Spiritual Story Of Garuda: कैसे पड़ा भगवान विष्णु का नाम ‘गरुड़ध्वज’, जानिए प्रभु की अनुपम ‘श्रीगरुड़गोविन्द’ कथा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: March 7, 2024 06:30 AM2024-03-07T06:30:45+5:302024-03-07T11:36:03+5:30

हिंदू सनातन धर्म में मान्यता है कि गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। यही कारण है कि पौराणिक मान्यताओं में गरुड़ को पक्षीराज कहा गया है।

Spiritual Story Of Garuda: How Lord Vishnu got the name 'Garudadhwaj', know the unique story of Lord 'Shrigarudgovind' | Spiritual Story Of Garuda: कैसे पड़ा भगवान विष्णु का नाम ‘गरुड़ध्वज’, जानिए प्रभु की अनुपम ‘श्रीगरुड़गोविन्द’ कथा

फाइल फोटो

Highlightsहिंदू सनातन धर्म में मान्यता है कि गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैंपौराणिक मान्यताओं में गरुड़ को पक्षीराज कहा गया हैभगवान कृष्ण पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर का वध करने के लिए गये थे

Spiritual Story Of Garuda: हिंदू सनातन धर्म में मान्यता है कि गरुड़ भगवान विष्णु के वाहन हैं। यही कारण है कि पौराणिक मान्यताओं में गरुड़ को पक्षीराज कहा गया है। सनातन धर्म के दो महत्वपूर्ण ग्रंथों रामायाण और महाभारत में गरुण का विशेष उल्लेख मिलता है।

अगर हम रामायण की बात करें तो जब नागपाश का प्रकरण आता है और युद्धभूमि में जब दशानन रावण के बलशाली पुत्र मेघनाथ ने भगवान राम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण को नागपाश में बांधकर मूर्क्षित कर दिया था। तब हनुमान जी उनके प्राणों की रक्षा के लिए गरुड़ को लेकर आये, जिन्होंने नागपाश से प्रभु राम और लक्ष्मण को मुक्त किया।

आज हम उसी गरुड़ की कथा बता रहे हैं, जिनके बारे में महाभारत में लिखा गया है कि भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर बैठकर नरकासुर का वध करने के लिए गये थे। वहीं एक अन्य कथा के अनुसार जब सरोवर में ग्राह (मगरमच्छ) गज का पैर खिचकर उसे गहरे जल में ले जा रहा था तो ग्राह का वध करने के लिए स्वयं भगवान विष्णु गरुड़ पर ही सवार होकर गये थे।

धर्म ग्रंथों के अनुसार पक्षीराज गरुड़ ऋषि कश्यप और विनता के पुत्र हैं। वह सूर्य के सारथी अरुण के छोटे भाई और देव, गंधर्व, दैत्य, दानव, नाग, वानर, यक्ष सहित विभिन्न प्राणियों के सौतेले भाई हैं।

सनातन धर्म के अठारह पुराणों में से एक पुराण को 'गरुड़ पुराण' कहा जाता है। भगवान विष्णु की प्रेरणा से गरुड़जी ने ही इस पुराण को महर्षि कश्यप को सुनाया था। जिसको महाभारत के रचयिता व्यासजी द्वारा संकलित किया गया था।

भगवान विष्णु ने गरुड़ को क्यों बनाया अपना वाहन?

मान्यता है कि एक बार ऋषि कश्यप की दो पत्नियों, विनता और कद्रू में विवाद हो गया। वनिता गरुड़ की माता थी और कद्रू नागों की माता थीं। विवाद में लगे शर्त को हारने के बाद वनिता को कद्रू की दासी बनना पड़ा। इस बात को लेकर गरुड़ बहुत क्रोधित हुए।

गरुड़ आवेश में आकर कद्रू के नाम बेटों यानी अपने सौतेले नाग भाईयों को खाने लगे । इस बात से नागों की माता कद्रू बेहद भयभीत हो गईं और उन्होंने गरुड़ से कहा कि वो यदि वो स्वर्ग से अमृत लाकर उनके मृत नाग बेटों को जीवित कर देंगे तो वो विनता को अपने दासत्व से मुक्त कर देंगी।

नाग माता कद्रू की इस शर्त को सुनकर गरुड़जी अमृत लाने के लिए स्वर्ग पहुंच गये। वहां पर उनका देवताओं से भीषण युद्ध हुआ लेकिन वो अमृत का कलश पाने में सफल हो गये। उसके बाद जब गरुड़ अमृत कुम्भ लेकर स्वर्ग से वापस पृथ्वी की ओर आने लगे तो रास्ते में उनकी मुलाकात भगवान विष्णु से हुई।

गरुड़जी ने भगवान विष्णु को देखकर प्रणाम किया। वहीं विष्णु ने देखा कि गरुड़ के हाथ में अमृत का कलश है लेकिन उसके भीतर स्वयं उसके लिए कोई मोहभाव नहीं है। गरुड़ की निर्लोभता को देखकर भगवान विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने गरुड़ से वर मांगने के लिए कहा।

तब गरुड़जी ने भगवान विष्णु से वर मांगते हुए कहा, "प्रभु मुझे आशीर्वाद दें कि मैं सदैव आपकी ध्वजा पर विराजमान रहूं और बिना अमृत पिये अमरत्व को प्राप्त हो जाऊं।"

गरुड़ से प्रसन्न भगवान विष्णु ने उन्हें अमरत्व का वरदान दिया और अपने ध्वजा में स्थान देते हुए कहा, "गरुड़ आज से तुम मेरे वाहन हुए। तुम मेरे ध्वज में विराजोगे और आज से यह संसार मुझे ‘गरुड़ध्वज’ और ‘श्रीगरुड़गोविन्द’ के नाम से बुलाएगा।"

Web Title: Spiritual Story Of Garuda: How Lord Vishnu got the name 'Garudadhwaj', know the unique story of Lord 'Shrigarudgovind'

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