Meerabai Jayanti 2019: श्रीकृष्ण की दीवानी थीं मीराबाई, जानिए पति की मौत के बाद क्या हुआ उनके साथ
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: October 13, 2019 07:16 AM2019-10-13T07:16:52+5:302019-10-13T07:16:52+5:30
वहीं, इतिहासकारों का मानना है कि श्री कृष्ण भक्ति शाखा की महान कवियत्री मीराबाई और उनके गुरु रविदास जी की मुलाकात और उनके रिश्ते के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलता है।
मीरा बाई एक महान हिंदू कवि और भगवान कृष्ण की सबसे बड़ी भक्त मानी जाती हैं। भगवान कृष्ण की याद और उनकी भक्ति में लीन मीराबाई ने 300 से अधिक कविताओं की रचना की। मीरा एक राजपूत राजकुमारी थीं जिनका जन्म 1498 में कुडकी, राजस्थान में हुआ था। उसका विवाह चित्तौड़ के शासक भोजराज के साथ हुआ था। वह अपने पति में कोई दिलचस्पी नहीं लेती थी क्योंकि वह खुद को भगवान कृष्ण से विवाहित मानती थी।
वहीं, इतिहासकारों का मानना है कि श्री कृष्ण भक्ति शाखा की महान कवियत्री मीराबाई और उनके गुरु रविदास जी की मुलाकात और उनके रिश्ते के बारे में कोई साक्ष्य प्रमाण नहीं मिलता है। हालांकि उनकी जयंती को लेकर बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं। हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन को मीराबाई की जयंती के रूप में मनाया जाता है।
जानिए मीराबाई के बारे में सबकुछ
जैसा कि जगजाहिर है कि मीराबाई भगवान श्रीकृष्ण की दीवानीं थी। मान्यता है कि बचपन से ही मीराबाई श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन थीं। कहा जाता है कि तुलसीदास को गुरु बनाकर रामभक्ति भी की कृष्ण भक्त मीरा ने राम भजन भी लिखे हैं, हालांकि इसका स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है, लेकिन कुछ इतिहासकार ये मानते हैं कि मीराबाई और तुलसीदास के बीच पत्रों के जरिए संवाद हुआ था।
बचपन से ही भगवान श्री कृष्ण को अपना दुल्हा मानती थीं। इसलिए वो अपना विवाह नहीं करना चाहती थीं। मीराबाई की इच्छा के विरुद्ध जाकर उनका विवाह मेवाड़ के राजकुमार भोजराज के साथ कर दिया गया। हालांकि कुछ दिन पश्चात उनके पति की मृत्यु हो गई। ऐसे में मीराबाई की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति और भी दीवानगी बढ़ गई। मीराबाई की कृष्ण भक्ति उनके पति के परिवार को अच्छा नहीं लगा। उनके परिवालों ने मीरा को कई बार जहर देकर मारने की भी कोशिश की। मान्यता है कि भगवान श्री कृष्ण की वजह से कुछ नहीं हुआ।
इसके बाद मीरा वृंदावन और फिर द्वारिका चली गई। वहां जाकर मीरा ने कृष्ण भक्ति की और जोगन बनकर साधु-संतों के साथ रहने लगीं। मान्यता है कि जीवनभर मीराबाई की भक्ति करने के कारण उनकी मृत्यु श्रीकृष्ण की भक्ति करते हुए ही हुई थीं। मान्यताओं के अनुसार वर्ष 1547 में द्वारका में वो कृष्ण भक्ति करते-करते श्रीकृष्ण की मूर्ति में समां गईं थी।