लाइव न्यूज़ :

बनारस में जलती चिताओं के बीच 15 मार्च को खेली जाएगी महाश्मशान होली, तस्वीरों में देखिए

By आशीष कुमार पाण्डेय | Updated: March 13, 2022 16:21 IST

पौराणिक कथाओं के मुताबिक बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिकी हुई काशी इस पूरे पृथ्वी का इकलौता शहर है, जहां के लोग अबीर और गुलाल से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेलते हैं। इस प्रथा को चिता-भस्म होली कहते हैं।

Open in App
ठळक मुद्देमाना जाता है कि बाबा विश्वनाथ और पार्वती जी का गौना फाल्गुन एकादशी (रंगभरी एकादशी) के दिन हुआ थारंगभरी एकादशी के अगले दिन काशी में चिता की राख से प्रभु शिव के साथ भस्म होली खेली जाती हैकाशी के मणिकर्णिका घाट पर एक तरफ चिताएं जलती हैं और दूसरी ओर होली खेली जाती है

वाराणसी: काशी में मृत्यु भी उत्सव के समान होती है। मान्यताओं के मुताबिक काशी में मृत्यु मात्र से मोक्ष की प्राप्ती होती है। यही कारण है कि बनारस की होली भी अड़भंगी और निराली होती है।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक बाबा विश्वनाथ के त्रिशूल पर टिकी हुई काशी इस पूरे पृथ्वी का इकलौता शहर है, जहां के लोग अबीर और गुलाल से नहीं बल्कि चिता की राख से होली खेलते हैं। इस प्रथा को चिता-भस्म होली कहते हैं।

रंगभरी एकादशी के दिन काशी के मणिकर्णिका घाट स्थित बाबा महामशानेश्वर महादेव मंदिर की विशेष पूजा-अर्चना होगी और उसके अगले दिन यानी 15 मार्च को महामशान पर बाबा के भक्त दिन में 11.30 बजे से चिता भस्म होली खेलना प्रारंभ करेंगे।

बनारस में मणिकर्णिका घाट की गलियों में एक तरफ अंत्येष्टि के लिए शव जाते हैं वहीं दूसरी ओर उन्हीं गलियों में फागुन की गीत गाते हुए भक्त होली खेलते हैं। घाट पर जलती हुई चिताओं के बीच काशी के लोग मृत्यु को भी उत्सव की तरह मनाते हैं।

मान्यता है कि रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन महाश्मशान में बाबा विश्वनाथ स्वयं आते हैं अपने भक्तों के साथ भस्म होली खेलने के लिए। इंसानी शरीर के भस्म की राख बन जाती है गुलाल और उसी से खेली जाती है बनारस की चिता भस्म होली।

कहा जाता है कि बनारस में चिताभूमि के स्वामी और भूतभावन महादेव और पार्वती जी का गौना फाल्गुन एकादशी के दिन हुआ था और इसी दिन वह शिव के साथ बनारस में आई थीं।

काशी की इस महाहोली में राग और विराग दोनों नजर आते हैं। भक्त हर साल काशी के महाश्मशान मणिकर्णिका घाट पर जुटते हैं और बाबा मशान नाथ की पूजा कतरते हुए विधिवत भस्म, अबीर, गुलाल और रंग चढ़ाते हैं।

उसके बाद डमरू बजाते हुए भक्त मणिकर्णिका घाट पर जलती हुई चिताओं के बीच की भस्म लेकर एक-दूसरे को लगाते हैं और इस तरह से बनारस में खेली जाती है चिता भस्म होली। 

टॅग्स :होलीवाराणसीधार्मिक खबरें
Open in App

संबंधित खबरें

स्वास्थ्ययूपी प्रतिबंधित कोडीन युक्त कफ सिरप का बना हब, करोड़ों रुपए का प्रतिबंधित कफ सिरप वाराणसी में पकड़ा गया, नेपाल-बांग्लादेश में भी निर्यात

भारतMau Accident: बिहार से वाराणसी जा रही डबल डेकर बस हादसे का शिकार, 14 यात्री घायल

ज़रा हटकेVIDEO: बच्चे ने पीएम मोदी को सुनाई कविता, 'मेरा बनारस बदल रहा है', चुटकी बजाते रहे मोदी, देखें वायरल वीडियो

भारतVande Bharat Trains Route: पीएम मोदी ने 4 नई वंदे भारत ट्रेनों को दिखाई हरी झंडी, वाराणसी से इन रूटों पर करेंगी सफर; जानें

कारोबारPM Modi Varanasi Visit: 8 नवंबर को बनारस पहुंचे रहे पीएम मोदी, 4 वंदे भारत को दिखाएंगे हरी झंडी, देखिए शेयडूल

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठसभ्यता-संस्कृति का संगम काशी तमिल संगमम

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 06 December 2025: आज आर्थिक पक्ष मजबूत, धन कमाने के खुलेंगे नए रास्ते, पढ़ें दैनिक राशिफल

पूजा पाठPanchang 06 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 05 December 2025: आज 4 राशिवालों पर किस्मत मेहरबान, हर काम में मिलेगी कामयाबी

पूजा पाठPanchang 05 December 2025: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय