Krishna Janmashtami 2025: देशभर में जन्माष्टमी का पावन पर्व बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के अवसर पर मंदिरों और घरों में विशेष पूजा-अर्चना और साज-सज्जा की गई है। लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान कृष्ण के दर्शन और पूजा के लिए मंदिरों में उमड़ रहे हैं। वहीं, रात के समय भगवान कृष्ण का जन्म मंदिरों में कराया जाएगा।
भगवान कृष्ण के जन्म की परंपरा हर साल एक तरीके से ही मनाई जाती है जिसके तहत आधी रात को खीरा काटकर लड्डू गोपाल का जन्म कराया जाता है। कृष्ण जन्माष्टमी पर आधी रात को खीरा काटने की रस्म का गहरा धार्मिक और प्रतीकात्मक महत्व है। यह परंपरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी है और इसके बिना जन्माष्टमी की पूजा अधूरी मानी जाती है।
मगर क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों किया जाता है? तो आइए बताते हैं आपको इसके बारे में...
खीरा काटने की रस्म का महत्व
खीरे का डंठल गर्भनाल (Umbilical Cord) का प्रतीक माना जाता है। इस रस्म के पीछे मान्यता है कि जैसे जन्म के समय बच्चे को माँ से अलग करने के लिए गर्भनाल को काटा जाता है, ठीक उसी तरह खीरे को काटकर भगवान कृष्ण का जन्म कराया जाता है। इसे नाल छेदन की प्रतीकात्मक क्रिया भी कहते हैं।
आधी रात को, जब भगवान कृष्ण का जन्म होता है, तो डंठल वाले खीरे को ठीक उसी तरह से काटा जाता है, जैसे किसी शिशु के जन्म के समय उसकी गर्भनाल काटी जाती है। यह रस्म प्रतीकात्मक रूप से भगवान कृष्ण के जन्म को दर्शाती है।
खीरे को एक पवित्र फल माना जाता है और इसे प्रसाद के रूप में भगवान कृष्ण को चढ़ाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि खीरे का प्रसाद खाने से संतान सुख की प्राप्ति होती है, खासकर उन दंपत्तियों को जो संतान की कामना करते हैं।
इस तरह, सालों से इसी मान्यता के साथ इस परंपरा को निभाया जा रहा है।