रमजान में तरावीह की नमाज का महत्व, पिछले गुनाह माफ कर देता है अल्लाह

By उस्मान | Published: May 29, 2018 12:50 PM2018-05-29T12:50:22+5:302018-05-29T12:50:22+5:30

रमजान के महीने में ईशा की नमाज के बाद नमाज के रूप में तराहवी अदा की जाती है जिसमें कुरान पढ़ी जाती है। तरावीह महिलाओं और पुरुषों के सब के लिए जरूरी है।

Importance and benefits of taraweeh prayer or namaz in ramadan | रमजान में तरावीह की नमाज का महत्व, पिछले गुनाह माफ कर देता है अल्लाह

रमजान में तरावीह की नमाज का महत्व, पिछले गुनाह माफ कर देता है अल्लाह

रमजान का पाक महीना जारी है। मुस्लिम समुदाय के लोग रोजा रखकर अल्लाह की इबादत में लगे हुए हैं। इस्लामी कैलेंडर का नौवां महीना रमजान है जिसे अरबी भाषा में रमादान कहते हैं। नौवें महीने यानी रमजान को 610 ईस्वी में पैगंबर मोहम्मद पर कुरान प्रकट होने के बाद मुसलमानों के लिए पवित्र घोषित किया गया था। रोजे रखना इस्लाम के पांच स्तंभों (कलमा, नमाज, जकात, रोजा और हज ) में से एक है। अल्लाह रोजेदार और इबादत करने वालों की दुआ कुबूल करता है और इस पवित्र महीने में गुनाहों से बख्शीश मिलती है। इस आर्टिकल में हम आपको बता रहे हैं कि रमजान में तराहवी का क्या महत्व होता है।

तराहवी क्या है?

तरावीह मुस्लमानों द्वारा रमजान के माह में रात्रि में की जाने वाली अतिरिक्त नमाज (प्रार्थना) है। रमजान के महीने में ईशा की नमाज के बाद नमाज के रूप में तराहवी अदा की जाती है जिसमें कुरान पढ़ी जाती है। तरावीह महिलाओं और पुरुषों के सब के लिए जरूरी है। खुद हुज़ूर ने भी तरावीह पढ़ी और उसे बहुत पसंद फरमाया। तरावीह के लिए पहले ईशा की नमाज पढ़ना जरूरी है। तरावीह अगर छूट गई और समय खत्म हो गया तो नहीं पढ़ सकते। तरावीह में एक बार कुरान पाक खत्म करना सुन्नत-ए-मौअक्कदा है। अगर कुरआन पाक पहले खत्म हो गया, तो तरावीह आखिर रमजान तक बराबर पढ़ते रहें क्योंकि यह सुन्नत-ए-मौअक्कदा है।

तरावीह का महत्व

तरावीह की नमाज़ सुन्नत मुअक्कदा है। कुरान में लिखा 'जिसने ईमान के साथ और अज्र व सवाब की आशा रखते हुए रमजान रखे अर्थात् तरावीह की नमाज पढ़ी, तो उसके पिछले गुनाह क्षमा कर दिए जाएंगे। सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फरमाया जो शख्स रमज़ान (की रातों) में ईमान के साथ और सवाब की नियत से (इबादत के लिए) खड़ा हो उसके पिछले तमाम गुनाह माफ हो जाते हैं।

तरावीह के ज़रूरी मसाइल

- तरावीह का वक्त ईशा की नमाज़ पढ़ने के बाद से शुरू होता है और सुबह सादिक़ तक रहता है।
- वित्र की नमाज़ तरावीह से पहले भी पढ़ सकते हैं और बाद में भी, लेकिन बाद में पढ़ना बेहतर है।
- रमज़ान में वित्र की नमाज़ जमाअत के साथ पढ़नी चाहिए।
- तरावीह की नमाज़ दो-दो रकअत करके पढ़नी चाहिए और हर चार रकअत के बाद कुछ देर ठहर कर आराम कर लेना मुस्तहब है। 
-  आराम लेने के दौरान खामोश बैठे रहें या क़ुरान मजीद और तस्वीह पढ़ते रहें। 
- पूरे महीने में एक क़ुरान शरीफ तरावीह के अंदर पढ़कर या सुनकर खत्म करना सुन्नत है और दो मर्तबा अफजल है।
- बाज लोग रकअत की शुरू में तो बैठे रहते हैं और रक़ूअ में शरीक हो जाते है, ये मकरूह है। 
- किसी की तरावीह अभी कुछ बाक़ी थी और इमाम ने वित्र की नियत बांध ली तो उसे पहले इमाम के साथ पढ़कर फिर अपनी तरावीह पूरी करनी चाहिए।
- तीन दिन से कम में क़ुरान मजीद खत्म करना अच्छा नहीं।
- तरावीह पढ़ना और तरावीह में एक कुरान मजीद खत्म करना ये दोनों अलग अलग सुन्नते हैं। 

यह भी पढ़ें- जानिए क्या है सहरी, इफ्तार, तराहवी, जकात अलविदा जुमा, चांद और ईद

रमजान में खजूर का महत्त्व

इस्लाम अरब से शुरू हुआ था और वहां पर खजूर आसानी से उपलब्ध फल था। यहीं से खजूर का इस्तेमाल शुरू किया गया। रोजा खजूर खा कर ही खोला जाता है। हालांकि लोग पानी पीकर भी रोजा खोलते हैं। खजूर में काफी मात्रा में फाइबर होता है, जो शरीर के लिए बेहद जरूरी होता है। खजूर खाने से पाचन तंत्र मजबूत रहता है। खजूर के सेवन से शरीर को ताकत मिलती है। खजूर का सेवन करने से कोलेस्ट्रॉल लेवल भी कम होता है, जिससे दिल की बीमारीयां होने का खतरा नहीं रहता है। खजूर में आयरन पाया जाता है, जोकि खून से संबंधित बीमारियों से निजात दिलाता है। इसके अलावा खजूर में पोटेशियम काफी मात्रा में होता है, वही सोडियम की मात्रा कम होती है, ये नर्वस सिस्टम के लिए फायदेमंद होता है।

रमजान में जकात

रमजान माह में जकात व फितरा का बहुत बड़ा महत्व है। ईद के पहले तक अगर घर में कोई नवजात शिशु भी जन्म लेता है तो उसके नाम पर फितरा के रूप में पौने तीन किलो अनाज गरीबों-फकीरों के बीच में दान किया जाता है। इस्लाम धर्म में जकात (दान) और ईद पर दिया जाने वाले फितरा का खास महत्व है। रमजान माह में इनको अदा करने से महत्व और बढ़ जाता है। समाज में समानता का अधिकार देने एवं इंसानियत का पाठ पढ़ाने के लिए फितरा फर्ज है। रोजे की हालत में इंसान से कुछ भूल-चूक हो जाती है। जबान और निगाह से गलती हो जाती है। इन्हें माफ कराने के लिए सदका दिया जाता है। वह शख्स जिस पर जकात फर्ज है उस पर फित्र वाजिब है। यह फकीरों, मिसकीनों (असहाय) या मोहताजों को देना बेहतर है। ईद का चांद देखते ही फित्र वाजिब हो जाता है। ईद की नमाज पढ़ने से पहले इसे अदा कर देना चाहिए।

(फोटो- पिक्साबे) 

Web Title: Importance and benefits of taraweeh prayer or namaz in ramadan

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे