Varuthini Ekadashi 2020: वरुथिनी एकादशी कल, इस व्रत कथा बिना अधूरा रह जाएगा आपका व्रत-पढ़िए यहां

By मेघना वर्मा | Published: April 17, 2020 11:23 AM2020-04-17T11:23:00+5:302020-04-17T11:23:00+5:30

वैसाख महीने में दो एकादशी आती है। इसमें एक कृष्ण पक्ष की एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं।

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Varuthini Ekadashi 2020: वरुथिनी एकादशी कल, इस व्रत कथा बिना अधूरा रह जाएगा आपका व्रत-पढ़िए यहां

Highlightsजो जातक पूरे मन से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। वरुथिनी एकादशी का व्रत बिना व्रत कथा के अधूरा माना जाता है।

हिन्दू धर्म में किसी भी एकादशी को महत्वपूर्ण बताया गया है। वैसे तो हर महीने दो एकादशी आती है। मगर वैसाख माह में आने वाली एकादशी को वरुथिनी एकादशी कहते हैं। जिसे सौभाग्य प्राप्त करने वाली एकादशी भी कहा जाता है। इसमें लोग भगवान विष्णु की उपासना करते हैं। 

इस साल वरुथिनी एकादशी 18 अप्रैल यानी कल है। माना जाता है कि इस दिन व्रत करने वाले दीर्घायु होते हैं। उन्हें कभी किसी भी प्रकार की समस्या का सामना नहीं करना पड़ता। वरुथिनी एकादशी का व्रत बिना व्रत कथा के अधूरा माना जाता है। आइए आपको बताते हैं क्या है इस व्रत का महत्व और इसकी व्रत कथा।

वरुथिनी एकादशी व्रत - 18 अप्रैल 2020
एकादशी तिथि आरंभ - 08: 03 PM (17 अप्रैल )
एकादशी तिथि समाप्त - 10:17 PM (18 अप्रैल)

वरुथिनी एकादशी की व्रत कथा

एक बार युधिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से वैशाख माह में पड़ने वाली एकादशी की महत्ता पूछी। इस पर श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि इस एकादशी का नाम वरूथिनी है। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।

इसकी कथा यह है कि प्राचीन काल में नर्मदा नदी के तट पर मान्धाता नाम का राजा रहा करता था। वह बहुत दानशील और तपस्वी था। एक दिन जब वह जंगल में तपस्या कर रहा था, तभी न जाने कहां से एक जंगली भालू आया और राजा का पैर चबाने लगा। राजा पूर्ववत अपनी तपस्या में लीन रहा। कुछ देर बाद पैर चबाते-चबाते भालू राजा को घसीटकर पास के जंगल में ले गया।

राजा इस समय बहुत घबरा गए, मगर तापस धर्म अनुकूल उन्होंने क्रोध और हिंसा न करके भगवान विष्णु से प्रार्थना की। उनकी पुकार सुनकर भगवान श्रीहरि विष्णु प्रकट हुए और उन्होंने चक्र से भालू को मार डाला।

राजा को दुखी देखकर भगवान विष्णु बोले- 'हे वत्स! शोक मत करो। तुम मथुरा जाओ और वरूथिनी एकादशी का व्रत रखकर मेरी वराह अवतार मूर्ति की पूजा करो। उसके प्रभाव से पुन: सुदृढ़ अंगों वाले हो जाओगे। इस भालू ने तुम्हें जो काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म का अपराध था।'

भगवान की आज्ञा मानकर राजा मान्धाता ने मथुरा जाकर वरूथिनी एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से राजा जल्दी ही सुंदर और संपूर्ण अंगों वाला हो गया। इसी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग गया था। इसी प्रकार माना जाता है कि जो जातक पूरे मन से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। 

एकादशी पू्जा विधि

1. इस एकादशी में विष्णु भगवान के साथ माता लक्ष्मी की भी पूजा करनी चाहिए।
2. सुबह उठकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
3. इसके बाद कलश की स्थापना करें।


4. कलश के ऊपर आम के पल्लव, नारियल, लाल चुनरी बांधकर रखें।
5. धूप, दीप जलाकर बर्फी और खरबूजे के साथ आम का भोग लगाएं।
6. इसके बाद विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें।
7. दिन भर व्रत रख अगले दिन व्रत का पारण करें।

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