नवरात्र पर किया गया पूजा-पाठ मनोवांछित फल की प्राप्ति कराने वाला होता है। बस, आवश्यकता है शुद्ध आचार-व्यवहार, सही विधि और पूजा हेतु सही स्थान के चयन करने की। नवरात्र में किए गए कार्य भी शुभ फलदाई होते हैं। उत्तर-पूर्व वास्तु पुरुष का सिर यानी मस्तिष्क होता है। मस्तिष्क हमारे द्वारा किए जाने वाले सारे क्रिया-कलापों को नियंत्रित करता है। यह आवश्यक नहीं है कि आप कितने समय तक पूजा करते हैं, बल्कि आवश्यक यह है कि आप कितनी तन्मयता से पूजा करते हैं। सही स्थान पर बनाया गया पूजा स्थल आपको एकाग्रता प्रदान करता है, जिससे आपका पूजन फलदायी बनता है। जिस कक्ष में पूजा-स्थल बना हो, वहां सूर्य की रोशनी एवं ताजा हवा का समुचित प्रबंध हो। पूजा कक्ष में मृतकों, पूर्वजों आदि के चित्र नहीं रखने चाहिए। दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है। इस दिशा में पूजा स्थल या वेदी की स्थापना नहीं करनी चाहिए। यह पूजा सार्थक नहीं होती। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में की गयी पूजा अनावश्यक खर्चों को आमंत्रित करती है।
पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास ने बताया कि किसी नए कार्य की शुरुआत या निवेश के लिए भी नवरात्रों को शुभ माना जाता है। मकान खरीदने जैसा अहम निर्णय अकसर लोग नवरात्रों में करना उचित समझते हैं। अगर आप भी इस नवरात्र मकान खरीदने या निर्माण आरंभ करने जा रहे हैं तो कुछ बातों का ख्याल अवश्य रखें। भवन निर्माण के लिए खुदाई की शुरुआत सही दिशा से किया जाना आवश्यक है। यदि खुदाई अथवा नींव का कार्य गलत दिशा से आरंभ किया गया है तो ऐसे में निर्माण में अनावश्यक अड़चनों का सामना करना पड़ता है। यदि भवन के चारों ओर बहता हुआ जल है तो ऐसा भवन निवास हेतु उत्तम माना जाता है। अगर भवन के आसपास कोई जल स्रोत है तो वह किस दिशा में है, यह तथ्य भी ध्यान देने योग्य है। भवन के उत्तर में बहता पानी लक्ष्मी के आगमन का परिचायक है। इसलिए ऐसी इमारत में, जिसके उत्तर में पानी का स्रोत है, किया गया निवेश अच्छा मुनाफा देता है। अगर संभव हो सके तो भवन के चारों और खाली जगह छोड़नी चाहिए। दक्षिण, पश्चिम की तुलना में उत्तर व पूर्व में ज्यादा खाली जगह छोड़नी चाहिए। फर्श की ढलान उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें। अंडरग्राउंड वाटर टैंक के लिए उत्तर-पूर्व एवं पूर्व दिशा श्रेष्ठ हैं, तो ओवरहेड वाटर टैंक दक्षिण-पश्चिम या पश्चिम में बना सकते हैं। कुछ लोग प्रश्न करते हैं कि बहुमंजिला इमारतें रहने के लिए उपयुक्त नहीं होतीं, क्योंकि उनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति का अभाव होता है। यह तर्क सही नहीं है। बहुमंजिला इमारतें भी वास्तु की दृष्टि से रहने के लिए पूरी तरह अनुकूल होती हैं। इन इमारतों में कॉस्मिक ऊर्जा अधिक होती है, जो कि गुरुत्वाकर्षण शक्ति की तरह ही महत्वपूर्ण होती है।
हर दिन चढ़ता है अलग-अलग प्रसाद, जानें ये जरूरी बात
नवरात्र पर्व पर माता की आराधना के साथ ही व्रत-उपवास और पूजन का विशेष महत्व है। नवरात्र के नौ दिन मां दुर्गा के अलग-अलग रूपों की पूजा की जाती है। ज्योतिषाचार्य अनीष व्यास के अनुसार नौ दिनों में माता को प्रत्येक दिन के अनुसार भोग अर्पित करने से मां सभी प्रकार की समस्याओं को दूर करती हैं। प्रथम दिन मां के दिव्य स्वरूप शैलपुत्री के चरणों में गाय का शुद्ब देसी घी अर्पित करने से आरोग्य का आर्शीवाद मिलता है। दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी को शक्कर का भोग लगाने से आयु में वृद्बि होती है। तृतीया स्वरूप मां चंद्रघंटा को दूध या फिर दूध से बनी मिठाई, खीर अर्पित करने से बाधाओं से मुक्ति मिलती है। चौथे स्वरूप मां कूष्मांडा को मालपुए का भोग लगाकर मंदिर में दान करने से बुद्बि का विकास व निर्णय शक्ति मिलती है। ऐसे ही मां के पंचम स्वरूप स्कंदमाता को केले का नैवेध चढ़ाने से उत्तम स्वास्थ्य व निरोगी काया की प्राप्ति होती है। छठे स्वरूप मां कात्यायनी को इस दिन शहद का भोग लगाने से मनुष्य के आकर्षण में वृद्बि होती है। सातवें दिन मां के कालरात्रि स्वरूप की आराधना कर मां को गुड़ चढ़ाने व उसे ब्नाहमण को दान करने से शोक तथा आकस्मिक संकट से मां रक्षा करती हैं। अष्ठम स्वरूप महागौरी को नारियल का भोग लगाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है। ऐसे ही नवम स्वरूप मां सिद्बरात्रि को तिल के लड्डू व अनार अर्पित करने से अनहोनी घटनाएं से बचाव होता है।