Navratri: नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता के पूजन से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वतः हो जाती है, जानिए स्कंदमाता की महिमा

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 13, 2024 06:50 AM2024-04-13T06:50:12+5:302024-04-13T06:50:12+5:30

चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। परम सुखदायी मां स्कंदमाता भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार खोलती हैं।

Navratri: By worshiping Skandamata on the fifth day of Navratri, Lord Kartikeya is automatically worshipped, know the glory of Skandamata | Navratri: नवरात्र के पांचवें दिन स्कंदमाता के पूजन से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वतः हो जाती है, जानिए स्कंदमाता की महिमा

फाइल फोटो

Highlightsचैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान हैस्कंदमाता कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं, इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता हैस्कंदमाता की उपासना करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वतः हो जाती है

Navratri: चैत्र नवरात्रि के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विधान है। परम सुखदायी मां स्कंदमाता भक्तों के लिए मोक्ष के द्वार खोलती हैं। मान्यता है मां अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं। चार भुजाओं वाली देवी स्कंतमाता दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद अर्थात भगवान कार्तिकेय को अपने गोद में पकड़े हुए हैं।

वहीं मां के नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। मं का वाहन सिंह है।

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनकी पूजा से भक्त अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। मां स्कंदमाता का वाहन सिंह है। शेर पर सवार होकर मां दुर्गा अपने पांचवें स्वरूप यानी स्कंदमाता के रूप में भक्तजनों का सदैव कल्याण करती हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि स्कंदमाता की उपासना करने से भगवान कार्तिकेय की पूजा स्वतः हो जाती है।

स्कंदमाता की कथा

शास्त्रों में किये गये वर्णन के अनुसार दैत्य वज्रांग के पुत्र का नाम तारकासुर था । तारकासुर बाल्यावस्था से ही सृष्टिकर्त्ता ब्रह्म देव का भक्त था। एक समय वह मधुवन नामक पवित्र स्थान पर कठिन तपस्या करने लगा। तारकासुर ने एक पैर पर सौ वर्षों तक तपस्या किया था। उसने केवल पानी पीकर ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए तप किया।

एक समय ऐसा भी आया जब तारकासुर ने पानी का भी त्याग कर दिया और सौ वर्षों तक जल के भीतर तपस्या की और फिर अग्नि में सौ वर्ष तक तप में लगे रहे। तत्पश्चात सौ वर्षों तक उन्होंने हाथों पर खड़े होकर उल्टा तपस्या भी की। तारकासुर के इस घोर तप से ब्रह्मांड में भूचाल आ गया व तीनों लोक हिलने लगा।

तारकासुर के इस  कठिन तपस्या से भगवान ब्रह्मा अति प्रसन्न हुए। वह उसके सामने प्रकट होकर बोले ‘हे तारका मैं तुम्हारी तपस्या से प्रसन्न हूं, वर मांगों वत्स” तारकासुर ने ब्रह्म देव के समक्ष हाथ जोड़कर कहा, हे प्रभु यदि आप मेरे तप से इतना ही प्रसन्न हैं, तो कृपा करके मुझे अमरत्व प्रदान करें।

ब्रह्म देव ने तारकासुर को समझाया कि हे दैत्य कुमार मृत्युलोक में जो जन्मा है, उसकी मृत्यु अटल है। तुम कोई और वरदान मांगो। तब तारकासुर ने कहा हे परमपिता परमेश्वर यदि मृत्यु अटल है, तो मुझे वरदान दीजिए की मैं केवल शिव के पुत्र के हाथों ही मृत्यु प्राप्त करूं। ब्रह्म देव ने उसे वरदान दे दिया।

तारकासुर जानता था कि माता सती के शोक में डूबे शिव कभी विवाह नहीं करेंगे। और जब विवाह ही नहीं करेंगे, तो पुत्र कहाँ से होगा ? वरदान पाकर तारकासुर, अन्य असुरों की भांति देवलोक में उत्पात मचाने लगा। देवतागण ब्रह्म देव के पास पहुंचे और कहा हे सृष्टिकर्त्ता, तारकासुर को आपने कैसा वरदान दे दिया। जिसके बल से वो समस्त देवलोक का विनाश करने में लग गया है। अब इसकी मृत्यु कैसे होगी। ब्रह्मा जी ने कहा कि इसके लिए महादेव को विवाह करना होगा, तत्पश्चात जो उनके पुत्र होंगे,उसी के हाथो तारकासुर का अंत संभव है।

सभी देवगण महादेव के पास पहुंचे। उन्हें विवाह करने के लिए मनाया तो बहुत प्रयास के बाद महादेव मान गए, और पर्वतराज हिमालय की पुत्री से विवाह किया । माता पार्वती और महादेव के घर पुत्र का जन्म हुआ। जिसका नाम स्कंद अर्थात कार्तिकेय पड़ा।

माता पार्वती ने ही स्कंद को शस्त्र और शास्त्र की शिक्षा देकर तारकासुर से युद्ध करने के लिए योग्य बनाया। कार्तिकेय और तारकासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ और अंत में स्कंद ने राक्षसराज तारकासुर का वध कर दिया। इस प्रकार शिव कुमार कार्तिकेय ने देवताओं की रक्षा की।

स्कंदमाता का मंत्र

ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥

प्रार्थना मंत्र

सिंहासनगता नित्यं पद्माञ्चित करद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥

स्तुति

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कन्दमाता रूपेण संस्थिता.
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥

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