Navratri: मां कालरात्रि की आराधना भक्तों के लिए कवच का कार्य करती है, नवरात्र के सातवें दिन कैसे करते हैं मां की पूजा, जानिए यहां
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 15, 2024 06:29 AM2024-04-15T06:29:13+5:302024-04-15T06:29:13+5:30
चैत्र नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों के जीवन के सारे दुख-सारे संकट खत्म हो जाते हैं।
Navratri: चैत्र नवरात्र का सातवां दिन मां कालरात्रि को समर्पित है। मान्यता है कि मां कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों के जीवन के सारे दुख-सारे संकट खत्म हो जाते हैं। मां का यह स्वरूप देवी दुर्गा की शक्ति और भय का अद्भुत मिश्रण है।
एक तरफ तो देवी कालरात्रि अपने भक्तों के लिए रक्षा का कवच का काम करती हैं, वहीं दूसरी ओर मां कालरात्रि अधम दुष्टों के लिए भय और काल का भी प्रतीक हैं। मां कालरात्रि के चार हाथ हैं, जिनमें वे तलवार, खड्ग, त्रिशूल और अभय मुद्रा धारण करती हैं। उनके गले में मुंडों की माला है और वे भयंकर रूप धारण किये हुए होती हैं।
श्यामवर्णीय मां कालरात्रि के बाल लंबे और खुले हैं। देवी कालरात्रि का वाहन ‘गर्दभ’ (गधा) है। देवी कालरात्रि अपने भक्तों को सभी बुराईयों से बचाती हैं और उनपर महती कृपा करती हैं । देवी का यह रूप ऋद्धि सिद्धि प्रदान करने वाला है। दुर्गा पूजा का सातवां दिन तांत्रिक क्रिया की साधना करने वाले भक्तों के लिए अति महत्वपूर्ण होता है।
नवरात्रि के सातवे दिन मां भक्तों की पूजा से प्रसन्न होकर सभी प्रकार के अंधकारों को नष्ट करती हैं और दुनिया में शांति लाती हैं। मां कालरात्रि पूर्णता का प्रतीक हैं, वो सदैव अपने भक्तों को बुरी शक्तियों और आत्माओं से बचाती हैं।
मां कालरात्रि की पूजा से अनेक लाभ होते हैं। वे भक्तों को भय, शत्रु, और नकारात्मक शक्तियों से बचाती हैं। वे साहस, आत्मविश्वास और शक्ति प्रदान करती हैं। मां कालरात्रि की पूजा उन लोगों के लिए भी विशेष रूप से फलदायी है, जो अपने जीवन में लगातार कठिन चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।
मां कालरात्रि का स्वरूप भयंकर है, लेकिन वे अपने भक्तों के लिए अत्यंत दयालु और ममतामयी हैं। मां उन भक्तों की रक्षा जरूर करती हैं, जो पूरे भक्ति ऐऱ उनकी शरण में आते हैं।
मां कालरात्रि की पूजन विधि
मां कालरात्रि की पूजा के लिए सुर्योदय का समय उत्तम माना जाता है। भक्त को दिन में सुबह जल्दी स्नान करके मां की पूजा के लिए लाल रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
उसके बाद मां के सामने दीप जलाना चाहिए। उसके बाद विधिपूर्वक मां कालरात्रि की आराधना करनी चाहिए। पूजा के समय मंत्रों का जाप करना चाहिए और उसके बाद आरती करनी चाहिए।
मां कालरात्रि की पूजा में 'ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। 'दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तु ते। मंत्र का जप करना चाहिए। इस दिन काली चालीसा, सिद्धकुंजिका स्तोत्र, अर्गला स्तोत्रम आदि चीजों का पाठ करना चाहिए। इन सब के साथ नवरात्रि के सातवें दिन रात्रि में तिल के तेल या सरसों के तेल की अखंण्ड ज्योत भी जलाना चाहिए।
नवरात्र के सप्तमी के दिन रात्रि में मां की विशेष विधान के साथ देवी की पूजा की जाती है। इस दिन अनेक प्रकार के मिष्ठान और कहीं कहीं तांत्रिक विधि से पूजा होने पर मदिरा भी देवी को अर्पित कि जाती है। सप्तमी की रात्रि सिद्धियों की रात भी कही जाती है। कुण्डलिनी जागरण के लिए जो साधक साधना में लगे होते हैं, वो मां की आराधना करते हुए सहस्त्रसार चक्र का भेदन करते हैं।
पूजा विधान में शास्त्रों में जैसा वर्णित हैं उसके अनुसार पहले कलश की पूजा करनी चाहिए फिर नवग्रह, दशदिक्पाल, देवी के परिवार में उपस्थित देवी देवता की पूजा करनी चाहिए फिर मां कालरात्रि की पूजा करनी चाहिए. देवी की पूजा से पहले उनका ध्यान करना चाहिए।