Ram Mandir Ayodhya: रामलला के जीवन-दर्शन की कुंजी है रामायण, जानिए पूरी रामायण संक्षेप में

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: January 22, 2024 08:08 AM2024-01-22T08:08:00+5:302024-01-22T08:13:57+5:30

अयोध्या के राजा और रघुनंदन श्रीराम की गाथा रामायण में समाहित है। यह आदिकवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का ऐसा ग्रंथ है, जिसमें कुल सात अध्याय हैं, जो अलग-अलग काण्ड के नाम से जाने जाते हैं

Ram Mandir Ayodhya: Ramayana is the key to Ramlala's philosophy of life, know the entire Ramayana in brief | Ram Mandir Ayodhya: रामलला के जीवन-दर्शन की कुंजी है रामायण, जानिए पूरी रामायण संक्षेप में

प्रतीकात्मक तस्वीर

Highlightsरामायण में अयोध्या के राजा श्रीराम के जीवन-दर्शन की महागाथा समाहित हैरामायण आदिकवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत में लिखा गया महाग्रंथ हैरामायण के अलग-अलग काण्डों में कुल 24,000 छंद और 96000 श्लोक हैं

Ram Mandir Ayodhya:   सनातन धर्म में दो महाग्रंथों को सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। इनमें से एक है महाभारत, जो श्रीकृष्ण के दिये उपदेशों का गीता के रूप में संकलन करके दुनिया के सामने कर्म की परिभाषा को रखता है, वहीं  दूसरा महाग्रंथ है रामायण।

अयोध्या के राजा और रघुवंश के प्राणाधार श्रीराम के जीवन-दर्शन की महागाथा रामायण में समाहित है। यह आदिकवि वाल्मीकि द्वारा लिखा गया संस्कृत का एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें कुल सात अध्याय हैं, जो अलग-अलग काण्ड के नाम से जाने जाते हैं और इन सभी अलग-अलग काण्डों में कुल 24,000 छंद और 96000 श्लोक हैं।

रामायण का क्या अर्थ है

रामायण दो शब्दों का संयुक्ताक्षर हैष जिसमें राम और अयन नाम के दो शब्द हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार राम का अर्थ ‘प्रकाश’ है। राम शब्द के मूल में किरण एवं आभा (कांति) जैसे शब्द समाहित हैं। ‘रा’ का अर्थ है कांति और ‘म’ का अर्थ है मैं अथवा स्वयं। राम का अर्थ है मेरे भीतर का प्रकाश, मेरे ह्रदय का प्रकाश। वहीं अयन का अर्थ होता है, गतिमान। इस प्रकार रामायण का अर्थ है, राम के गतीमान जीवन का चित्रण।

राम कथा का सबसे प्रामाणिक कथ्य और तथ्य है रामायण

रामायण यानी वाल्मीकि की राम कथा को सबसे ज्यादा प्रामाणिक माना जाता है। सनातन धर्म के अनुसार ब्रह्मा जी के आदेश पर महर्षि वाल्मीकि ने श्रीराम के जीवन वृतान्त को श्लोकबद्ध किया। महर्षि वाल्मीकि के द्वारा श्लोकबद्ध भगवान राम की कथा को वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है। वाल्मीकि को आदिकवि कहा जाता है और वाल्मीकि रामायण को सबसे प्रामाणिक माना जाता है।

सनातन मान्यता के अनुसार तुलसीदास ने बताया है कि रामकथा का सर्वप्रथम वाचन प्रभु शिव ने किया था और उसका श्रवण सबसे पहले माता पार्वती ने किया था। जहां पर भगवान शिव पार्वती जी को भगवान श्री राम की कथा सुना रहे थे। वहां एक कौवा भी चुपके से बैठकर रामकथा को सुन रहा था। कथा पूरी होने के पहले ही माता पार्वती को तो नींद आ गई पर उस कौवे ने शिवशंकर के मुख से पूरी कथा सुन ली।

कहते हैं कि बाद में उसी कौवे का पुनर्जन्म काकभुशुण्डि के रूप में हुआ। उसके बाद काकभुशुण्डि ने यह कथा गरुड़ को सुनाई। भगवान श्री शंकर के मुख से निकली श्रीराम की यह पवित्र कथा ही आध्यात्म रामायण के नाम से प्रख्यात हुई और इसी अध्यात्म रामायण को विश्व का पहली रामायण माना जाता है।

रामायण की यह कथा काल-कालांतर भारत भूमि पर सुनती-सुनाई जाती रही लेकिन जब देश का शासन विदेशियों के हाथों में आया तो संस्कृत भाषा का तेजी से ह्रास हुआ और उसके परिणाम स्वरूप रामायण की कथा आमजन से दूर हो गई। ठीक उसी समय तुलसीदास पैदा हुए और उन्होंने अवधी भाषा में भगवान राम की पवित्र कथा को लिखा, जिसे आज हम सभी रामचरित मानस के रूप में जानते हैं। सामान्य रूप से रामचरितमानस को तुलसी रामायण के नाम से जाना जाता है।

रामायण के अलग-अलग कांड

बालकाण्ड

अयोध्या में रघुकुल के प्रतापी राजा दशरथ हुआ करते थे। जिनकी कौशल्या, कैकेयी और सुमित्रा नामक तीन पत्नियां थीं। सन्तान प्राप्ति हेतु अयोध्यापति दशरथ ने गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से पुत्रकामेष्टि यज्ञ करवाया, जिसे कि ऋंगी ऋषि ने सम्पन्न कराया। भक्तिपूर्ण आहुतियां पाकर अग्निदेव प्रसन्न हुये और उन्होंने स्वयं प्रकट होकर राजा दशरथ को हविष्यपात्र (पायस) दिया जिसे कि उन्होंने अपनी तीनों पत्नियों में बांट दिया। खीर के सेवन के परिणामस्वरूप कौशल्या के गर्भ से राम का, कैकेयी के गर्भ से भरत का तथा सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण और शत्रुघ्न का जन्म हुआ।

ऋषि विश्वामित्र सभी राजकुमारों के बड़े होने पर अपनी आश्रम की राक्षसों से रक्षा हेतु राजा दशरथ से राम और लक्ष्मण को मांग कर अपने साथ ले गये। राम ने वन में ताड़का और सुबाहु जैसे राक्षसों को मारा और मारीच को बिना फल वाले बाण से मार कर समुद्र के पार भेज दिया।

उसके बाद मिथिला से धनुषयज्ञ हेतु राजा जनक का निमन्त्रण मिलने पर मुनि विश्वामित्र राम और लक्ष्मण को अपने साथ लेकर जनकपुर पहुंचे। रास्ते में राम ने गौतम मुनि की स्त्री अहिल्या का उद्धार किया। मिथिला में आकर जब राम शिवधनुष को उठाया और उसका भंजन कर दिया। जनक प्रतिज्ञा के अनुसार राम ने सीता से विवाह किया। राम और सीता के विवाह के साथ ही साथ गुरु वशिष्ठ ने भरत का माण्डवी से, लक्ष्मण का उर्मिला से और शत्रुघ्न का श्रुतकीर्ति से विवाह करवा दिया।

अयोध्याकाण्ड

राम के विवाह के कुछ समय पश्चात् राजा दशरथ ने राम का राज्याभिषेक करना चाहा। तब मंथरा,जो कैकेयी की दासी थी। उसने कैकेयी की बुद्धि को फेर दिया। मन्थरा की सलाह से कैकेयी कोपभवन में चली गई। दशरथ जब मनाने आये तो कैकेयी ने उनसे वरदान मांगे कि दशरथ भरत को राजा बनाएं और राम को चौदह वर्षों के लिये वनवास में भेज दें।

राम के साथ सीता और लक्ष्मण भी वन चले गये। ऋंगवेरपुर में निषादराज गुह ने तीनों की बहुत सेवा की। कुछ आनाकानी करने के बाद केवट ने तीनों को गंगा नदी के पार उतारा। प्रयाग पहुंच कर राम ने भारद्वाज मुनि से भेंट की। वहां से राम यमुना स्नान करते हुये वाल्मीकि ऋषि के आश्रम पहुंचे। वाल्मीकि से हुई मन्त्रणा के अनुसार राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में निवास करने लगे।

अयोध्या में पुत्र के वियोग के कारण दशरथ का स्वर्गवास हो गया। वशिष्ठ ने भरत और शत्रुघ्न को उनके ननिहाल से बुलवा लिया। वापस आने पर भरत ने अपनी माता कैकेयी को उनकी कुटिलता के लिये बहुत भर्तस्ना की और गुरुजनों के आज्ञानुसार दशरथ की अन्त्येष्टि क्रिया कर दिया। भरत ने अयोध्या के राज्य को अस्वीकार कर दिया और राम को मनाकर वापस लाने के लिये समस्त स्नेहीजनों के साथ चित्रकूट चले गये।

कैकेयी को भी अपने किये पर अत्यन्त पश्चाताप हुआ। भरत तथा अन्य सभी लोगों ने राम के वापस अयोध्या जाकर राज्य करने का प्रस्ताव रखा जिसे कि राम ने पिता की आज्ञा पालन करने और रघुवंश की रीति निभाने के लिये अमान्य कर दिया। भरत अपने स्नेही जनों के साथ राम की पादुका को साथ लेकर वापस अयोध्या आ गये। उन्होंने राम की पादुका को राज सिंहासन पर विराजित कर दिया स्वयं नन्दिग्राम में निवास करने लगे।

अरण्यकाण्ड

कुछ काल के पश्चात राम ने चित्रकूट से प्रयाण किया और वे अत्रि ऋषि के आश्रम पहुंचे। अत्रि ने राम की स्तुति की और उनकी पत्नी अनसूया ने सीता को पतिव्रत धर्म के मर्म समझाये। वहां से फिर राम ने आगे प्रस्थान किया और शरभंग मुनि से भेंट की। शरभंग मुनि केवल राम के दर्शन की कामना से वहां निवास कर रहे थे। अतः राम के दर्शनों की अपनी अभिलाषा पूर्ण हो जाने से योगाग्नि से अपने शरीर को जला डाला और ब्रह्मलोक को गमन किया और आगे बढ़ने पर राम को स्थान स्थान पर हड्डियों के ढेर दिखाई पड़े, जिनके विषय में मुनियों ने राम को बताया कि राक्षसों ने अनेक मुनियों का वध कर डाला है और उन्हीं मुनियों की हड्डियाँ हैं।

इस पर राम ने प्रतिज्ञा की कि वे समस्त राक्षसों का वध करके पृथ्वी को राक्षस विहीन कर देंगे। राम और आगे बढ़े और पथ में सुतीक्ष्ण, अगस्त्य आदि ऋषियों से भेंट करते हुये दण्डक वन में प्रवेश किया, जहां पर उनकी मुलाकात जटायु से हुई। राम ने पंचवटी को अपना निवास स्थान बनाया।

पंचवटी में रावण की बहन शूर्पणखा ने आकर राम से प्रणय निवेदन-किया। राम ने यह कह कर कि वे अपनी पत्नी के साथ हैं और उनका छोटा भाई अकेला है, उसे लक्ष्मण के पास भेज दिया। लक्ष्मण ने उसके प्रणय-निवेदन को अस्वीकार करते हुये शत्रु की बहन जानकर उसके नाक और कान काट लिये।

शूर्पणखा ने खर-दूषण से सहायता की मांग की और वह अपनी सेना के साथ लड़ने के लिये आ गया। लड़ाई में राम ने खर-दूषण और उसकी सेना का संहार कर डाला। शूर्पणखा ने जाकर अपने भाई रावण से शिकायत की। रावण ने बदला लेने के लिये मारीच को स्वर्णमृग बना कर भेजा जिसकी छाल की मांग सीता ने राम से की। 

लक्ष्मण को सीता के रक्षा की आज्ञा देकर राम स्वर्णमृग रूपी मारीच को मारने के लिये उसके पीछे चले गये। मारीच राम के हाथों मारा गया पर मरते मरते मारीच ने राम की आवाज बना कर ‘हा लक्ष्मण’ का क्रन्दन किया जिसे सुन कर सीता ने आशंकावश होकर लक्ष्मण को राम के पास भेज दिया।

लक्ष्मण के जाने के बाद अकेली सीता का रावण ने छलपूर्वक हरण कर लिया और अपने साथ लंका ले गया। रास्ते में जटायु ने सीता को बचाने के लिये रावण से युद्ध किया और रावण ने तलवार के प्रहार से उसे अधमरा कर दिया।

सीता को न पा कर राम अत्यन्त दुःखी हुये और विलाप करने लगे। रास्ते में जटायु से भेंट होने पर उसने राम को रावण के द्वारा अपनी दुर्दशा होने व सीता को हर कर दक्षिण दिशा की ओर ले जाने की बात बताई। ये सब बताने के बाद जटायु ने अपने प्राण त्याग दिये और राम उसका अन्तिम संस्कार करके सीता की खोज में सघन वन के भीतर आगे बढ़े। रास्ते में राम ने दुर्वासा के शाप के कारण राक्षस बने गन्धर्व कबन्ध का वध करके उसका उद्धार किया और शबरी के आश्रम जा पहुंचे, जहां पर राम ने भक्तिवश शबरी के जूठे बेरों को खाया।

किष्किन्धाकाण्ड

राम सीता की तलाश में ऋष्यमूक पर्वत के निकट आ गये। उस पर्वत पर अपने मन्त्रियों सहित सुग्रीव रहता था। सुग्रीव ने इस आशंका में कि कहीं बालि ने उसे मारने के लिये उन दोनों वीरों को तो नहीं भेजा है। उन्होंने हनुमान को राम और लक्ष्मण के विषय में जानकारी लेने के लिये ब्राह्मण के रूप में भेजा। यह जानने के बाद कि उन्हें बालि ने नहीं भेजा है हनुमान ने राम और सुग्रीव में मित्रता करवा दी।

सुग्रीव ने राम को सान्त्वना दी कि जानकी जी मिल जायेंगीं और उन्हें खोजने में वह सहायता देगा साथ ही अपने भाई बालि के अपने ऊपर किये गये अत्याचार के विषय में बताया। राम ने बालि का वध कर के सुग्रीव को किष्किन्धा का राज्य तथा बालि के पुत्र अंगद को युवराज का पद दे दिया।

राज्य प्राप्ति के बाद सुग्रीव विलास में लिप्त हो गया और वर्षा तथा शरद् ऋतु व्यतीत हो गई। राम की नाराजगी पर सुग्रीव ने वानरों को सीता की खोज के लिये भेजा। सीता की खोज में गये वानरों को एक गुफा में एक तपस्विनी के दर्शन हुये। तपस्विनी ने खोज दल को योगशक्ति से समुद्रतट पर पहुंचा दिया जहां पर उनकी भेंट सम्पाती से हुई। सम्पाती ने वानरों को बताया कि रावण ने सीता को लंका अशोकवाटिका में रखा है। जाम्बवन्त ने हनुमान को समुद्र लांघने के लिये उत्साहित किया।

सुंदरकाण्ड

हनुमान ने जनकी की तलाश में लंका की ओर प्रस्थान किया। सुरसा ने हनुमान की परीक्षा ली और उसे योग्य तथा सामर्थ्यवान पाकर आशीर्वाद दिया। मार्ग में हनुमान ने छाया पकड़ने वाली राक्षसी का वध किया और लंकिनी पर प्रहार करके लंका में प्रवेश किया। वहां हनुमान की विभीषण से भेंट हुई। जब हनुमान अशोकवाटिका में पहुंचे तो रावण सीता को धमका रहा था। रावण के जाने पर त्रिजटा ने सीता को शांत कराया।

एकान्त होने पर हनुमान जी ने सीता माता से भेंट करके उन्हें राम की मुद्रिका दी। हनुमान ने अशोकवाटिका का विध्वंस करके रावण के पुत्र अक्षय कुमार का वध कर दिया। मेघनाथ हनुमान को नागपाश में बांध कर रावण की सभा में ले गया। रावण के प्रश्न के उत्तर में हनुमान ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया। रावण ने हनुमान की पूंछ में तेल में डूबा हुआ कपड़ा बांध कर आग लगा दिया इस पर हनुमान ने लंका का दहन कर दिया।

हनुमान सीता के पास पहुंचे। सीता ने अपनी चूड़ामणि दे कर उन्हें विदा किया। वे वापस समुद्र पार आकर सभी वानरों से मिले। हनुमान के कार्य से राम अत्यन्त प्रसन्न हुये। राम वानरों की सेना के साथ समुद्रतट पर पहुंचे। उधर विभीषण ने रावण को समझाया कि राम से बैर न लें इस पर रावण ने विभीषण को अपमानित कर लंका से निकाल दिया। विभीषण राम के शरण में आ गया और राम ने उसे लंका का राजा घोषित कर दिया। राम ने समुद्र से रास्ता देने की विनती की। विनती न मानने पर राम ने क्रोध किया और उनके क्रोध से भयभीत होकर समुद्र ने स्वयं आकर राम की विनती करने के पश्चात् नल और नील के द्वारा पुल बनाने का उपाय बताया।

लंकाकाण्ड

जामवंत के आदेश से नल-नील दोनों भाइयों ने वानर सेना की सहायता से समुद्र पर पुल बांध दिया। श्री राम ने श्री रामेश्वर की स्थापना करके भगवान शंकर की पूजा की और सेना सहित समुद्र के पार उतर गये। समुद्र के पार जाकर राम ने डेरा डाला। पुल बंध जाने और राम के समुद्र के पार उतर जाने के समाचार से रावण मन में अत्यन्त व्याकुल हुआ। रावण की पत्नी मन्दोदरी द्वारा राम से बैर न लेने के लिये समझाने के बाद भी रावण का अहंकार नहीं गया। इधर राम अपनी वानरसेना के साथ सुबेल पर्वत पर निवास करने लगे। अंगद राम के दूत बन कर लंका में रावण के पास गये और उसे राम के शरण में आने का संदेश दिया किन्तु रावण ने नहीं माना।

शान्ति के सारे प्रयास असफल हो जाने पर युद्ध आरम्भ हो गया। लक्ष्मण और मेघनाद के मध्य घोर युद्ध हुआ। शक्तिबाण के वार से लक्ष्मण मूर्छित हो गये। उनके उपचार के लिये हनुमान सुषेण वैद्य को ले आये और संजीवनी लाने के लिये चले गये। गुप्तचर से समाचार मिलने पर रावण ने हनुमान के कार्य में बाधा के लिये कालनेमि को भेजा जिसका हनुमान ने वध कर दिया। औषधि की पहचान न होने के कारण हनुमान पूरे पर्वत को ही उठा कर वापस चले। मार्ग में हनुमान को राक्षस होने के सन्देह में भरत ने बाण मार कर मूर्छित कर दिया परन्तु यथार्थ जानने पर अपने बाण पर बैठा कर वापस लंका भेज दिया। इधर औषधि आने में विलम्ब देख कर राम प्रलाप करने लगे। सही समय पर हनुमान औषधि लेकर आ गये और सुषेण के उपचार से लक्ष्मण स्वस्थ हो गये।

रावण ने युद्ध के लिये कुम्भकर्ण को जगाया। कुम्भकर्ण ने भी रावण को राम की शरण में जाने की असफल मन्त्रणा दी। युद्ध में कुम्भकर्ण ने राम के हाथों परमगति प्राप्त की। लक्ष्मण ने मेघनाद से युद्ध करके उसका वध कर दिया। राम और रावण के मध्य अनेकों घोर युद्ध हुऐ और अन्त में रावण राम के हाथों मारा गया। विभीषण को लंका का राज्य सौंप कर राम, सीता और लक्ष्मण के साथ पुष्पक विमान पर चढ़ कर अयोध्या के लिये प्रस्थान किया।

उत्तरकाण्ड

महर्षि वाल्मीकि उत्तरकाण्ड राम कथा से रामायण का उपसंहार करते हैं। सीता, लक्ष्मण और समस्त वानरसेना के साथ राम अयोध्या वापस पहुंचे। राम का भव्य स्वागत हुआ, भरत के साथ सर्वजनों में आनन्द व्याप्त हो गया। वेदों और शिव की स्तुति के साथ राम का राज्याभिषेक हुआ। अभ्यागतों की विदाई दी गई। राम ने प्रजा को उपदेश दिया और प्रजा ने कृतज्ञता प्रकट की। चारों भाइयों के दो दो पुत्र हुये। रामराज्य एक आदर्श बन गया।

इन्हीं बातों के साथ ही साथ गोस्वामी तुलसीदास जी ने उत्तरकाण्ड में श्री राम-वशिष्ठ संवाद, नारद जी का अयोध्या आकर रामचन्द्र जी की स्तुति करना, शिव-पार्वती संवाद, गरुड़ मोह तथा गरुड़ जी का काकभुशुण्डि जी से रामकथा एवं राम-महिमा सुनना, काकभुशुण्डि जी के पूर्वजन्म की कथा, ज्ञान-भक्‍ति निरूपण, ज्ञानदीपक और भक्‍ति की महान महिमा, गरुड़ के सात प्रश्‍न और काकभुशुण्डि जी के उत्तर आदि विषयों का भी विस्तृत वर्णन किया है।

जहां तुलसीदास जी ने उपरोक्त वर्णन लिखकर रामचरितमानस को समाप्त कर दिया है वहीं आदिकवि वाल्मीकि अपने रामायण में उत्तरकाण्ड में रावण तथा हनुमान के जन्म की कथा, सीता का निर्वासन, राजा नृग, राजा निमि, राजा ययाति तथा रामराज्य में कुत्ते का न्याय की उपकथायें, लवकुश का जन्म, राम के द्वारा अश्वमेघ यज्ञ का अनुष्ठान तथा उस यज्ञ में उनके पुत्रों लव तथा कुश के द्वारा महाकवि वाल्मीकि रचित रामायण गायन, सीता का भूमि प्रवेश, लक्ष्मण के परित्याग, का भी वर्णन किया है। वाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड का समापन राम के महाप्रयाण के बाद ही हुआ है।

Web Title: Ram Mandir Ayodhya: Ramayana is the key to Ramlala's philosophy of life, know the entire Ramayana in brief

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