Happy Basant Panchami 2022: बसंत पंचमी आज, ये है पूजा का शुभ मुहूर्त, जानें सरस्वती पूजा विधि और कथा
By रुस्तम राणा | Published: February 5, 2022 07:19 AM2022-02-05T07:19:43+5:302022-02-05T07:20:44+5:30
ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती को समर्पित है।
Basant Panchami 2022: आज बसंत पंचमी का पावन पर्व है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल माघ मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन माता सरस्वती की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ की जाती है। ऐसी मान्यता है कि बसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती की उत्पत्ति हुई थी। यही कारण है कि बसंत पंचमी का पर्व मां सरस्वती को समर्पित है। मां सरस्वती ज्ञान और सुरों की देवी हैं। इस दिन शैक्षणिक संस्थानों के साथ ही घरों में भी मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है।
सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त
सुबह 7 बजकर 07 मिनट से पूजा का शुभ मुहूर्त प्रारंभ हो जाएगा, जो दोपहर 12 बजकर 35 मिनट पर समाप्त होगा यानि शुभ मुहूर्त की कुल अवधि 5 घंटे 28 मिनट तक रहेगी।
सरस्वती पूजा की विधि
बसंत पंचमी के दिन साधक को सुबह जल्दी उठें।
साफ-सफाई के बाद स्नान आदि के बाद पूजा की तैयारी करें।
माता सरस्वती की प्रतिमा या तस्वीर को पीले रंग के वस्त्र अर्पित करें।
इसके बाद चंदन, अक्षत, हल्दी, रोली सहित पीले या सफेद रंग के फूल और पीली मिठाई माता को अर्पित करें।
पूजा के स्थान पर वाद्य यंत्र और किताबों को माता के सामने रखें।
इसके बाद मां सरस्वती की वंदना का पाठ करें।
अंत में मा सरस्वती की आरती गाकर प्रसाद बाटें
मां सरस्वती के लिए व्रत भी रख सकते हैं।
ऐसे हुआ था मां शारदा का प्राकट्य
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान ब्रह्मा ने जब संसार को बनाया तो पेड़-पौधों और जीव जन्तु सब कुछ दिख रहा था। इसके बावजूद वे अपने सृजन से बहुत खुश नहीं थे। उन्हें कुछ कमी महसूस हो रही थी। इसके बाद उन्होंने अपने कमंडल से जल निकालकर छिड़का तो सुंदर स्त्री के रूप में एक देवी प्रकट हुईं। इनके एक हाथ में वीणा और दूसरा हाथ आशीर्वाद देने के मुद्रा में था। वहीं, अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। मान्यताओं के अनुसार इन सुंदर देवी ने जब वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हुई।
इससे ब्रह्माजी अति प्रसन्न हुए और उन्होंने सरस्वती को वीणा की देवी के नाम से संबोधित करते हुए वागेश्वरी नाम दिया। हाथों में वीणा होने के कारण उनका एक नाम वीणापाणि भी पड़ा। मां सरस्वती को शारदा, शतरूपा, वाणी, वाग्देवी, वागेश्वरी और भारती भी कहा जाता है। वैसे माता सरस्वती के जन्म को लेकर 'सरस्वती पुराण' और 'मत्सय पुराण' में भी अलग-अलग उल्लेख मिलते हैं।