Holi 2025: भारत सहित दुनिया भर में होली की धूम?, पिथौरागढ़ में 125 से अधिक गांव नहीं मनाते त्योहार?, आखिर कारण

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: March 12, 2025 18:40 IST2025-03-12T18:39:12+5:302025-03-12T18:40:56+5:30

Holi 2025 live:पिथौरागढ़ जिले के तल्ला डारमा, तल्ला जोहार क्षेत्र और बागेश्वर जिले के मल्ला दानपुर क्षेत्रों के 125 से अधिक गांवों के लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं क्योंकि उनके कुलदेवता रंगों से खेलने पर नाराज हो जाते हैं।

Holi 2025 live special People 125 villages remote areas Kumaon in Uttarakhand not celebrate Holi due fear Kuldevta | Holi 2025: भारत सहित दुनिया भर में होली की धूम?, पिथौरागढ़ में 125 से अधिक गांव नहीं मनाते त्योहार?, आखिर कारण

file photo

Highlightsरविवार से शुरू होकर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक चलता है। कुमांउ क्षेत्र में 14 वीं शताब्दी में चंपावत के चांद वंश के राजा लेकर आए थे।पुजारियों का प्रभाव पड़ा, वहां इस त्योहार का प्रसार हो गया।

Holi 2025 live: उत्तराखंड के कुमांउ क्षेत्र के अधिकतर भागों में जहां देश के अन्य हिस्सों की भांति आजकल होली की धूम मची हुई है, वहीं इसके अंदरूनी उत्तरी हिस्से में 125 से अधिक गांवों में लोग अपने कुलदेवताओं के प्रकोप के डर से रंगों के इस त्योहार की मस्ती से दूर रहते हैं। मुनस्यारी कस्बे के निवासी पुराणिक पांडेय ने बताया,‘‘पिथौरागढ़ जिले के तल्ला डारमा, तल्ला जोहार क्षेत्र और बागेश्वर जिले के मल्ला दानपुर क्षेत्रों के 125 से अधिक गांवों के लोग होली का त्योहार नहीं मनाते हैं क्योंकि उनके कुलदेवता रंगों से खेलने पर नाराज हो जाते हैं।’’

होली एक सनातनी हिंदू त्योहार है जो माघ माह के पहले रविवार से शुरू होकर चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तक चलता है। पूर्वी कुमांउ क्षेत्र के सांस्कृतिक इतिहासकार पदम दत्त पंत ने बताया, ‘‘इस हिंदू सनातनी त्योहार को कुमांउ क्षेत्र में 14 वीं शताब्दी में चंपावत के चांद वंश के राजा लेकर आए थे।

राजाओं ने इसकी शुरुआत ब्राह्मण पुजारियों के माध्यम से की इसलिए जहां-जहां उन पुजारियों का प्रभाव पड़ा, वहां इस त्योहार का प्रसार हो गया। जिन क्षेत्रों में होली नहीं मनाई जाती है, ये वे क्षेत्र हैं जहां सनातन परंपराएं पूरी तरह से नहीं पहुंच पायीं।’’ बागेश्वर के सामा क्षेत्र के एक निवासी दान सिंह कोरंगा ने कहा, ‘‘सामा क्षेत्र के एक दर्जन से अधिक गांवों में ऐसी मान्यता है कि अगर ग्रामीण रंगों से खेलते हैं तो उनके कुलदेवता उन्हें प्राकृतिक आपदाओं के रूप में दंड देते हैं।’’

न केवल कुमांउ क्षेत्र के दूरस्थ गांवों बल्कि गढ़वाल क्षेत्र में रुद्रप्रयाग जिले के तीन गांवों--क्वीली, खुरझांग और एक अन्य गांव के निवासियों ने भी अपनी कुलदेवी त्रिपुरा सुंदरी द्वारा प्राकृतिक आपदा के रूप में इन गांवों पर कहर बरपाए जाने के बाद पिछले डेढ़ सौ साल से होली नहीं खेली है। पंत ने बताया,‘‘ न केवल उत्तराखंड के कई इलाकों में बल्कि गुजरात के बनासकांठा और झारखंड के दुर्गापुर क्षेत्रों के कई आदिवासी गांवों में भी कुलदेवताओं के श्राप या उनके क्रोध के डर से होली नहीं मनाई जाती है।’’

पिथौरागढ़ जिले के तल्ला जोहरा क्षेत्र के मदकोटी के पत्रकार जीवन वर्ती ने कहा कि चिपला केदार देवता में आस्था रखने वाले उनके क्षेत्र के कई गांवों में भी होली नहीं खेली जाती । उन्होंने बताया कि (माना जाता है कि) चिपला केदार न केवल रंगों से बल्कि होली के रोमांटिक गीतों से भी नाराज हो जाते हैं।

वर्ती ने कहा, ‘‘3700 मीटर उंची पहाड़ी पर स्थित चिपला केदार के श्रद्धालुओं को देवता की पूजा और यात्रा के दौरान तक रंगीन कपड़े पहने की अनुमति नहीं है। पूजा के दौरान पुजारियों समेत सभी श्रद्धालु केवल सफेद कपड़े पहनते हैं।’’

उन्होंने बताया कि कुलदेवताओं के क्रोध को देखते हुए इन इलाकों में होली अब भी प्रतिबंधित है लेकिन दीवाली और दशहरा जैसे हिंदू सनातनी त्योहारों को इन दूरस्थ क्षेत्रों में स्थान मिलना शुरू हो गया है। वर्ती ने बताया कि इन गांवों में रामलीला का मंचन होने लगा है और दिवाली भी मनाई जाने लगी है।

Web Title: Holi 2025 live special People 125 villages remote areas Kumaon in Uttarakhand not celebrate Holi due fear Kuldevta

पूजा पाठ से जुड़ीहिंदी खबरोंऔर देश दुनिया खबरोंके लिए यहाँ क्लिक करे.यूट्यूब चैनल यहाँ इब करें और देखें हमारा एक्सक्लूसिव वीडियो कंटेंट. सोशल से जुड़ने के लिए हमारा Facebook Pageलाइक करे