Rangbhari Ekadashi 2022 Date: रंगभरी एकादशी पर बन रहा है शुभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और भगवान शिव से संबंध

By रुस्तम राणा | Updated: March 7, 2022 14:14 IST2022-03-07T14:14:01+5:302022-03-07T14:14:01+5:30

रंगभरी एकादशी तिथि संबंध महादेव भगवान शिव और मां पार्वती जी के साथ जुड़ा है। मान्यता के अनुसार, रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ की पवित्र नगरी वाराणसी में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है।

Rangbhari Ekadashi 2022 Date muhurat vrat vidhi and connection with Lord Shiva | Rangbhari Ekadashi 2022 Date: रंगभरी एकादशी पर बन रहा है शुभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और भगवान शिव से संबंध

Rangbhari Ekadashi 2022 Date: रंगभरी एकादशी पर बन रहा है शुभ संयोग, जानें शुभ मुहूर्त, व्रत विधि और भगवान शिव से संबंध

हिन्दू धर्म में एकादशी व्रत का खास महत्व होता है। फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि रंगभरी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इसे आंवला एकादशी और आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस बार 14 मार्च 2022, सोमवार को रंगभरी एकादशी व्रत रखा जाएगा। यूं तो एकादशी तिथि का संबंध भगवान विष्णु से होता है। लेकिन रंगभरी एकादशी तिथि संबंध महादेव भगवान शिव और मां पार्वती जी के साथ जुड़ा है। मान्यता के अनुसार, रंगभरी एकादशी पर बाबा विश्वनाथ की पवित्र नगरी वाराणसी में भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा की जाती है।

आमलकी एकादशी मुहूर्त

एकादशी तिथि प्रारंभ - 13 मार्च की सुबह 10 बजकर 21 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त - 14 मार्च को दोपहर 12 बजकर 5 मिनट पर
व्रत का पारण - 15 मार्च को सुबह 06.31 मिनट से सुबह 08.55 मिनट तक 

रंगभरी एकादशी पर इस बार बनेंगे खास योग

इस बार रंगभरी एकादशी 2022 के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, ऐसे में ये इसे और भी शुभ बना रहा है। ज्योतिष के जानकारों के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06 बजकर 32 मिनट से प्रारंभ होकर रात 10 बजकर 08 मिनट तक चलेगा। वहीं रात 10 बजकर 08 मिनट तक रंगभरी एकादशी में पुष्य नक्षत्र रहेगा।

रंगभरी एकादशी व्रत विधि

सुबह जल्दी उठकर स्नानादि के पश्चात पूरे दिन उपवास का संकल्प लें। भगवान शिव की प्रतिमा के समक्ष 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें और उनके सामने घी का दीपक जलाएं। भगवान शिव और माता पार्वती को फल, बेलपत्र, कुमकुम, रोली, पंच मेवा और अक्षत चढ़ाते हुए उनके लिए प्रसाद बनाना चाहिए। इसके साथ ही माता गौरी को सोलह श्रृंगार की वस्तुएं भी चढ़ाएं। इस पूरी प्रक्रिया के पश्चात उन्हें रंग और गुलाल चढ़ाएं। पूजा के अंत में आरती करें। देवता को भोग लगाएं और फिर परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद बांटें।

रंभभरी एकादशी का शिव-पार्वती से संबंध

पौराणिक मान्यता के अनुसार, फाल्गुन मास शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान शिव पहली बार माता पार्वती को काशी आए थे। माना जाता है कि बाबा विश्वनाथ जब शादी के बाद पहली बार माता गौरी को काशी लाए, तो यहां उनका रंग और गुलाल से स्वागत किया गया। इसी कारण काशी में हर साल रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ और माता गौरा की पूजा की जाती है और नगर में विवाह के बाद गौना या विदाई की शोभायात्रा भी निकाली जाती है।

इस दिन होती है आंवले की पूजा

मान्यता के अनुसार जब श्री हरि विष्णु ने ब्रह्मांड की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया था, उसी समय उन्होंने आंवले के पेड़ को भी जन्म दिया था। आंवला को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया। ऐसे में इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा करना विशेष शुभ माना जाता है और यह भी कहा जाता है कि इसके हर हिस्से में देवत्व समाया हुआ है। आंवला के पेड़ को भगवान विष्णु का निवास माना जाता है।

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