नरक चौदस 2022: यहां श्मशान घाट में मनाई जाती है छोटी दिवाली, बच्चे, महिला-पुरुष सभी होते हैं शामिल
By राजेश मूणत | Published: October 23, 2022 08:28 PM2022-10-23T20:28:01+5:302022-10-23T20:28:01+5:30
रूप चौदस की शाम को अंधेरा गहराते समय रतलाम के त्रिवेणी मुक्तिधाम का यह नजारा देखने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है। इनमे महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं। श्मशान स्थल पर पर्व की इस परंपरा को शहर की प्रेरणा संस्था द्वारा कुछ वर्षों पूर्व शुरु की गई है।
रतलाम (मध्य प्रदेश): एक तरफ चिता से उठ रही लपटें और दूसरी तरफ पटाखों की रोशनी से झिलमिल श्मशान स्थल। एक तरफ अंतिम क्रिया के दृश्य तो दूसरी तरफ रंगोली और दीपमालाओं से सजावट। रतलाम के प्राचीन मुक्तिधाम त्रिवेणी पर वर्ष में एक बार नरक चौदस की शाम को यह दृश्य उपस्थित होता है।
आमतौर पर श्मशान स्थल का नाम सुनते ही व्यक्ति के मन में एक अलग ही संवेदना जाग जाती है। लेकिन रतलाम के सबसे प्राचीन श्मशान स्थल त्रिवेणी पर दीप पर्व के एक दिन पूर्व नरक चौदस का पर्व बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है।
रूप चौदस की शाम को अंधेरा गहराते समय रतलाम के त्रिवेणी मुक्तिधाम का यह नजारा देखने बड़ी संख्या में लोग पहुंचते है। इनमे महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते हैं। श्मशान स्थल पर पर्व की इस परंपरा को शहर की प्रेरणा संस्था द्वारा कुछ वर्षों पूर्व शुरु की गई है। संस्था के सदस्यों की मान्यता है कि इस पर्व पर श्मसान में रोशनी रंगोली और दीप जलाकर वे अपने पूर्वजों के साथ दीप पर्व मनाते हैं।
दीप पर्व दीपावली की पूर्व संध्या को त्रिवेणी मुक्तिधाम का यह नजारा देखने लायक रहता है। श्मशान स्थल पर जगह जगह लोग रंगोली सजाते हैं। साथ ही, सैकड़ों दीपक प्रज्वलित कर अपने पूर्वजों को याद करते हैं। इस दौरान ढोल-बाजों के साथ जमकर आतिशबाजी भी होती है। मुक्तिधाम में मनाया जा रहा नरक चौदस का यह उत्सव बीते वर्ष 2006 में पहली बार मनाया गया था। उसके बाद अब यह परंपरा बन गया है। बीते 16-17 सालों में धीरे-धीरे यहां आने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है।