लाइव न्यूज़ :

जल्लीकट्टू पर्व: बैल करते हैं महिलाओं के लिए उचित वर का चुनाव, जानिए क्या कहता है इतिहास

By मेघना वर्मा | Published: January 16, 2019 9:11 AM

जिन लोगों को इस प्रतियोगिता में भाग लेना होता था वो बैलों के छूटते ही अपनी पकड़ से बैलों की पीठ पर चढ़ जाते थे। इसके बाद जो भी आदमी दौड़ते बैल पर ज्यादा देर सवारी कर ले वही विजेता घोषित कर दिया जाता था।

Open in App

दक्षिण भारत के तमिलनाडू में जल्लीकट्टू का त्योहार धूम-धाम से मनाया जा रहा है। इस साल 15 जनवरी को पड़ने वाले जलीकट्टू का इतिहास हजारों साल पुराना है। इस परम्परा का जिक्र संगम साहित्य में भी किया है जो 200 ईसा पूर्व का है। इस त्योहार में लोग दौड़ते हुए बुल यानी बैल की सींग पर लगे सोने के सिक्कों को पाने की कोशिश करते हैं। इस जलीकट्टू पर आईए आपको बताते हैं इस परम्परा का इतिहास और इसकी मान्यता। 

सिंधु घाटी सभ्यता में मिलते हैं निशां 

जल्लीकट्टू शब्द तमिल शब्द के साली कासू मतलब सिक्का और कट्टू मतलब पोटली से आया है। जिसे दौड़ते हुए बैल के सींग पर लगाया जाता है और बैल के ऊपर ज्यादा से ज्यादा देर बैठकर लोग इस पोटली को जीतना चाहते हैं। इतिहास की बात करें तो 1930 में मोहनजोदाड़ो से मिले एक पत्थर पर इस जलीकट्टू सभ्यता का दृश्य देखने को मिलता है। इससे इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिंधु घाटी की सभ्यता में भी इस त्योहार को मनाया जाता था। दिल्ली के संग्रहालय में इस पत्थर को संग्रह कर के रखा गया है।

सींग में बंधी होती है सोने के सिक्के की पोटली

बताया जाता है कि मदुरै नायक राजवंश में इस खेल के लिए एक बड़े और खुले मैदान को चुना जाता था। इसके एक छोर पर Vaadi Vaasal यानी इंट्रेस गेट को बनाया जाता था जहां से बैलों को छोड़ा जाता था। सजे-धजे बैलों के साथ उनके ओनर भी वहीं लाइन में खड़े रहते थे। बैलों की सींग पर सोने के सिक्कों की पोटली बांध दी जाती थी। इसके बाद एक के  बाद एक बैलों को छोड़ा जाता था।

जिन लोगों को इस प्रतियोगिता में भाग लेना होता था वो बैलों के छूटते ही अपनी पकड़ से बैलों की पीठ पर चढ़ जाते थे। इसके बाद जो भी आदमी दौड़ते बैल पर ज्यादा देर सवारी कर ले वही विजेता घोषित कर दिया जाता था। ये खेल देखने में जितना रोमांचित लगता है उतना ही खतरनाक भी होता है। हर साल कितने ही लोगों को इस खेल से चोट लगती है मगर फिर भी जलीकट्टू त्योहार को लोग पूरे मन और श्रद्धा से मनाते हैं। 

बैल चुनते हैं लड़कियों के लिए सही वर

जलीकट्टू का ये त्योहार मर्दों की हिम्मत और ताकत को देखने के लिए खेला जाता है। मान्यता ये भी है कि इस खेल में जितने वाले विजेता को उसकी पसंद की लड़की का हाथ मिल जाता है। तमिल का प्राचीन ग्रंथ  Kalithogai के अनुसार बैलों को महिला का सच्चा दोस्त बताया गया है। इसी कारण माना जाता है कि बैल ही उनके लिए सही वर चुनता है। 

भगवान शिव से भी जुड़ी हैं कहानी

लोगों की मानें तो इस जलीकट्टू त्योहार की एक कहानी भगवान शिव से भी जुड़ी हुई है। बताते हैं कि एक बार भगवान शिव ने अपने बैल को धरतीवासियों को लिए संदेश ले जाने को कहा। भगवान शिव ने कहा कि धरती पर लोगों से जाकर कहना की वो रोजाना तेल से मालिश करें और छह महीने में एक बार खाने का सेवन करें। बैल ने धरती पर पहुंचकर इसका उल्टा बोल दिया। भगवान शिव इस बात पर गुस्सा हो गए और उन्होंने अपने बैल को मनुष्य को कुचलने की सजा दे दी।

(फीचर फोटो- you_we_photography)

टॅग्स :जलीकट्टूइवेंट्स
Open in App

संबंधित खबरें

पूजा पाठVishwakarma Puja 2023: विश्वकर्मा पूजा कल, जानिए पूजा विधि, मंत्र, महत्व और कथा

फ़ैशन – ब्यूटीFemina Miss India 2023: राजस्थान की नंदिनी गुप्ता के सिर सजा मिस इंडिया 2023 का ताज, दिल्ली की श्रेया रहीं फर्स्ट रनर-अप

भारतविवादों में घिरा हुआ खेल जल्लीकट्‌टू तमिलनाडु में शुरू, बैलों को काबू करने उतरे खिलाड़ी

भारतJallikkattu: तमिलनाडु सरकार ने कोविड प्रतिबंध के साथ दी जलीकट्टू की अनुमति, जानें अब कैसे होगा इस खतरनाक खेल का आयोजन

स्वास्थ्यSurya Grahan 2021: आज लगेगा साल का आखिरी सूर्य ग्रहण, इन 10 बातों का रखें ध्यान, सेहत को हो सकता है गंभीर नुकसान

पूजा पाठ अधिक खबरें

पूजा पाठChristmas 2023: 25 दिसंबर को ही नहीं जनवरी में इस दिन भी मनाया जाता है क्रिसमस, जानें वजह

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 16 December: आज वृषभ राशिवालों को आर्थिक परेशानियों से मिलेगा छुटकारा, पढ़ें अपना दैनिक राशिफल

पूजा पाठआज का पंचांग 16 दिसंबर 2023: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय

पूजा पाठAaj Ka Rashifal 15 December: कार्य-व्यापार में तरक्की होने की संभावना, पढ़ें मेष से लेकर मीन राशि का दैनिक राशिफल

पूजा पाठआज का पंचांग 15 दिसंबर 2023: जानें आज कब से कब तक है राहुकाल और अभिजीत मुहूर्त का समय