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शनिदेव की साढ़ेसाती के पीछे है ये पाौराणिक कथा, बचने के लिए जरूर करें ये उपाय

By धीरज पाल | Updated: March 10, 2018 10:34 IST

साढ़े सात साल तक लगने वाली शनिदेव की साढ़ेसाती के पीछे छिपी है एक पौराणिक कथा।

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शनिवार को सूर्य पुत्र शनि देव का दिन माना जाता है।  इस दिन लोग शनि देव की पूजा व अर्चना बड़ी ही आस्था के साथ करते हैं। कोई शनि को प्रसन्न करने के लिए, तो कोई उनकी साढ़ेसाती  से बचने के लिए उनके मंदिर जाता है। शास्त्रों के अनुसार शनि देव की पूजा सूर्यास्त के बाद की जानी चाहिए। शनि मंदिर के पुजारी का मानना है कि शनि देव के दर्शन मात्र से ही वे प्रसन्न नहीं होते हैं।

उन्हें प्रसन्न करने के लिए आपको उनके मंत्रों का जाप करना चाहिए। अगर आप बिना मंत्र के उनकी उपसना या पूजा पाठ करते हैं तो आपकी पूजा अधूरी मानी जाएगी। शनि की साढ़ेसाती से बचने से लेकर उनकी प्रार्थना करने तक के लिए अलग-अलग मंत्र ग्रंथों में मौजूद हैं जिनका जाप करने मात्र से शनि देव प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन क्या आपको मालूम है कि शनि देव को साढ़ेसाती यानी क्रोध का देवता क्यों माना जाता है। इसके पीछे एक पौराणिक कथा प्रचलित है।  

शनि के क्रूर होने का पौराणिक कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार जब शनिदेव छाया के गर्भ में थे तो शिव भक्तिनी छाया ने शिव की तपस्या की। भक्ति में इतनी लीन थी कि उन्हें अपने खाने - पीने तक का ख्याल नहीं रहता था। अपने को इतना तपाया की गर्भ के बच्चे पर भी तप का परिणाम हुआ , और छाया के भूखे प्यासे धुप-गर्मी में तपन से गर्भ में ही शनि का रंग काला हो गया। जब शनि का जन्म हुआ तो सूर्यदेव शनि को काले रंग का देखकर हैरान हो गए। उन्हें छाया पर शक हुआ। उन्होंने छाया का अपमान कर डाला , कहा कि 'यह मेरा बेटा नहीं है |'

शनिदेव के अन्दर जन्म से माँ की तपस्या शक्ति का बल था, उन्होंने देखा कि मेरे पिता , माँ का अपमान कर रहे है। उन्होंने क्रूर दृष्टी से अपने पिता को देखा , तो पिता कि पूरी देह का रंग कालासा हो गया। घोडों की चाल रुक गई और रथ आगे नहीं चल सका। सूर्यदेव परेशान होकर शिवजी को पुकारने लगे। शिवजी ने सूर्यदेव को सलाह दी कि आप पर नारी व पुत्र दोनों की अपमान किया है इसलिए यह दोष लगा है। सूर्यदेव ने अपनी गलती की क्षमा मांगी और तब जाकर उनके घोड़ों की गति बढ़ी।

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दूसरी कथा ये है कि माना जाता है कि शनि की दृष्टि में जो क्रूरता है, वह इनकी पत्नी के शाप के कारण है। ब्रह्मपुराण के अनुसार बचपन से ही शनि देवता भगवान श्रीकृष्ण के परम भक्त थे। वे श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। वयस्क होने पर इनके पिता ने चित्ररथ की कन्या से इनका विवाह कर दिया।

इनकी पत्नी सती-साध्वी और परम तेजस्विनी थी। एक रात वे ऋतु-स्नान करके पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से इनके पास पहुँचीं, पर ये श्रीकृष्ण के ध्यान में निमग्न थे। इन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उसका ऋतुकाल निष्फल हो गया। इसलिए उसने क्रुद्ध होकर शनिदेव को शाप दे दिया कि आज से जिसे तुम देख लोगे, वह नष्ट हो जाएगा।

साढ़ेसाती से बचने के लिए

 ऊँ त्रयम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम ।उर्वारुक मिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मा मृतात । ॐ शन्नोदेवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये।शंयोरभिश्रवन्तु नः। ऊँ शं शनैश्चराय नमः। ऊँ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्‌।छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्‌।

बुरे कर्मों और साढ़ेसाती के परकोप से बचने के लिए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। इससे शनिदेव प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हमेशा बनी रहती है।

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कहते हैं कि खाली दिमाग शैतान का घर होता है। आप शैतानी सोच से बचना चाहते हैं या आने वाले समय को सुखद बनाना चाहते हैं तो आपको प्रत्येक शनिवार इस मंत्र का जाप करना चाहिए। 

अपराधसहस्त्राणि क्रियन्तेहर्निशं मया। दासोयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वर।। गतं पापं गतं दु:खं गतं दारिद्रय मेव च। आगता: सुख-संपत्ति पुण्योहं तव दर्शनात्।।

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