Keelak Stotram Durga Saptashati: नवरात्र में करें 'कीलक स्तोत्र' का पाठ, भय का होगा नाश, देह त्यागने के बाद मिलेगा मोक्ष

By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: April 9, 2024 06:49 AM2024-04-09T06:49:58+5:302024-04-09T06:49:58+5:30

नवरात्र में श्री दुर्गा सप्तशती के कीलक स्तोत्र के पाठ से भक्त को मां अंबे भवानी का आशीर्वाद मिलता है, आध्यात्मिक सद्भाव, मन की शांति के साथ भक्त को सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

Keelak Stotram Durga Saptashati: Recite 'Keelak Stotra' during Navratri, fear will be destroyed, you will get salvation after leaving the body | Keelak Stotram Durga Saptashati: नवरात्र में करें 'कीलक स्तोत्र' का पाठ, भय का होगा नाश, देह त्यागने के बाद मिलेगा मोक्ष

फाइल फोटो

Highlightsनवरात्र में दुर्गा सप्तशती के कीलक स्तोत्र के पाठ से भक्त को मां अंबे भवानी का आशीर्वाद मिलता है‘कीलक”स्तोत्र के पाठ से भक्तों को आध्यात्मिक सद्भाव, मन की शांति एवं कार्यों में सफलता मिलती हैकार्य सिद्धि के लिये ‘कीलक”स्तोत्र के पाठ के बाद किसी अन्य मंत्र की आवश्यक्ता नहीं होती है

Keelak Stotram Durga Saptashati: ‘कीलक”स्तोत्र का पाठ दुर्गा सप्तशती में अर्गला स्तोत्र के पाठ के उपरान्त  किया जाता है। मार्कण्डेय ऋषि जी ने दुर्गा शप्तशती के संबंध में कहा कि अन्य मंत्रों का जप न करके अगर भक्त केवल दुर्गा सप्तशती का पाठ करे उसकी स्तुति मात्र से ही सत्, चित और आनन्द की प्राप्ति होती है। भक्तों को दुर्गा शप्तशती के पाठ के बाद कार्य सिद्धि के लिये किसी अन्य मंत्र याअन्य साधन के उपयोग की जरूरत नहीं रह जाती है।

दुर्गा शप्तशती में कवच को बीज, अर्गला को शक्ति तथा कीलक को कीलक संज्ञा दी गयी है। जिस प्रकार सब मन्त्रों में पहले बीज का, फिर शक्ति का तथा अन्त में कीलक का उच्चारण होता है, उसी प्रकार मां अंबे की आराधना में भक्त पहले कवचरुप बीज का, फिर अर्गलारूपा शक्ति का तथा अन्त में कीलकरूप कीलक का पाठ करते हैं।

ऋषि मार्कंडेय अपने शिष्यों को दुर्गा सप्तशती का पाठ करते समय भक्तों के सामने आने वाली बाधाओं को दूर करने के तरीके और उपाय सोलह श्लोकों में बताते हैं। कीलक स्तोत्र के पाठ से भक्त को मां अंबे भवानी का आशीर्वाद मिलता है, आध्यात्मिक सद्भाव, मन की शांति के साथ भक्त को सभी कार्यों में सफलता मिलती है।

दुर्गा सप्तशती का जाप शुरू करने से पहले और कवच स्तोत्र के बाद अर्गला स्तोत्र और उसके बाद कीलक स्तोत्र का जाप करना चाहिए। किलक स्तोत्र का पाठ किये बिना श्री दुर्गा सप्तशती का पाठ फलदायक नहीं होता लेकिन मां के भक्तों को दुर्गा सप्तशती का पाठ करने के बाद हर बार क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए, ताकि पाठ में हुई कमियों के लिए मां क्षमा कर सकें।

कीलक स्त्रोत्र के विषय में अनेको भ्रांतियां समाज में उपस्थित हैं। प्राय: यह कहा जाता है कि कीलक स्त्रोत्र का पाठ यदि सही विधि से नहीं किया गया तो वह फलदायी नहीं होता अपितु हानि पहुंचता है। मनुष्यों की इसी शंका का भगवान् शंकर ने स्वयं निवारण किया। इसीलिए कीलक मंत्रों के ऋषि भगवान शंकर बताये गये हैं। कीलक का अर्थ होता है किसी के प्रभाव को नष्ट कर देने वाला मंत्र। भगवान् शंकर ने भक्तों को इस प्रकार समझाया है-

समग्राण्यपि सिद्धयन्ति लोकशंकामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रया मास सर्वमेकमिदं शुभम्।।

अर्थात् यह सप्तशती नामक सम्पूर्ण स्तोत्र ही सर्वश्रेष्ठ एवं कल्याणमय है। कीलक स्तोत्र पाठ में समर्पण ही विशेष भाव है जिसको महादेवजी ने कीलित किया है। केवल कीलन और निष्कीलन के ज्ञान की अनिवार्यता बताने के लिये ही विनाश होना कहा गया है। सम्पूर्ण समर्पण के महत्त्व को जीवन में पहचानते हुए ही विद्वान् पुरुष को इस निर्दोष स्तोत्र का पाठ आरम्भ करना चाहिए।

॥अथ कीलकम्॥

ॐ अस्य श्रीकीलकमन्त्रस्य शिव ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहासरस्वती देवता, श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थं सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः ॥

॥ ॐ नमश्‍चण्डिकायै ॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ विशुद्धज्ञानदेहाय त्रिवेदीदिव्यचक्षुषे।
श्रेयःप्राप्तिनिमित्ताय नमः सोमार्धधारिणे॥1॥

सर्वमेतद्विजानीयान्मन्त्राणामभिकीलकम्।
सोऽपि क्षेममवाप्नोति सततं जाप्यतत्परः॥2॥

सिद्ध्यन्त्युच्चाटनादीनि वस्तूनि सकलान्यपि।
एतेन स्तुवतां देवी स्तोत्रमात्रेण सिद्ध्यति॥3॥


न मन्त्रो नौषधं तत्र न किञ्चिदपि विद्यते।
विना जाप्येन सिद्ध्येत सर्वमुच्चाटनादिकम्॥4॥

समग्राण्यपि सिद्ध्यन्ति लोकशङ्कामिमां हरः।
कृत्वा निमन्त्रयामास सर्वमेवमिदं शुभम्॥5॥

स्तोत्रं वै चण्डिकायास्तु तच्च गुप्तं चकार सः।
समाप्तिर्न च पुण्यस्य तां यथावन्नियन्त्रणाम्॥6॥

सोऽपि क्षेममवाप्नोति सर्वमेवं न संशयः।
कृष्णायां वा चतुर्दश्यामष्टम्यां वा समाहितः॥7॥

ददाति प्रतिगृह्णाति नान्यथैषा प्रसीदति।
इत्थंरुपेण कीलेन महादेवेन कीलितम्॥8॥

यो निष्कीलां विधायैनां नित्यं जपति संस्फुटम्।
स सिद्धः स गणः सोऽपि गन्धर्वो जायते नरः॥9॥

न चैवाप्यटतस्तस्य भयं क्वापीह जायते।
नापमृत्युवशं याति मृतो मोक्षमवाप्नुयात्॥10॥

ज्ञात्वा प्रारभ्य कुर्वीत न कुर्वाणो विनश्यति।
ततो ज्ञात्वैव सम्पन्नमिदं प्रारभ्यते बुधैः॥11॥

सौभाग्यादि च यत्किञ्चिद् दृश्यते ललनाजने।
तत्सर्वं तत्प्रसादेन तेन जाप्यमिदं शुभम्॥12॥

शनैस्तु जप्यमानेऽस्मिन् स्तोत्रे सम्पत्तिरुच्चकैः।
भवत्येव समग्रापि ततः प्रारभ्यमेव तत्॥13॥

ऐश्‍वर्यं यत्प्रसादेन सौभाग्यारोग्यसम्पदः।
शत्रुहानिःपरो मोक्षः स्तूयते सा न किं जनैः॥14॥

॥ इति देव्याः कीलकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
 

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