शारदीय नवरात्रि में मां दुर्गा स्वर्ग लोक से इस लोक पधारती हैं। नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि में सच्चे मन से मां की पूजा करने वाले भक्तों के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। मां दुर्गा नवरात्रि में अपने भक्तों की पूजा-अर्चना से जल्दी खुश हो जाती हैं और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं। नवरात्र में देवी की उपासना करने वाले साधकों को सिद्धि की प्राप्ति भी होती है। आइये इस अवसर पर आपको बताते हैं मां दुर्गा के विशालाक्षी स्वरूप के बारे में।
विशालाक्षी शक्तिपीठ
हिन्दू धर्म के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में विशालाक्षी शक्तिपीठ का भी नाम शामिल है। इसे काशी विशालाक्षी मंदिर भी कहा जाता है। यहां देवी माता सती के दाहिने कान के मणिजड़ित कुंडल गिरे थे। इसलिए इस जगह को 'मणिकर्णिका घाट' भी कहते हैं। यह शक्तिपीठ अथवा मंदिर, उत्तर प्रदेश के वाराणसी नगर में काशी विश्वनाथ मंदिर से कुछ दूरी पर पतित पावनी गंगा के तट पर स्थित मीरघाट (मणिकर्णिका घाट) पर है। नवरात्रि के सभी नौ दिनों के दौरान मंदिर में विशेष पूजा होती है। स्कन्द पुराण के अनुसार, 'मां विशालाक्षी' नौ गौरियों (नौ देवियों) में पंचम गौरी हैं। 'मां विशालाक्षी' को ही 'मां अन्नपूर्णा' भी कहते हैं। ऐसा इसलिए कहा जाता है कि ये संसार के समस्त जीवों को भोजन उपलब्ध कराती हैं। 'मां अन्नपूर्णा' को ‘मां जगदम्बा’ का ही एक रूप माना गया है।
शक्तिपीठों की कहानी
देवी पुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है और ये पवित्र शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर स्थापित हैं। इन 51 शक्तिपीठों के बनने के सन्दर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचलित है। राजा दक्ष प्रजापति ने कनखल (हरिद्वार) में 'बृहस्पति सर्व' नामक यज्ञ का आयोजन करवाया और इस यज्ञ में सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया, लेकिन भगवान शिव से अपने अपमान का बदला लेने के लिए अपने जमाता भगवान शंकर को नहीं बुलाया। भगवान शंकर जी की पत्नी और राजा दक्ष की पुत्री माता सती इस अपमान से पीड़ित हुई और माता सती ने उसी यज्ञ के अग्नि कुंड में कूदकर अपनी प्राणाहुति दे दी। इसके बाद भगवान शंकर ने माता सती के पार्थिव शरीर को अपने कंधे पर उठा करके तांडव करने लगे। भगवान शंकर को रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता सती के शरीर को कई टुकड़ों में काट दिया। माता सती के शरीर के अंग, वस्त्र और आभूषण जहां-जहां गिरे, उन जगहों पर मां दुर्गा के शक्तिपीठ बनें और ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाते हैं।