हर धार्मिक अनुष्ठान के अंत में हवन जरूर होता है। अगर आप हवन और यज्ञ से परिचित हैं तो आप यह भी जरूर जानते होंगे की यज्ञ में आहुति देते हुए स्वाहा बोला जाता है। घर में यज्ञ करवाने से घर में सकारात्मकता ऊर्जा का प्रवेश होता है। कहते हैं कि स्वाहा अग्नि देव की पत्नि हैं जिस कारण हवन में आहुति देते समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है। हिन्दुओं के लिए यज्ञ और हवन का बड़ा महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हवन की आहुति को स्वाहा कहे बिना पूरा नहीं माना जाता।
क्यों बोला जाता है स्वाहापाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर के निदेशक ज्योतिषविद् एवं कुण्डली विश्ल़ेषक अनीष व्यास ने बताया कि कोई भी यज्ञ तब तक सफल नहीं माना जा सकता है जब तक कि हवन का ग्रहण देवता न कर लें। देवता हवन को तभी ग्रहण करते हैं जब हवन सामग्री को अग्नि के द्वारा स्वाहा के माध्यम से अर्पण किया जाए। जिस पर आज हम आपको कथा सुनाने जा रहे हैं। पौराणिक कथा के अनुसार स्वाहा दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। जिसकी शादी अग्निदेवता के साथ हुई। अग्निदेव अपनी पत्नी स्वाहा के माध्यम से ही हविष्य ग्रहण करते हैं तथा उनके माध्यम से यही हविष्य आह्वान किए गए देवता को प्राप्त होता है।
मिला था स्वाहा को वरदानइसी के साथ दूसरी कथा है कि अग्निदेव की पत्नी स्वाहा के पावक, पवमान और शुचि नामक तीन पुत्र हुए। बता दें कि भगवान श्रीकृष्ण ने स्वाहा को वरदान दिया था कि उसके नाम से देवता हविष्य को ग्रहण कर पाएंगे। इसलिए हवन के समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है।
हर धार्मिक अनुष्ठान के अंत में हवन जरूर होता है। अगर आप हवन और यज्ञ से परिचित हैं तो आप यह भी जरूर जानते होंगे की यज्ञ में आहुति देते हुए स्वाहा बोला जाता है। घर में यज्ञ करवाने से घर में सकारात्मकता ऊर्जा का प्रवेश होता है। कहते हैं कि स्वाहा अग्नि देव की पत्नि हैं जिस कारण हवन में आहुति देते समय स्वाहा मंत्र का उच्चारण किया जाता है। हिन्दुओं के लिए यज्ञ और हवन का बड़ा महत्व है। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक हवन की आहुति को स्वाहा कहे बिना पूरा नहीं माना जाता।