Sawan 2020: जानें कब है सावन का पहला प्रदोष व्रत, जानें महत्व और पूजा विधि

By गुणातीत ओझा | Published: July 16, 2020 10:22 AM2020-07-16T10:22:22+5:302020-07-16T20:32:31+5:30

इस बार सावन का पहला प्रदोष व्रत 18 जुलाई को पड़ रहा है। इस व्रत का शास्त्रों में विशेष महत्व बताया गया है। शिव भक्त इस व्रत का इंतजार करते रहते हैं। मान्यता है कि इस व्रत से खुश होकर भगवान शिव भक्त की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

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18 जुलाई को है सावन प्रदोष व्रत, जानें इस व्रत का महत्व।

Highlightsइस बार सावन का पहला प्रदोष व्रत 18 जुलाई को पड़ रहा है।मान्यता है कि इस व्रत से खुश होकर भगवान शिव भक्त की सभी मनोकामना पूर्ण करते हैं।

सावन में प्रदोष व्रत का विशेष महत्व होता है। इस व्रत को रखने से भगवान शिव भक्तों के सारे कष्ट हर लेते हैं। इस बार सावन का पहला प्रदोष व्रत 18 जुलाई को है। सावन में पड़ने वाले प्रदोष व्रत का महत्व कई गुना बढ़ जाता है। प्रदोष व्रत चंद्र मास के 13वें दिन (त्रयोदशी) पर होता है। अगर व्यक्ति यह व्रत श्रद्धापूर्वक और विधि-विधान के साथ करता है तो उसे मोक्ष प्राप्त होता है। साथ ही व्यक्ति के पाप भी धुल जाते हैं। पौराणिक मान्यता है कि जब चारों ओर अधर्म का राज होगा और मनुष्यों में स्वार्थ भाव आ जाएगा। मनुष्य सत्कर्म करने के बजाय गलत कर्म करेगा। इस समय अगर कोई भगवान शिव का त्रयोदशी व्रत करेगा तो उसे भोलेनाथ का आर्शीवाद मिलेगा। इससे व्यक्ति अपने कर्मों से बरी होकर मोक्ष के मार्ग पर जाएगा। आइये आपको इस व्रत के बारे में बताते हैं जरूरी बातें...

-त्रयोदशी के दिन प्रात:काल सूर्य उदय से पहने उठना चाहिए।

-सभी कामों से निवृत होकर भोलेनाथ को याद करें।

-ध्यान रहे कि इस व्रत में खाना नहीं खाया जाता है।

-पूरा दिन व्रत करें और सूर्यास्त से एक घंटा पहले स्नान करें। इसके बाद श्वेत वस्त्र धारण करें।

-जहां पूजा करनी है उस स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें। फिर गाय के गोबर से मंडप तैयार करें।

-5 रंगों का इस्तेमाल कर मंडप पर रंगोली बनाएं।

-इस व्रत के लिए कुशा का आसान इस्तेमाल किया जाता है।

-भगवान शंकर की आराधना उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख कर ही करनी चाहिए।

-ऊँ नम: शिवाय का जाप करते हुए भोलेनाथ को जल चढ़ाए।

-त्रयोदशी तिथि को ही प्रदोष व्रत का उद्यापन करें।

इन 3 महामंत्रों से प्रसन्न होंगे शिव

1. रूद्र गायत्री मंत्र

ॐ तत्पुरुषाय विदमहे, महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्र: प्रचोदयात्।।

2. महामृत्युंजय मंत्र

ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।

उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥

3. शिव जी का मूल मंत्र

ऊँ नम: शिवाय।।

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