पहले सर्दियों में अब गर्मियों में क्यों आते हैं रोजे, हर साल क्यों बदल रहा है रमज़ान का समय
By उस्मान | Updated: May 3, 2019 17:02 IST2019-05-03T17:02:18+5:302019-05-03T17:02:18+5:30
Ramadan: पहले रमज़ान का महीना सर्दियों में आता था। जाहिर है सर्दियों में रोजे रखना भी आसान है। लेकिन अब यह महीना भीषण गर्मी में आता है। गर्मियों में कड़ी धूप, पसीना और प्रदूषण के बीच 14 से 15 घंटे भूखे-प्यासे रहकर रोजेदार को कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है।

फोटो- पिक्साबे
पहले रमज़ान (Ramadan) का महीना सर्दियों में आता था। जाहिर है सर्दियों में रोजे रखना भी आसान है। लेकिन अब यह महीना भीषण गर्मी में आता है। गर्मियों में कड़ी धूप, पसीना और प्रदूषण के बीच 14 से 15 घंटे भूखे-प्यासे रहकर रोजेदार को कड़ी परीक्षा देनी पड़ती है। मध्य पूर्व और अफ्रीका के कई मुस्लिम देशों में, गर्मियों में तापमान बहुत अधिक होता है। यहां रमज़ान के दिनों रोजेदारों की हालत ज्यादा गंभीर हो जाती है।
उत्तरी यूरोपीय देशों जैसे आइसलैंड, नॉर्वे, और स्वीडन में गर्मियों में रोजे का समय औसतन 20 घंटे या उससे अधिक भी चला जाता है। इतना ही नहीं, आर्कटिक सर्कल के ऊपर कुछ स्थानों पर गर्मियों में सूरज कभी डूबता नहीं है। ऐसे में मुस्लिम अधिकारियों को निकटतम मुस्लिम देश के साथ रमज़ान रखने का फैसला करते हैं या सऊदी अरब के नियम को फॉलो करते हैं।
अब गर्मियों में क्यों आता है रमज़ान का महीना
मुस्लिम धर्म में चांद कैलेंडर को फॉलो किया जाता है। इसे इस्लामिक कैलेंडर या हिजरी या इस्लामी पंचांग भी कहते हैं। इस कैलेंडर में चांद दिखाई देने के अनुसार तिथि तय होती है। यह कैलेंडर चांद दिखाई देने के अनुसार तिथि तय होता है। इस साल 10 सितंबर को मोहर्रम का चांद नजर इस्लामी कैलेंडर की शुरुआत हो गई है।
इस्लामिक कैलेंडर को हिजरी या इस्लामी पंचांग भी कहते हैं। इस कैलेंडर में 12 महीने लगभग 354 दिन ही होते हैं। यानी इसमें ग्रेगोरियन कैलेंडर के 365 दिनों की तुलना में 11 दिन कम हैं। यही वजह है कि इस्लामिक चांद कैलेंडर नियमित ग्रेगोरियन कैलेंडर से प्रत्येक वर्ष लगभग 11 दिन पीछे जाता है। तो इसका मतलब है कि रमज़ान के महीने का पहला दिन, जो इस्लामी चंद्र कैलेंडर का नौवां महीना है, हर साल लगभग 11 दिन पीछे जाता है।
