत्येक दिन का आठवां मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त कहलाता है। सामान्यत: यह 40 मिनट का होता है। हालांकि इस बार घट स्थापना के लिए अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है।

कलश स्थापना की सामग्री 
मां दुर्गा को लाल रंग खास पसंद है इसलिए लाल रंग का ही आसन खरीदें। इसके अलावा कलश स्थापना के लिए मिट्टी का पात्र, जौ, मिट्टी, जल से भरा हुआ कलश, मौली, इलायची, लौंग, कपूर, रोली, साबुत सुपारी, साबुत चावल, सिक्के, अशोक या आम के पांच पत्ते, नारियल, चुनरी, सिंदूर, फल-फूल, फूलों की माला और श्रृंगार पिटारी भी चाहिए।

कलश स्थापना कैसे करें? 
नवरात्रि के पहले दिन यानी कि प्रतिपदा को सुबह स्नान कर लें। मंदिर की साफ-सफाई करने के बाद सबसे पहले गणेश जी का नाम लें और फिर मां दुर्गा के नाम से अखंड ज्योत जलाएं। कलश स्थापना के लिए मिट्टी के पात्र में मिट्टी डालकर उसमें जौ के बीज बोएं। अब एक तांबे के लोटे पर रोली से स्वास्तिक बनाएं। लोटे के ऊपरी हिस्से में मौली बांधें। अब इस लोटे में पानी भरकर उसमें कुछ बूंदें गंगाजल की मिलाएं। फिर उसमें सवा रुपया, दूब, सुपारी, इत्र और अक्षत डालें। इसके बाद कलश में अशोक या आम के पांच पत्ते लगाएं। अब एक नारियल को लाल कपड़े से लपेटकर उसे मौली से बांध दें। फिर नारियल को कलश के ऊपर रख दें। अब इस कलश को मिट्टी के उस पात्र के ठीक बीचों बीच रख दें जिसमें आपने जौ बोएं हैं। कलश स्थापना के साथ ही नवरात्रि के नौ व्रतों को रखने का संकल्प लिया जाता है। आप चाहें तो कलश स्थापना के साथ ही माता के नाम की अखंड ज्योति भी जला सकते हैं।

Web Title: Today is Maatamah Shraaddh with Navratri know these important things

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