रविदास जयंती  2018: पढ़िए, धर्म और भाईचारे का संदेश देने वाले कौन थे ये संत?

By रामदीप मिश्रा | Updated: January 31, 2018 12:35 IST2018-01-31T12:19:24+5:302018-01-31T12:35:19+5:30

संत रविदास का जन्म बनारस के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। इनके पिता संतोष दास जूते बनाने का काम करते थे। रविदास को बचपन से ही साधु संतों के प्रभाव में रहना अच्छा लगता था।

guru ravidas jayanti and know about guru ravidas saint | रविदास जयंती  2018: पढ़िए, धर्म और भाईचारे का संदेश देने वाले कौन थे ये संत?

रविदास जयंती  2018: पढ़िए, धर्म और भाईचारे का संदेश देने वाले कौन थे ये संत?

संत गुरु रविदास की बुधवार (31 जनवरी) को पूरा देश जयंती मनाई  जा रही है। इस साल उनकी ये 641वीं जयंती है। लेकिन, उनके जन्मतिथि को लेकर कोई निश्चित नहीं है। साक्ष्यों और तथ्यों के आधार पर रविदास का जन्म 1377 के आसपास माना जाता है। हिन्दू धर्म महीने के अनुसार, उनका जन्म माघ महीने के पूर्णिमा के दिन माना जाता है और इसी दिन देश में उनकी जयंती बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है।

संत रविदास जूते बनाने का करते थे काम

रविदास का जन्म उत्तरप्रदेश के वाराणसी शहर के गोबर्धनपुर गांव में हुआ था। इनके पिता संतोष दास जूते बनाने का काम करते थे। रविदास को बचपन से ही साधु संतों के प्रभाव में रहना अच्छा लगता था, जिसके कारण इनके व्यवहार में भक्ति की भावना बचपन से ही कूटकूट भरी हुई थी। वे भक्ति के साथ अपने काम पर विश्वास करते थे, जिनके कारण उन्हें जूते बनाने का काम पिता से प्राप्त हुआ था और अपने कामों को बहुत ही मेहनत के साथ करते थे। जब भी किसी को सहायता की जरूरत पड़ती थी रविदास अपने कामों का बिना मूल्य लिए ही लोगों को जूते ऐसे ही दान में दे देते थे।

सिकंदर लोदी भी था उनकी लोकप्रियता का कायल

रविदास का मध्ययुगीन साधकों में विशेष स्थान रहा है। बताया जाता है उनकी इसी लोकप्रियता और ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने उन्हें दिल्ली मिलने के लिए निमंत्रण भेजा था। कबीर की तरह वह भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। वहीं, कबीर ने 'संतन में रविदास' कहकर इन्हें मान्यता दी। 

सिख धर्म के लिए योगदान

अगर संत रविदास के सिख धर्म के योगदान की बात करें तो उनके पद, भक्ति संगीत और अन्य 41 छंद सिखों के धार्मिक ग्रंथ गुरुग्रन्थ साहब में शामिल है।

मूर्ति पूजा पर नहीं था विश्वास

रविदास का मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा में विश्वास नहीं रखते थे। वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। रैदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रज भाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। उनको उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं। 

1520 ई. में हुई थी रविदास की मृत्यु  

कई इतिहासकारों का मानना है कि रविदास जी मृत्यु 1520 ई. में हुई थी। उनकी याद में बनारस में कई स्मारक बनाए गए और लोग माघ पूर्णिमा के मौके पर कई कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं और इस दिन को एक त्योहार की तरह मनाते हैं। इसके अलावा हरयाणा, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में भी उनकी जयंती मनाई जाती है। 

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