Raksha Bandhan 2020: रक्षा बंधन के 5 सत्य जो आप शायद ही जानते होंगे

By गुणातीत ओझा | Updated: July 17, 2020 15:28 IST2020-07-17T15:28:01+5:302020-07-17T15:28:01+5:30

श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। रक्षा बंधन के अवसर पर बहिन अपना सम्पूर्ण प्यार रक्षा (राखी) के रूप में अपने भाई की कलाई पर बांध देती है। भाई इस अवसर पर बहन को उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का वचन देता है।

Raksha Bandhan 2020: raksha bandhan pauranik katha | Raksha Bandhan 2020: रक्षा बंधन के 5 सत्य जो आप शायद ही जानते होंगे

रक्षा बंधन से जुड़ी इन कथाओं के बारे में नहीं जानते होंगे आप।

Highlightsश्रावण मास की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है।श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं।

रक्षाबन्धन एक हिन्दू व जैन त्योहार है, जो हर साल श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। श्रावण (सावन) में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी (सावनी) या सलूनो भी कहते हैं। रक्षाबन्धन में राखी या रक्षासूत्र का सबसे अधिक महत्त्व है। राखी कच्चे सूत जैसे सस्ती वस्तु से लेकर रंगीन कलावे, रेशमी धागे, तथा सोने या चाँदी जैसी मंहगी वस्तु तक की हो सकती है। रक्षाबंधन भाई बहन के रिश्ते का प्रसिद्ध त्योहार है, रक्षा का मतलब सुरक्षा और बंधन का मतलब बाध्य है। रक्षाबंधन के दिन बहने भगवान से अपने भाईयों की तरक्की के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं। आइये आपको बताते हैं इस त्योहार के बारे में 5 ऐसे सत्य जो आप शायद ही जानते होंगे...

1. 'रक्षा सूत्र' बांधने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। यज्ञ, युद्ध, आखेट, नए संकल्प और धार्मिक अनुष्ठान के दौरान कलाई पर नाड़ा या सू‍त का धागा जिसे 'मौली' कहते हैं- बांधा जाता है। यही रक्षा सूत्र आगे चलकर पति-पत्नी, मां-बेटे और फिर भाई-बहन के प्यार का प्रतीक बन गया। रक्षा सूत्र को बोलचाल की भाषा में राखी कहा जाता है जो वेद के संस्कृत शब्द 'रक्षिका' का अपभ्रंश है।

2. भविष्य पुराण में कहीं पर लिखा है कि देव और असुरों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब असुर या दैत्य देवों पर भारी पड़ने लगे। ऐसे में देवताओं को हारता देख देवेंद्र इन्द्र घबराकर ऋषि बृहस्पति के पास गए। तब बृहस्पति के सुझाव पर इन्द्र की पत्नी इंद्राणी (शची) ने रेशम का एक धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के हाथ पर बांध दिया। संयोग से वह श्रावण पूर्णिमा का दिन था। जिसके फलस्वरूप इंद्र विजयी हुए। कहते हैं कि तब से ही पत्नियां अपने पति की कलाई पर युद्ध में उनकी जीत के लिए राखी बांधने लगी।

3. स्कंद पुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत पुराण अनुसार जब भगवान वामन ने महाराज बली से तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बली ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बली की सेवा में रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बली को राखी बांध अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।

4. जैन धर्म की मान्यताओं के अनुसार उज्जयिनी नगरी के राजा श्रीवर्मा के मंत्री बलि नमुचि, बृहस्पति और प्रहलाद थे। इन चारों को जैन मुनि के अपमान के चलते राज्य से निकाल दिया गया तब चारों मंत्री वहां से निकलकर हस्तिनापुर पहुंचे। उन्होंने वहां के राजा पद्मराय से नौकरी प्राप्त कर ली। बलि नामक मंत्री ने पद्मराय का विश्वास हासिल करने के लिए कूटनीति और छल से एक विद्रोही राजा को उसके अधीन करा दिया। इससे पद्मराय ने खुश हो उससे वर मांगने को कहा। उसने कहा- राजन्‌ वक्त आने पर मांग लूंगा। फिर एक बार यहां अकंपनाचार्य मुनि अपने 700 शिष्यों के साथ हस्तिनापुर पहुंचे। राजा पद्मराय अनन्य जैन भक्त थे। उसी समय बलि ने राजा से अपना वर मांग लिया और कहा कि 7 दिन के लिए मुझे राजा बना दो। इस तरह बलि ने अकंपनाचार्य मुनि और उनके 700 शिष्यों के ठहरने के स्थान को बाड़ लगाकर घेरकर आग में मारने की योजना बनाई। तब विष्णुकुमार मुनि ने ब्राह्मण वेश धारण कर राजा बलि से तीन पग भूमि मांग ली। उसी समय बलि ने यज्ञ बंद कर मुनियों को उपसर्ग से दूर किया। राजा भी मुनि के दर्शनार्थ वहां पहुंच गए। यह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। इसी दिन मुनियों की रक्षा हुई थी। इस दिन को याद रखने के लिए लोगों ने हाथ में सूत के डोरे बांधे।

5. एक बार भगवान श्रीकृष्ण के हाथ में चोट लग गई तथा खून की धार बह निकली। यह सब द्रौपदी से नहीं देखा गया और उसने तत्काल अपनी साड़ी का पल्लू फाड़कर श्रीकृष्ण के हाथ में बांध दिया फलस्वरूप खून बहना बंद हो गया। कुछ समय पश्चात जब दुःशासन ने द्रौपदी की चीरहरण किया तब श्रीकृष्ण ने चीर बढ़ाकर इस बंधन का उपकार चुकाया। यह प्रसंग भी रक्षा बंधन के महत्व को प्रतिपादित करता है।

Web Title: Raksha Bandhan 2020: raksha bandhan pauranik katha

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