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रमजान में ज़कात (दान) देने का महत्व

By उस्मान | Updated: May 30, 2018 11:29 IST

ज़कात के रूप में हर मुसलमान को अपनी आय का 2.5 प्रतिशत धन ज़कात में दे देना होता है जोकि पूरी तरह से उस पर ही निर्भर करता है।

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रमजान माह में ज़कात व फितरा (दान या चंदा) देने का बहुत बड़ा महत्व है। ज़कात देना इस्लाम धर्म के पांच स्तंभों (कलमा, नमाज, ज़कात, रोजा और हज ) में से एक है। ज़कात धनराशि होती है जिसे मुस्लिम, इस्‍लामिक वित्‍त वर्ष के अंत में भुगतान कर देता है। यह समय रमजान के शुरुआत में आता है। हर इस्लामी वित्त वर्ष, रमजान के समय में शुरू होता है और अगले रमजान के अंत में समाप्‍त हो जाता है। रमजान के दिनों ज़कात देना बहुत ही अच्‍छा माना जाता है।

ज़कात में कितनी धनराशि दी जाती है? 

ज़कात के रूप में हर मुसलमान को अपनी आय का 2.5 प्रतिशत धन ज़कात में दे देना होता है जोकि पूरी तरह से उस पर ही निर्भर करता है। ईद के पहले तक अगर घर में कोई नवजात शिशु भी जन्म लेता है तो उसके नाम पर फितरा के रूप में पौने तीन किलो अनाज गरीबों-फकीरों के बीच में दान किया जाता है। 

रमजान में ज़कात का महत्त्व

इस्लाम धर्म में ज़कात (दान) और ईद पर दिए जाने वाले फितरा का खास महत्व है। रमजान माह में इनको अदा करने से महत्व और बढ़ जाता है। समाज में समानता का अधिकार देने एवं इंसानियत का पाठ पढ़ाने के लिए फितरा फर्ज है। रोजे की हालत में इंसान से कुछ भूल-चूक हो जाती है। जबान और निगाह से गलती हो जाती है। इन्हें माफ कराने के लिए सदका दिया जाता है। वह शख्स जिस पर ज़कात फर्ज है उस पर फित्र वाजिब है। यह फकीरों, मिसकीनों (असहाय) या मोहताजों को देना बेहतर है। ईद का चांद देखते ही फित्र वाजिब हो जाता है। ईद की नमाज पढ़ने से पहले इसे अदा कर देना चाहिए।

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ज़कात के बारे में ये बातें हर मुस्लिम को मालूम होनी चाहिए

- ज़कात में दी जाने वाली कमाई कोई काली कमाई नहीं होनी चाहिए। वह व्‍यक्ति की मेहनत की कमाई होनी चाहिए।

- व्‍यक्ति जितना ज्‍यादा  ज़कात देगा, उतना ही कमाएगा।इससे उसे जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। ज़कात देने से बरकत आती है और उस इंसान की तरक्‍की होती है।

- ज़कात देने से गरीब लोगों के दिलों की नफरतें खतम होती हैं, तथा प्‍यार और सम्‍मान बढ़ता है।

-ज़कात से धन का प्रवाह संतुलित हो जाता है। जो लोग गरीब होते हैं उनकी जरूरतें पूरी हो जाती है और जो भूखे होते हैं उन्‍हें भरपेट भोजन मिल जाता है।

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- ज़कात देने से मन शुद्ध होता है और हर मुसलमान का अल्‍लाह के साथ मजबूत रिश्‍ता हो जाता है। उसका, अल्‍लाह पर भरोसा और विश्‍वास बढ़ जाता है।

- ज़कात गरीबों और अमीरों के बीच के फर्क को कम कर देता है। यह उन दोनों के बीच के अंतर को मिटा देता है।

(फोटो- पिक्साबे) 

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